थारु पात्रोके शुरुवात अाे चाडपर्वके तिथिमिति

दिल बहादुर थारु।
लम्मा समयसे समाजमे चलरहल चालचलन, रीतिथिति, बोली, भाषा, लवाई, खवाई, चाडपर्व, भोजबिबाह, उठबसके तौरतरीका, नाचगान आदिहे संस्कृति कहठैं। समाजसे लम्मा समयसे अपनागिल तौरतरीकाके परिणाम नै संस्कृतिके बर्तमान रुप हो। अर्थात संस्कृति मनहे शान्ति देहेक लग ब्यक्ति ओ समाजसे अपनागिल एक पद्धति हो। पुर्खनके बिरासतहो, सहिदान हो, सहचिन हो, सम्पत्ति हो।

जनतनके चाहनाके परिपूर्ति कर्ना राज्यके दायित्व हो। अर्थात हरेक जनतनके, समुदायके, पुर्खनके बिरासतरुपी संस्कृतिके संरक्षण ओ सम्बर्द्धन कर्ना राज्य, सरकारके दायित्व हो। हमार फे दायित्व हो। का उ दायित्व राज्य निर्बाह कर्ले बा? हमरे निर्बाह कर्ले बाटी? हमारठे यी अहं प्रश्न जिउगर बा। हमार राज्य, हमार सरकार अधिकांश ब्राम्हन/क्षेत्रीके संस्कृति, चाडपर्बहे मान्यता डेले बा। हमार गुरीया, अतवारी, चिरैं कलेक का हो? उहीहे पता नाइहुइस्। थारुनके चालचलन, संस्कृतिके बिरोधी मनैन हम्रे सांसद बनाके पठाडेहठी। सरकारमे पुग्टी किल ओइने हमारे पर छुरी चलाई भिरजैठैं। थाकस, थारु नागरिक समाज कैलाली २०६३ सालसे थारुनहे अतवारीमे २ दिन बिदा हुइपरल कहके माग रख्टी आइल बा, सुनुवाई नाइहो। ब्राम्हन, क्षेत्रीनके चाडपर्व राज्यके चाडपर्व बनगिल बा। हमार चाडपर्व ओकर लग उग• होगिल बा। ओइनके अधिकांश मन्दिरहे सरकारी बजेट बा, हमार ठनवा/मरुवा ओस्ते परल बा।

हालसमके हमार सरकारके रवैया, चालचलन यिहे हो, मने हमरे फे यी बिषयमे गम्भिर नाइहुई। सरकारसे पैना सेवा सुबिधाके लग हमरे फे पहल नाइकर्ठी। आजकल हमरे धेर मनै बाह्य संस्कृतिके दबाबमे परट जाइटी। अपन तमाम संस्कृति छोरट जाइटी। हम्रे संस्कृति बचाइक लग मुहसे मजा मजा बात कर्ठी, मने ब्यबहारमे नाई उटर्ठी। अनि हमार संस्कृति बची कैसिक? हमार संस्कृतिमे एकरुपता नाइहो, एकरुपता हुइना चाही कना सकहुनके चाहना हो। संस्कृति भताभुङ्ग हुइटा, बचाई परल कना सकहुनके चाहना हो। मने बचाई के? हमार संस्कृति उपर आक्रमण करुइया, हमार संस्कृति बचाडिहिं? कल्पना नाइकर्लेसे हुइठ। हमार संस्कृति बचाइक लग हमरहन आगे सरेपर्ना हो, बरहेपर्ना हो। जिम्मेवारी, दायित्व निर्बाह करे पर्ना हो।

पात्रोके शुरुवात
अइसिन चिन्तन, मनन, छलफल अपनेनके बिचमे फे हुइत हुई। मने ब्यबहारमे कमे उतरत हुई। हमार बिचमे फे कैचो हुइल। सँघरीयनठे मै कैचो कहनु, कैचो लिख्नु फे कि हमार लावा साल माघ हो। जब लावा साल माघ हो कलेसे लावा सालके सूचक का हो? ईस्बी सम्बत, बिक्रम सम्बत अनुसार लावा साल आइठ तो बजारमे क्यालेण्डर आइठ, लर्का शुभकामना डेहटी पोष्ट कार्ड पठैठैं। संघ, संस्था, कार्यालय, संगठन, ब्यक्तिहुक्रे शुभकामना कार्ड पठैठैं। हमरे फे शुरुवात करी। कैलाली धनगढीस्थित थारु छात्राबासमे थारु कल्याणकारिणी सभासे आयोजित बैठक, छलफलमे ढर्नु। अपन लर्कन, जाई गाउँक लर्कनहे हौसला डैके पोष्ट कार्ड फे पठाइक पठावा करैनु। मने ओतरैमे सीमित रहल। दोसर गाउँओर नाइबरहल।
यिहे सिलसिलामे बुन्दीलाल चौधरी जी थारुनके लावा साल माघ हो कलेसे हमरे फे थारुभित्ते पात्रो माघसे निकारी ना कना बातमे जोड डेहनै। उ बातमे हमार समर्थन रहल। उहे सल्लाह अनुरुप हम्रे बि.स.ं २०७० सालमे पहिलचो थारुनके लग थारु कल्याणकारिणी सभा कैलालीमार्फत माघ महिनामे भित्ते पात्रो निकारल रही। जेकर नाउँ ‘थरुहट भित्तेपात्रो’ रहे। थारु कल्याणकारिणी सभाके तत्कालीन सभापतिके नातासे प्रभातकुमार चौधरी येकर लग भारी भूमिका निर्वाह करल रहैं। थारुनके क्षेत्रमे चल्ना भित्ते पात्रो कहना अर्थसे निकारल भित्तेपात्रोमे तमामजे यी तो ‘थरुहट तराई पार्टी’क भित्तेपात्रो हो कहके प्रतिक्रिया डेहनै। सँगे समयके फेरबदल, थाकसके नियमित आर्थिक श्रोत, नेतृत्व परिबर्तन आदिके कारण थारु भित्ते पात्रोहे निरन्तरता डेहनामे समस्या देख परल। भित्ते पात्रोके सामाग्री संकलन कर्ना, सम्पादन कर्ना जिम्मा मोरे रहे। निरन्तरता डेहेक लग २०७१ मे हमरे’जखोर लेक परिषद (इन्जल) नेपाल’ संस्था दर्ता कर्ली ओ थारु भित्तेपात्रोहे निरन्तरता डेहना शुरु कर्ली। पहिल साल (२०७०) पात्रो डिजाइन ‘अपि अफसेट प्रेस’ करल रहे कलेसे बि.स.ं २०७१ सालसे पात्रोक डिजाइन निरन्तर ‘साथी डेस्क टप’ कर्टी आइटा।

पात्रो गाउँ घरमे पठाइबेर तमाम बुद्धिजीवि, तमाम जिज्ञासु, शुभ चिन्तकहुक्रे थारु भित्तेपात्रोमे गर्ब कर्नै, सल्लाह सुझाव डेहनै। वहाँहुक्रे थारुसम्बत बारेम फे सुनरहले रहैं। काकरे कि कैलालीसे निकर्ना नेपालके थारु भाषक पहिल दैनिक पत्रिका पहुरा ओ दाङसे निकर्ना लौव अग्रासन साप्ताहिकमे थारु सम्बत उल्लेख हुसेकल रहे। थारुवान डटकममे फे यी बात आसेकल रहे। मने मै थारु सम्बतके आधार का हो? थारु सम्बत, समय निर्धारण करुइया के होइँ? ओकर खोज, अध्ययन अनुसन्धानमे रहुँ। थारु सम्बत लिखुइया यी दुनु पत्रिकामे फे एकरुपता नाइरहे। एक सालके फरक रहे। बिनाआधार भित्तेपात्रोमे लिखडेलेसे समुदाय आउर अन्यौलमे परजाई कहके मै ध्यान नाइडेले रहुँ। अनुसन्धानके सिलसिलामे २०७१ सालमे फेसबुकमे कनैलाल जीसे भेटघाट, बातचित फे हुइल रहे। मने थारु सम्बत घोषणा करुइया हमरे हुई कहके नाई बतैले रहैं। उहाँ अन्तर्राष्ट्रिय मञ्चमे लिखल अपन एकठो डकुमेन्ट पठाडेहल रहैं, मने मोर लिखल हो कहके खुलासा नाइकर्ले रहैं। २०७३ पुषमे मै फेसबुकमे थारु सम्बत बारेमे किहि जानकारी बा? येकर साल, मिति, गते निधारण करुइया के हो? कना स्टेटस लिखल रहुँ। दाङके कनैलाल जी येकर बारेम अपनहे पता रहल, अपनेहुक्रे घोषणा करल बात बतवैनै। मोर अनुरोधमे वहाँ घोषणा करल तिथिमिति, आधार फे पठैनै। मै उहीहे कैयो चो अध्ययन कर्नु। वहाँ बि.स.ं २०६४ साल भादौ २२ गते नेपालु चौधरीक अध्यक्षतामे बालकृष्ण चौधरीक उपस्थितिमे थारु सम्बतके घोषणा करल रहैं। घोषणा करल सालके माघ थारु सम्बत २६३० (बिक्रम सम्बत २०६३) माघ १ रहे। सन २००७ रहे। जब बैशाख लागल तो बि.स.ं २०६४ हुइल रहे ओ बि.स.ं २०६४ भादौ २२ गते उहाँहुक्रे घोषणा करल रहैं। उ मिति अनुसार अब्बे थारु सम्बत २६४० ओ बिक्रम सम्बत २०७३, सन २०१७ चलता। भगवान बुद्धके जन्म साल, थारुनके लावा बरष, महिनाके आधारमे थारु सम्बत घोषणा करगिल बा। निश्चित आधार पाके बि.स.ं २०७३ ओ थारु सम्बत २६४० मे हमरे थारु भित्तेपात्रोमे थारु सम्बत फे उल्लेख कर्ले बाटी। मिहिन लागठ, अब थारु भित्तेपात्रोहे यी थप शोभा बरहैले बा। समुदायहे गर्ब कर्ना ठाउँ डेहले बा।
थारुनके लावा साल माघमे इन्जल नेपालसे प्रकाशन हुइना यी नेपालके पहिल ‘थारु भित्तेपात्रो’ हो। थारु समुदाय आज यी पात्रोसे धेर लाभान्वित बा। आज कैलालीसे दाङ्गतक यी पत्रिका जाइटा। पात्रोके सहयोगसे हमार चाडपर्व, संस्कृतिमे एकरुपता आइटा। “राज्यसे उपेक्षित, अपहेलित ओ हेरारहल, ढिलारहल थारु संस्कृतिप्रति थारुनके माया, मोह जागटा, हौसला बरहटा, संस्कृतिके संरक्षण ओ सम्बर्द्धनमे टेवा पुगटा”। पात्रो प्रकाशनके उद्देश्य फे यिहे हो।

चुनौती

राज्यसे अपहेलित थारु भाषाके पत्र, पत्रिका प्रकाशन ओ निरन्तरतामे जौनमेर चुनौती बा, ओस्ते चुनौती थारु भाषा, चालचलनहे समेटके लावा साल माघसे प्रकाशन कैजिना ‘थारु भित्तेपात्रो’ हे फे निरन्तरता डेहना भारी चुनौती बा। अभिन फे चेतनाके कमीके कारण थारु भित्तेपात्रो ओ आउर भित्तेपात्रोमे फरक छुट्ट्याई सेक्ना मनै कम बाटैं। बैशाखसे निकर्ना कतिपय भित्तेपात्रोमे गुरीया सावन १ गते लिखडेहल रहठ। जब कि गुरीया नाग पञ्चमीक दिन मनैठैं। पात्रो निकर्ना संघ, संस्थाके लापरवाहीसे फे थारु संस्कृति धरापमे परटा। मने समुदाय अभिनमे भ्रममे पर्टी बा। यिहिसे फे थारु भित्तेपात्रोहे चुनौती बा। दोसर तमाम संघ, संस्था, संगठन, बैंक, सहकारी संस्था भित्तेपात्रो बैशाखसे निशुल्क बितरण कर्ठैं। मनैसंस्कृति बचैनासे फे निशुल्क पात्रो पैनामे धेर चिन्तित बिल्गैठैं। अक्के साँझमे मुर्गा दारु नास्ता पानीमे पाँच सय हजार रुपिया खर्च कर्ना मनै ५०, ६० रुपियक थारु भित्तेपात्रो खरिदेबेर रोवन अइठिन्। थारुनके चाडपर्बके लग थारु भित्तेपात्रो आवश्यक हो, कहके गाउँ गाउँ सम्झैना, बुझैना अभियन्तनके लग भारी चुनौती बा।

अनुरोध
संस्कृतिके संरक्षण ओ सम्बर्द्धन कर्ना हमार सकहुनके जिम्मेवारी हो, दायित्व हो। हमहन हमार संस्कृतिके संरक्षण ओ सम्बर्द्धन कर्ना हो कलेसे हमरन आगे सरही पर्ना हो, ब्यबहारमे उटरही पर्ना हो। यदि गाउँघरमे मनाजिना गुरिया, चिरैं, माघी, धुरहेरी, अतवारी निरस बन्टी जाइटा कलेसे बुझे परल कि ओमने हमारे कमजोरी बा, जन्ना सुन्ना मनैनके कमजोरी बा। चौंकस, मजा बनाइक लग अपनही आघे सर्ना जरुरी बा। धेर जैसिन चालचलन जन्ना सुन्ना मनैनसे बिग्रठ कहके बु‰ना आवश्यक बा। तबमारे सकहुन अनुरोध बा, यदि संस्कृतिके संरक्षण ओ सम्बर्द्धन कर्ना हो कलेसे हमरे अपनही आगे सरी, बरही ओ ब्यबहारमे उतारी।

निष्कर्ष
ओरौनीमे का कहे सेकजाई कलसे संस्कृति हमार पुर्खनके बिरासत हो। संस्कृति संरक्षण ओ सम्बर्द्धन एक ब्यक्तिसे सम्भव नाइहो। मजा संस्कृतिके संरक्षण ओ सम्बर्द्धन कर्ना ओ खराब संस्कृतिहे सबजे मिलके बिदा कर्ना, एकरुपता अन्ना हमार सकहुनके सामुहिक कर्तब्य हो, दायित्व हो। संस्कृति संरक्षण, सम्बर्द्धनके लाग चाडपर्व कहिया मानजाइठ? काकरे मानजाइठ? संस्कृतिके महत्व का हो? नाइबुझटसम, हमार मन, दिल, दिमागमे स्थान नाइपाइटसम यी सम्भव नाइहो। सम्भव बनाइक लग सबजे बु‰ना, बुझैना ओ थारु त्यौहार, चाड, पर्वके तिथी, मिति उल्लेख करल भित्तेपात्रोक आवश्यकता बा। तबेमारे तमाम संघ संस्था, संगठन, बैंक, सहकारी आदिसे बैशाखमे तयार करजिना, निकर्ना भित्तेपात्रोमे थारुनके तरे उल्लेख करगिल चाडपर्वहे उल्लेख कर्ना बिल्कुल जरुरी बा।

थारुनसे मना जिना तरत्यौहार, दिवस
माघ १गते – थारु लावा साल (लहान, सेवासलाम लग्ना दिन, निसराउ कहर्ना डेहना दिन)
माघ २ गते – खिचरहुवा, (खिचरी खैना)
माघ २–७ गते – खोजनी–बोजनी, माघी देवानी, भुरा खेल, निसराउ डेहना हप्ता
फागुन पुनवासी – धुरहेरी, होरी।
चैत ओजरीयाके पहिल सोम्मार – चिरैं/चरै। कन्या स्वतन्त्रता दिवस(जौन चैत महिनाके बिच वा अन्तिममे परठ)
बैशाख १ गते – जुरशीतल (बिक्रम सम्बतके लावा साल)
बैशाख ओजरीया – भजहर
बैशाख पुनवासी – बुद्ध जयन्ती। धुरीया पुजा।
जेठ ओजरीया – पुत बढाऊ पुजा, भजहर
असार महिनाके पहिल शुख – मूठ लेहाई
सावन ओजरीयाके तृतिया – राना थारुनके तीज
सावन ओजरीया पञ्चमी तिथि – गुरीया/गुरही /नाग पञ्चमी
सावनके ओजरीया – हरेरी पुजा
सावन २० गते – सिकल सेल रोगबिरुद्धके राष्ट्रिय जागरण दिवस
भादौ अँधरीयाके अष्टमी तिथि – अष्टिम्कि/कृष्ण जन्म अष्टमी
भादौ ओजरीयक पहिल अतवार – बर्का अतवार/अतवारी
भादौ ओजरीयक चतुर्दशी– अनत्ता, अनत्तर, ईन्द्रजात्रा
भादौ ओजरीयम– हरेरी पुजा (सावनके ओजरीयम फे करजाइठ)
कुवाँर अँधरीयक अष्टमी तिथि – जितिया
कुवाँर ओजरीयक परेवा – दहित थारुनके ज्यौंरा धर्ना दिन
कुवाँर ओजरीयक द्वित्तिया – आम थारुनके ज्यौंरा धर्ना दिन
कुवाँर ओजरीयक पञ्चमी तिथि – दहित थारुनके श्राद्ध
कुवाँर ओजरीयक षष्ठी तिथि – झोलझर्ना
कुवाँर ओजरीयक सप्तमी तिथि – घरपोतना, पैनस्टोपी धोइना दिन, लौव पातक दोनामे छाँकी चरहैना दिन
कुवाँर ओजरीयक अष्टमी तिथि – ढिकरहुवा (कुलदेवता, पुर्खाहुक्रन ढिकरी चरहैना दिन)
कुवाँर ओजरीयक नवमी तिथि – पितरहुवा, आम थारुनके श्राद्ध
कुवाँर ओजरीयक दशमी तिथि – टीका (उज्जर टीका थारुनके चलन हो)
(कुवाँर ओजरीयाके अष्टमी ओ नवमी अक्के दिन परी कलेसे अष्टमी एक दिन सार परठ, नवमी दशमी अक्के दिन परी कलेसे दशमी एक दिन पाछे सार परठ, थारुनके लाग नवमीके भारी महत्व रहठ।
कार्तिक अँधरीया अमावश – दिया देवारी
कार्तिक ओजरीयाके द्वित्तिया – सामा चकेवा (पुरुब थारुनके) दियाको त्यौहार)
अगहन ओजरीयक पञ्चमी – घोरीघोरा लवाङ्गी पूजा, सीता भोज पञ्चमी
अगहन ओजरीया – लवाङ्गी पूजा
पुष १५ – तमु ल्होसार परठ। येमने फे कुछ थारु सहभागी हुइटै।
पुष अन्तिम दिन – जिता मराई, पुरान सालके बिदाई, लावा सालके स्वागत, रातके जग्ना, धमार गैना, तीर्थके लाग प्रस्थान कर्ना दिन।

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