अष्टिम्की ओ थारु लोककला (थारु भाषा)

Astimkiछविलाल कोपिला, आेंरवार:- नेपाल बहुजातीय, बहुभाषीय तथा बहुसंस्कृतिक मुलुकके रुपमे चिन्ह जाइठ् । यहाँ प्राचीनकालसे बहुट् जातजातिनके वसोवास हुइटी आइल् बा । ऊ जातजातिनके आपन मौलिक संस्कृति, रहन–सहन, लवाई–खवाई, बोल्न भाषा फेन फरक–फरक रहल् बा । यिहे विविधतामे हमार आपन पहिचान नुकल् बा । यी लेखमे थारू जातिनके अष्टिम्की परवके बारेम् कुछ बात धैना गेंह लगाइटुँ । अष्टिम्की मुलतः थारू समुदायमे जन्नी मनैनके लग हो मुले ठारु मनै फेन आपन सौक अन्सार मन्न चलन बा । यी पर्वमे बरट् (व्रत) बैठ्के मन्न चलन बा । उहेक् मारे उमेर पुगल् मनै धेरसे बरट् बैठ्ठाँ । टे यी परव कैसिके मन्ठी टे ?
डत्कत्टन:-
अष्टिम्कीक पहिल दिन या बरट् बैठ्नासे आघेक दिन भटौर (डत्कत्टन) खाइक लग दिनभरहस् मछ्री मर्ना चलन बा, मछरी आउर दिन फेन मारजाइठ् । मुले, ऊ दिनके मछरी मराइहे विशेष लेजाइठ् । दिनभर मछरी मारके नन्लक् मछरी धेर रहलेसे बेरी जुन कुछ खैना ओ कुछ रातके डत्कत्टन खाइक् लग बचा जाइठ् । यदी ऊ दिन कौनो कामले या कौनो कारणसे मछरी मराई नै हुइल् कलेसे डत्कत्टन फिक्कल् हुइल् मानके पश्टैना हुइठ् । डत्कत्टन बेरी खाके आपन काम धन्धा उसारके सुटलक् कुछ समय बाद या मुर्गी बोल्नसे पहिले खाजाइठ् । डत्कत्टनमे आउर समयक् खानाले बिशेष मेरके बनाइल रहठ् । ऊ समयमे मछरिक टीनाके संगे आउरमेरके साग–स्यावाँर फेन रहठ् । जौनकी बेटाइममे खाइबेर धेर खाजाए कैह्के हुई ऊ मेरके खाना तयार कैल् । ऊ खैना काम मुर्गी बोल्नसे पहिलेँहे खाई परठ् यदि कोइ मुर्गी बोल्लेपर खाइल् कलेसे ऊ डुठेहरु हुजाइठ् ओ बरट् बैठे फेन नै पाइठ् ।
हस्तचित्र:-
अष्टिम्कीमे हस्तचित्र (घरक बहरीमे हाठेले बनाइल् चित्र)हे टीकके पूजा कैना चलन बा । उहेक मरे अष्टिम्कीमे यी अनिवार्य रहठ् । यी बनाइक् लग ऊ समयमे रंगके विकास नै हुइल् रहे, टब ओइने पोइँक पाकल् फारा निटारके ओकर रसके लाल रंग ओ सेमक् पतियक् निटारके काइल रंग बनाइट् । ओस्टक आउर–आउर रंग फेन बनाइट् ओ बहरीक् भिटा ढौरा माटीलेके धोट्टैलके पोतके ओम्हेँे चित्र बनाइट् । चित्र कृष्ण जीवनमे आधारित रहठ् ।
यी बनाइक् लग पहिले बहुट मेर बुट्टाके घेरा बनाइल् रहठ् या आपन सौक अन्सार बुट्टा बनाई सेक्ठाँ । उहे घेरा भित्तर ऊ चित्र बनाइल् रहठ् । यी चित्र बनाइक् लग कौनो बिशेष कालीगढके जरुरत नै परठ् । यी चित्र बनाइक् लग सामान्य सिख्नौटी मनैं फेन बनाई सेक्ठाँ । ऊ घेरा भित्तर फेन तीनठो कोन्टी रहठ् । ओकर उप्पर बिच्चे बीच एक्ठो छुटीमुटी दोसर कोन्टी फेन रहठ् ओम्हे कृष्णक चित्र बनाइल् रहठ् । चित्र बनाइक् नैसेक्लेसे ओम्ने ‘श्री’ फेन लिख्जाइठ् या कानौ मनैनके चित्र फेन बनाइल् विल्गाइठ् ।
घेराके तीनठो मन्से उपरका कोन्टीमे विजोर संख्यामे थारु मनैनके चित्र बनाइल् रहठ् । यी तीनठोसे लेके सातठो चित्र बनैना चलन बर्ही प्रचलनमे बा । मुले कुछ ठाउँमे नौठो समके चित्र बनाइल् फेन मिलठ् मुले धेउर मेहनत लग्लक् ओरसे ओत्रधेर बनैना चलन कम बा । यी चित्र कृष्णके विभिन्न समय ओ रुपके प्रतीकके रुपमे बनाइल् मानजाइठ् । ठारुनके चित्र बनाइबेर पुत्ठामे मँदरा भिरल् फेन बनाजाइठ् । ऊ बनैलक कारण आपन सोह्र सय गोहिनहे नचाइकलग बसिया किल नै मड्रा फेन बजाइट् कैह्के आभास मिलठ् । ओस्टक् बाँउ पाँजर कोनवाँमे जोन्हियाँ ओ दाहिन पाँजर दिन (सूरज) के फेन चित्र बनाइल् रहठ् । थारू प्रकृति पुजक हुइट् बात बाउँ ओर जोन्हिाँ ओ दाहिन ओर दिनक चित्र बनैलक प्रमाणित हुइठ् । (सर्वहारी २०५८:४) ।
ओस्टक् ओकर टरक कोन्टिम उप्पर संख्याके बराबर जन्नी मनैनके चित्र बनाइल् रहठ् । ऊ चित्र कृष्णक् सोह्र सय गोपिनीनके प्रतीकके रुपमे बनाइल् रहठ् । ओइनके आँगर पाँजर सोँगियनके फेन चित्र बनाइल् रहठ् । कृष्ण आपन गोहिनहे नचाइबेर सोगियनके फेन जरुरत परठ् कैह्के सोगियनके चित्र बनैलक् हुई ।
कलेसे कौनोमे पाँचठो छाता ओर्हल ठारुनके चित्र बनाजाइठ् । यी पाँचो पण्डवनके प्रतिनिधित्व कैल मान्जाइ । छाता ओर्हलक् कारण ऊ बनिवास गैलक् ओरसे विभिन्न विपत्तिमे या घाम पानीसे बाँचक् लग बनाइलक् हुई । ओस्टक् नन्नहेँ टरक् कोन्टिमे बन्ढुक बोकल् थारूनके जो चित्र बनाइल् रहठ् । ऊ सौ कुवरनके (कौरव) प्रतिनिधित्व करठ् जौन ओइने लडाई भिडाई या मारपितके आपन राज करक् खोज्लग चरित्रके बर्णन करे खोज्लग हुई कना लागठ् । सब्से टरक् कोन्टी जौन उपर दुनु कोन्टिलेके यी कुछ भारी रहठ् । यम्हे यी मेरके चित्र बनाइल् रहठ् । Astimki-1

रोइना: सब्से पच्छिउँ ओर बनाइल् रहठ् । रोइनाहे रौना कैह्के बिश्लेषण कैल् मिलठ् । रौना लंकाके राजा हो । ऊ तत्कालीन समयमे सबसे विद्वान मनैंयाँ हुइट् । जेकर ठन दशौं मनैं बराबरके ज्ञान रहिन् ओ ओकर बराबर क्यौ फेन कौनो काम करे नै सेकिंट् । रौना गोंड जनजाति समुदायके राजा रहिट् जे थारूने फेन पूर्खा  हुइट् ओ थारूनके पुरान घर श्रीलंका हो कैह्के कुछ् लेखक लोग वर्णन कैल् मिलठ् । थारू अष्टिम्कीमे आपन पुर्खक प्रतीकके रुपमे स्थान देलक हुइट् कना तर्क फेन बा ।
उन्नाइसौं शताब्दीमे अध्येता क्रिस्टेन लासन राम–रावण युद्ध वस्तुतः आर्य ओ अनार्य बीच हुइल युद्धके मिथकीय प्रस्तुति हो कना प्रस्तावना आघे सारले रहिंट् । डा.हिरालाल, डा.रामदास, सरदार किबे, परमेश्वर अयर ओ एडी सांकलियाहस अध्येताके गहन खोज अनुसार आर्य राजा रामसे मारगैलक लंकाके राजा रावण कौनो राक्षस नैरहिँट्, मनै रहिंट्, जेकर १० ठो नै एक्ठो किल कपार ओ दुइठो किल हात रहिन् । (महर्जन २०६८ ः २६) । डा.रामदासके खोजअनुसार रावण भारतके गोंड जनजातिसे सम्बन्धित चर्चित राजा रहिँट् । जे गोंड जनजातिके आम मनैनके बिचमे आज फेन राजाके रुपम उच्च सम्मान पैटी आइल बटाँ । भारतके पूर्वी मध्यप्रदेशस्थित छोट नागपुरके पठारमे रहल रावणके राज्यसम रामके अधिराज्य विस्तारके कारण अन्ततः ऊ आदिवासी इलाका कौशल राज्यअन्तर्गत परे गैल रहे ।
असिके हेरेबेर आर्य राजा राम आपन सत्तास्वार्थके लग रौनक बध कैदेहल् । बध कैके रौनक चरित्रके गलत बिश्लेषण कैके राक्षस घोषणा कैके अप्ने भगवान बन्लाँ । मुले, लंकाके रौना बिना रुवावासी मैच्गैल् । थारूनके पूर्खाके रुपमे रहल् रौना बधके पाछे संस्मरणके लग आझ फेन अष्टिम्कीमे आपन पूर्खाके प्रतीकके रुपमे रौना स्थान देटी आइल बटाँ । मुले, हिन्दुवादी गलत बिश्लेषणके कारण आझ राक्षसके रुपमे हेलाही कैल बिल्गाइठ् । ओकर आँजर पाँजरके सक्हुनमे टिक्ही मुले ओकर चित्रमे क्यौ नै टिकठ् । ओकरमे टिक्लेसे रोइनहाँ लर्का हुइठाँ कना धारणा फेन अनि बा थारू समुदायमे ।
डोली: डोलीभित्तर बासुदेव, देउकी ओ बिच्चेमे अपूर्ण कृष्णके चित्र बनाइल् रहठ् । (जब रातके मुर्गी बोल्ही टब घरक् अगुनियाँ आनक् वारीमनसे चोराके नन्लक कैठाँ पुजके अपूर्ण कृष्णहे पूर्ण बना जाइठ् या कृष्णक् जलम् हुइठ् कैहके बुझे परठ् ।) जब कंस देउकीक कोखसे सातौ लर्का कहुँ पटकके कहुँ झटकके मुवँइलक् ओरसे आठौ सन्तानके रुपमे जल्मटी रहक् कृष्णहे सुरक्षित ठाउँमे जल्माइक् लग डोली बनाके यमुना लदियक् ओह्पार लैगैलक् हुई ।
कजरिक बनवा ः कृष्ण आपन लाला–बाला (गोरु बछरु) चर्हाई लैजैना बृन्दावनहे कजरिक् बनवा कैह्जाइठ् । महा कज¥यार हुइलक् ओरसे कजरिक् बनवा कैहगैल् हुई ।
फूला: कृष्णक सोह्र सय गोहिन रहिन् ओइनहे प्रेमके प्रतीकके रुपमे देना फुला उपहारके रुपमे फुला बनाजाइठ् ।
मजोर: कृष्णक मन पर्न चिरै मजोर,
लाउ: पृथ्वीमे महाप्रलय हुइल् बेला जौन किसिमके विष्णु दोनापर सवार कैके यहोँर ओहोँर जाइट् उहेक मरे अष्टिम्कीमे फेन लाउ बनैना चलन बा । केक्रो कहाइ जुन कृष्णहे सुरक्षित ठाउँमे लैजैना क्रममे यमुना लदिया नाघेबेर उहे लाउ नाँघके ओह्पार लैगैलक हुइट् कैहके कहाई बटिन् ।
रोइनी मछरिया: जब सृष्टिकर्ता यी पृथ्वी सृष्टि करे लागल् तब जल (पानी) ओ थल (जमिन) बनाइल् पाछे पृथ्वीमे मतस्य अवतारके रुपमे रोइनी मछरियक् जलम हुइल् ओरसे अष्टिम्कीमे फेन एक कोनवा ठाउँ रोइनी मछरिया पैले रहठ् ।
हर जोत्टी रहल मनैयाँ: विभिन्न समयसंगे मानव जीवन यापनके लग खेतीपाती कर्ही पर्ना हुइलक् ओरसे मानवीय जीवनशैली, कृषि प्रणालीके झलक् देहठ् ।
पुरैनिक पाता:  सोह्र सय कृष्णक गोहिन लहैना ठाउँ जहाँ सुन्दर पुरैनिक फूला रहे ओ ओइने फूलक् संगे कञ्चन पानीके मोहित हुके लहाइट् उहे मौकामे ओइनके सक्कु लुगरा नुक्वाके कृष्ण मजाक् करिंट्।
मुर्गा: समयबोधक पन्छी जेकार बोली सुनके मनै समयके निधारण कैठाँ । उहे अष्टिम्की फेन समयभित्तर सक्कु काम करे पर्ना हुइलक् ओरसे मुर्गक फेन बरवार भूमिका बटिस् ।

सख्ली कुकनिया: बनिवासमे रात विरात यहोर टहोँर सुते पर्ना हुइलक् ओरसे पहरेदारके भूमिका सख्ली कुकनियक् या कौनो फेन ठाउँमे पहरेदार सुरक्षामे लग कुक्कुरके फेन बरवार भूमिका रहलग ओर सख्ली कुकनियाँ अँगनामे रहल् बरवार रुखवामे बाँधल रहठ् ।
आस्टक नन्हे हाथी, घोरी, बाँदर चिरैचुरञ्गन, साँप गोजर कृष्ण बनिवास् गैल् समयमे बहुट् मेरिक् अवस्थामे सहयोग कैलक् ओरसे ओइनके चित्र बनाजाइठ् । जस्ते हाथी, घोरी आदि जानवर लडाईमे सहयोग, चिरै सन्देश पुगैना नन्ना, बाँदर फलफुल नान्के भोजन खवइना, पिवइना सहयोग कैना आदि । अष्टिम्की दुईमेरके रहठ् । बर्का ओ छुट्की दुनुमे चित्र उहे–उहे रहठ् मुले दिनभर भुख्ले रहुइयन बर्का अष्टिम्की टिक्ठा कलेसे छोट–छोट लर्का अष्टिम्की रहक् खोज्ना मुले भुखक मरे रहे नै सेक्के खाके फेन अष्टिम्की रहुइयनके लग छुट्की अष्टिम्की बनाइल् रहठ् । आकारमे छुट्की अष्टिम्की छोट रहठ् ।
सामा-धामा: जब सन्झा हुइठ् या दिन बुरे–बुरे करे लागठ् । अष्टिम्की बनैलक् घरक् सब्से भारी मनै (अगुनियाँ, महटिनियाँ) अष्टिम्की बनैलक् बहरीहे सुग्घुरके गोरुक् गोबरले गोबराके, आपन सेकट सतरंग गोदरी, पट्की, ढाँचिया गोंडरी बिछैठाँ, जम्हेँ टिके अउइयन चाउर धैठाँ, ओस्टक् आवश्यक पर्ना सामा–जामा जुटैठाँ सर्री धुप, मस्का मिलाके, सेँदुर लोटामे पानी ओ दुइठो घोघा सहिँत्य जरउँखार मकै अष्टिम्की बनैलक् पच्छिउँ पाँजर ठर्हिवाके धैठाँ ।
टिके जाइबेर: टिक्नाजुन हुइटे अष्टिम्की रहुइयन सुग्घुरके लहाके लावा–लावा लुगरामे सँपरके टठियामे एक माना चाउर, कैँटी खिरा, खिरा नैरहलेसे कुध्रु, नन्गी, भक्कु, लगायतके फलफुल ओ बिच्चे माटिक् चापर दिया (करु तेलले सुँग्ल) लेके गाउँक् मह्टान या जौनघर अष्टिम्की बनाइल रही उहे घर जैठाँ । ओहाँमे गाउँभरिक् या टोलभरिक् टिकुइयन जुट्ल रठाँ, ओँहोँर हेरुइयनके फेन ओत्रे भिर रठिन् । जब घरक् अगुनियाँ । सक्कु जाने आइल पटा पाइटे पहिले अप्ने अष्टिम्की टिकक् शुरु करठ् । सब्से उप्पर बनाइल् कृष्णक् चित्रठनसे शुरु कैटी अष्टिम्कीमे बनाइल् सक्कु चित्र सेँदुरले टिकठ् । मुले, रोइनाहे भर नै टिकठ् । कोई–कोई भर खित्राई बुढी रोइनकमे फेन टिक देठाँ । (कोपिला २०६७:३४) । खित्रैना काम ज्यादासे भोज कैल लर्काेर जन्नी कैठाँ । टिकके सेक्ही टे पँज्रे धैल सर्री धूप आगीमे चर्हाके अगियारी देठाँ ओ एकबेर दाहिन ओ एकबेर बाउँ पाँजरसे पानीले परछके आपन नानल् चाउर ओत्ठहेँ बिछाइल् गोँदरीमे पत्निक् पाँतके धैठाँ । चाउरक् आँजर पाँजर भेँठी सहिँत्य पतियाले सेँर्हल खिरा धैठाँ ओ उप्परसे माटिक् दिया । यदि दिया हलहिल्ले बुटल् कलेसे दुठेह्रु कैह्के खित्रैठाँ । अस्टक् पलिक् पाला सक्कु टिके अउइयन टिक्ठाँ । ओहोँर छुट्की अष्टिम्की रहुइयन फेन उहे मेर प्रक्रियासे आपन अष्टिम्की टिकके ओर्वइठाँ । जब सक्कु जाने टिकके सेकही टब गाउँक् लर्का खिरा काटे आइल रठाँ ओइने खिरक् चोँटी काट्के आपन उठाइल् ठाउँमे धैठाँ ओ खिराभर अष्टिम्की हेरे आइल् मनैनहे बँट्ठाँ ओ उबरल् आपन घरे लैजैठाँ ।
फलाहार भोजन: अष्टिम्की बिशेष कैके फलाहार ट्यूहार हुइलक् ओरसे फलफुल किल् भोजन कैजाइठ् । उहेक् आपन घरमे फेन ज्यादा खैना फलफुल तयार कैले रठाँ । खैनासे पहिले खैना कोन्टी सुग्घुरके गोबराके सर्रीक् धूप ओ आगी धैठाँ । ओस्तक् बैठना पिर्का या काठवक् कौनो चिजमे बैठठाँ । ओ आपन आगे रहल् सक्कु चाजमेसे ठोरचे–ठोरचे चिकुटके सर्रीक् धुपमे सानके अगियारी देठाँ ओ दहिन ओ बाउँ पाँजरसे बिजोर पटक परछके सेक्के सक्कु मनसे कुछ भाग अग्रासन कर्हठाँ । जौन आपन चेली बेटिन घर दोसर दिन देहे जैठाँ । यी सब कैके खाइक शुरु कैठाँ । सन्झाके खान–पिनमे अम्रुट, खिरा, केरा, चिनी, पानी, दही, स्याउ, नासपती आदि रहठ् ।
अष्टिम्कीक गीत: सक्कु जाने आपन खानपिन ओरवाके फेन अष्टिम्की बनैलक घर अइठाँ, जहाँ अष्टिम्कीक् गीत रातभर गैठाँ । गीत ठाउँ अन्सार कहुँ जन्नी मनै गैठाँ कलेसे कहुँ थारू । द्यौखरमे थारू गैठाँ कलेसे बाँके, बर्दिया, कैलाली, कञ्चनपुर जन्नी मनै गैठाँ । असिके ठाउँ अन्सार विविधता मिलठ् । (कोपिला २०५८ ः ८) । अष्टिम्की नै रहुइयन रातभर जाँर दारु पिटी गैठाँ कलेसे अष्टिम्की रहुइयइन फलफुल खाके कच्चे आँख बिहान कैठाँ । जौन गीतके कुछ अंश यी मेर बा ।
पहिलेटे सिरीजल जल थल धरती ।
सिरी जिटे गैला हो कुशाकई दाभ ।।
दुसरे टे सिरीजल अन्नकई पेडें ।
सिरी टु गैला हो अन्नकई बिरोग ।।
टिसरे टे सिरीजल अन्नकई डाँरे ।
सिरी टे गैला अन्नकई पात ।।
चौटे टे सिरीलज अन्नकई फूल ।
सिरी टे गैलाँ अन्नकई फल ।।
अस्राई:
जब मुर्गी बोल्ठाँ । घरक् अगुनियाँ । अष्टिम्कीक् डोलीमे बनाइल् अपूर्ण कान्ह सिर्जइकलग आनक् बारीमनसे कैठा चोराके नाने परठ् । चोरल् कैठक् पूजा कैके ऊ कान्हैहे सिर्जैना या जलम् देना काम देहठ् । मुर्गी बोल्टी किल् खैना बन्द हुजैठिन अष्टिम्की रहुइयनके लग ।
यहोँर अष्टिम्की रहुइयनहे हदबद्दी बर्हठिन । ओइने अस्राई जाइक् लग टेपरी छेदे उठ्ठाँ कोइ गीत सुने अउइयन ओँहे गीत सुन्न ओ टेपरी छेड्ना काम कैठाँ । टेपरी साधारण टेपरीसे बिशेष प्रकारके रहठ् । टेपरीमे पतियक् पाँच या सातठो दिया जोरल् रहठ् । भिन्सारे हुइठ् सक्कु जाने फेन अष्टिम्की बनैलक् घर सक्कु जाने जुट्ठाँ । सक्कु जाने जुट्टीकिल् आपन चाउरक् उप्पर धैल् खिरक् चोँटी ओ पतिया उहे टेपरीमे धैठाँ । माटिक दिया संग–संगे पतियक् दिया फेन सुँगैठाँ । जब अगुनियाँ आपन सर सामान तयार कैके निकरठ आउर जाने फेन निकरठाँ पाछे–पाछे । कौनो घाट, लदिया, कुलवामे जाके उहीहे अस्रैठाँ, ओँहे लहैठाँ ओ ओपन मनके कामना पुरा हुए कैहके कृष्णसे आरजी कैठाँ ।
फरहार:  अस्राके उहेँ लहाँके सक्कु जाने आपन–आपन घरे आके खँरिया, फुलौरी, पोँइक् ओ झिलंगीक् ठुसा, सुखाइल् मच्छिक् टिना, भात निँध्ठाँ । जब तयार हुइठ् टब फरहार करक् लग तयार हुइठाँ । फरहार करेबेर फेन साँही जुनिक् नन्हेँ । तयार हुइल् खाना अगियारी देके सक्कु चाज निकरठाँ अग्रासनके रुपमे ।
अग्रासन: ओइने खा–पिके घर धन्धा उसारके अग्रासन आपन दिदी बहिनियन घर देहे जैठाँ । जब धेर दिनसे आपन दिदी बहिनियनसे भेट हुइठिन टे आपन दुख्ना–सुख्नाके बात बत्वइठाँ । मान मर्जाद कैठाँ । थारू समुदायमे दारु जाँर, सिकार ओ बहुट मेरिक टीना खवा पिवाके सम्मान कैठाँ । भेटघाटसे आपन मनमे लागल् पीर व्यथा सुन्न सुनैनटे हुइठ् हि ओस्टक् भावनात्मक सम्बन्ध फेन गहींर बनाइठ् अग्रासन ।
निम्जौनी : अइसिके विधिवत रुपमे अष्टिम्की ओराइठ् । काल्हिकले आझ अष्टिम्की धेउर बदल् सेकल् आउर ट्यूहारके नन्हे अष्टिम्की फेन विकृतिसे बँचल् नै हो । बहुट् जाने आधुनिकताके नाउँसे फजुल् खर्च कैटी आइल् बिल्गैठाँ । कोइ पुरान संस्कार हटैना नाउँमे । आझके अवस्था रुढ संस्कारहे बगाके प्रगतिशील संस्कार निर्माण कैना स्वभाविक हो । मुले, संस्कार बदल्ना नाउँमे उहीसे अभिन खर्चहा, महंगा, भड्कावपूर्ण, समाजमे पचे नै सेक्ना किसिमके संस्कारसे समाजमे बरवार नकारात्मक असर पारठ् ।
आझ हमार समाजमे जे धनी बा ओइनके घरमे सबकुछ बटिन ओइनहे कौनो चिन्ता नै हुइन् खर्च कैनामे । मुले, जेकर घरमे दिनभर बिना काम कैले साँझ बिहान खाई नै पुगठ्, ओइनहे फेन ट्यूहार मन्न रहर बटिन् । रहरके मारे आउर जन्हुनहे देखासिखी ऋण सापट् खोजके ट्यूहार मनैनसे ओइनहे ऋणमे जरुर दुवाई ओस्टक् पस्टैना फेन बनाई उहेक् मारे आपन घरमे जा हुईले सन्तोष करी । ट्यूहार कम खर्चमे फेन माने सेक्जाइठ् । आपन मनके सन्तुष्टि ही बरवार बात हो । उहेसे आपन आर्थिक अवस्था हेरके आपन हैसियत हेरके टर–ट्यूहार मन्न परम्परा बैठाई यम्नेँहे अप्नेक् हमार कल्याण बा ।

सन्दर्भ सामग्री
सर्वहारी, कृष्णराज, (२०५८), अष्टिम्कीक चित्र । बिहान । काठमाडौं, थारू युवा परिवार । वर्ष–१३, अंक–१०
कोपिला, छविलाल, (२०५८), अष्टिम्कीक अग्रासन । बिहान । काठमाडौं, थारू युवा परिवार । वर्ष–१३, अंक–१० ।
कोपिला, छविलाल, (२०६७), अष्टिम्की ः संक्षिप्त जानकारी । लावा डग्गर । द्यौखर, थारू भाषा तथा साहित्य संरक्षण  मञ्च । वर्ष–१, अंक–३ ।
महर्जन, राजेन्द्र, (२०६८),  रामायण, जातीय सम्हार ओ धार्मिक बिरबन । लावा डग्गर । द्यौखर, थारू भाषा तथा साहित्य संरक्षण मञ्च । वर्ष–२, पूर्णाङ्क–८ ।

Leave a Reply

Your email address will not be published.