थारू कल्याण कारिणी सभाः कुछ टिट–मीठ सम्झना

कृष्णराज सर्वहारी- ओंरवा डारेबेर- थारू कल्याण कारिणी सभा (थाKRISHNA SARBAHARI PHOTO.docकस) के अइना महाधिवेशन २०७१ असोजमे झापामे हुइना तयारी हुइटी बा, कना हल्ला सुन्ले बटुँ। जबसे जाने जुकुर हुइलुँ, टबसे थाकसके नाउँ यी जिउ सुन्टी बा। मोर बाबा टिकाराम चौधरी लगातार तीन कार्यकालसे शायद फाडिल यी सभाके दाङदेउखुरी जिल्ला सचिव हुईलेक नाटे मै यी संस्थासे छोट्हीसे भावनात्मक रुपले जोरगैलुँ। यी लेखमे थारू कल्याण कारिणी सभा (थाकस) के कार्यक्रमसे मोर का कसिन सम्बन्ध जोड गैल बा। ओहे गनठन करक चाहटुँ।

चिठी लिखट–बोकट हैरान

श्री बालजनता मावि (हाल उच्च मावि) बनगाँवा, देउखरमे हाइस्कुल पह्रेबेरसे थाकसके जुटौलाके चिठी  लिखट–लिखट हम्रे दुई दाजु भाई (शिक्षक ऋषिराज, बनगाँवा उच्च मावि ) हैरान होजाई।। बाबा सचिव रलक कष्ट हमरिहिन उठाइक परे। टब जवानम्र ना कम्प्युटर, ना टे बजारेम लिठो मशिन। बश कार्बन पेपर ढैके ले चिठी लिखाही। उपरसे लिख्लक चिठी गाउँ–गाउँ बाँटे जाई परके थप हैरानी। यी चिठी बँट्ना काम मोरे भागेम परे। अपन गाउँक लग्घुक गाउँक टे पुगा आउँ। दुरिक गाउँक चिठी लेके लमही चौराहाओर जा जाए। गाडीक् अश्रा लागल मनैन्से चिन्हाजानी कैटी दिनभर बरा मुश्किलसे देउखर भरिक चिठी बाँट जाए। कोई कोई गरियाए– मही का हुलकिया हस डेखटो, चिठी बोकाईटो। केक्रो जुन थाकसके नाउँ सुनके आङ छरछराईन्, उहे गाउँक रलोपर चिठी पक्रक मने नै करिट। ओस्टे चिठी नै पक्रुईया मनै बादमें मोर ससुरवा बनल ब्यक्ति फेन पर्ला।

डाईक धम्की

हमार हैरानी डेख्के, सब शनिवारहस थाकसके कौनो कार्यक्रमके तयारी वैठकमें हर्जा हुइट डेख्के डाई बाबाहे गरियाई– ‘असौ सचिब्वा नै छोरबो, जहाँ जन्बो। नै छोरबो टे गोडा ओडा टुरडेम।’ लकिन जुटौलम उपस्थित सब जाने कहिंट– टिकाराम हुईहिक परी। उहाँ नै होके टे कामे नै चली। असिक डाईक धम्की काम नै लागिस।

थाकसके सचिवहे भेंट करे दुर–दुरसे मनै फेन आईट। एकबेर कहाँसे झापा जिल्लासे २ जने अईलाँ। ओईने थाकसके विधान सारके लैगैलाँ। कैयोबेर दुरसे मनै सचिवहे बरा मनै मानके जागिर लगाडेना सिफारिस बना माँगे फेन आईट। ओईन कलवा बेरी खवाईक परे,  पहुनाहस सहेरे परे। उप्परसे कोई टे गाडी भाडा फेन माँगे। डाई फुरेसे बनाके मिच्छागैल रही।

झेालबोक्वा जिन्गी

आझ थाकसके लमही, मजगाँवा, गढवा, घोराही चार–चार ठाउँमे अफिस बनल डेख्के बरा फोही लागठ। टब्बे टे थाकसके सचिव के झोलबोक्वा जिन्गी रहिन्, झोलामे अफिस रहे। यी जीउ फे बहुट झोला बोकल थाकसके। बाबक् साँसट डेख्के मै मनेमने कहुँ– यी सचिवके काम भर कब्बो नै कै जाई। लकिन वादमें समाजसेवामें लग्लु टे छिछिलेडर कइयो सँस्थक सचिव बने परल। जनसेवी थारू युवा क्लव, स्वान संस्था देउखरके सचिव कैयो बरस चलैनु। काठमाडौँ उचियइलुँ ना पछेरा छोरल। यहाँ काठमाडौँम फेन बहुभाषिक शिक्षा समाज, थारू पत्रकार संघ, थारू बौद्धिक तथा राष्ट्रिय अनुसन्धान केन्द्रके सचिव जो सहेरे परल। मने अपने सचिव बनलमें ओ आनेजाने सचिव बनल ओकर काम कैनामें अप्ठ्यारे लागठ। फिर भि बाबक् काम कहाँ टारे सेक्जाई।

सायद २०४५ साल ओरिक बात हो। दांग देउखरमें राजा रानीक् सवारी रहे। बाबा दांग तुलसीपुर राष्ट्रिय बैकमे मही थाकसके चेक भँजाई पठैलाँ। २३ हजारके चेक रहे। जिन्गीम पहिली बार ओत्रा ढेर रुप्या गोझ्यैले रहुँ। पैन्टक आघेक भित्री गोझुम ढैले, ओम्ने हाँठ घुसरले रहुँ, सारा बसेक डगरेम भर पस्नाले भिजगैल रहे। बाबा धन्यबाद डि कलेक टे उल्टे हजार हजारक नोट किल का करे नन्ले? भजाँके नै लन्ना चाही? यहाँ फुटकर कहाँ मिली कैहके डाँटे पो लागल। मै टब्बे बाबाहे बाबाहस् नै डेख्नुँ, फुरेसे थाकसके सचिब्वा हस किल लागल।

शायद सिसहनियक् स्कुलीम हो कि एकबेर थाकसके थारू छात्रबृत्ति बाँटे गैल रहुँ। ५० रुप्या प्रति ब्यक्ति ओस्टे छात्रबृत्ति रहे। २०४५/२०४६ ओर ओत्रा रकम फेन ढेरे हो। मस्टरवन्से भरपाई कराके लानेक परे। एकठो मस्टरवा मुँहेभरीक जवाफ डेहल– झाँटभरिक छात्रबृत्ति  बाँटे अइही। झण्झट लगैही। ओट्ठेसे छात्रबृति भर बाँटे जाईक छोरडेनु। अन्य चिठी लिख्ना बँट्ना काम टे पर्ली रहे।

फाईदा–बेफाईदा

थाकसमे लागके कोइ बहुट फाईदा फेन उठाईल हुई। मने बाबा ३/४ कार्यकाल सचिव चलैलाँ, हमरहिन  समेत ओकर झेालबोक्वा बनैला। ओकर कौनो फाईदा उठाई नै सेकगैल। वादमें थाकस रात्री कक्षा चलाईल, कब्बो नै प्रस्ताव आईल कि फलानेके फेन थाकसमे बहुट योेगदान बटिन्, सुपरभाईजर कुल बनैना हो कि? मने मोर यम्ने कौनो गुनासो नै हो।

हाँ, एकठो फाईदा भर उठागैल। राजा रानीक सवारीमें स्वागतके लग बनाइल गेटरुपी ब्यानर हमार घर थाकसके बरवार बक्सामे ढैल रहे। डश्या डेवारीम कार्यक्रम हुइ लागे टे हम्रे मञ्च बनाईबेर ओहे ब्यानर प्रयोग करि, श्री ५ महाराजधिराज, श्री ५ बडामहारानीको जय जय लिखल ब्यानर। औरे गाउँसे नाच हेरे आईल कोई आपत्ति फे करिट। हम्रे कही– सचिब्वा ब्यक्तिगत कामेम लगैले नै हो। अईसिन सार्वजनिक कामेम प्रयोग हुइटा टे का फरक परि? फेन म्याद ओराइल ब्यानरके का काम? डश्या डेवारीम कार्यक्रम टे अभिन फेन हुइठ, मने जय जय वाला ब्यानर जनआन्दोलनसे पहिले बिदा लैलेहल। कैयो बरस ओकर प्रयोगले ओस्टे पुरपुरहा होके फाट गैल। बक्सा ओ कुछ कागजात भर महापाछे  थाकसवाले लैगैलाँ।

उद्‍घोषकके जिम्मेवारी

मैं २०५३ सालेम एमए पह्रना सिलसिलम राजधानी उचियइलुँ। पत्रकारके पहिचान देउखरसे जो बनगैल रहे। काठमाण्डौम एकदुई बार थाकसके सार्वजनिक कार्यक्रममे उद्घोषण कैलक पदाधिकारीन् मन परल  रहिन्। ओहेसे २०५५ सालेम उदयपुर  हडियामे हुईल थाकसके स्वर्ण महोत्सबके कार्यक्रममे मही उद्घोषक बनैलाँ। शुरुमे नेपालीमे कर्लु टे थारूमेे उद्घोषण करे पर्ना माँग आईल। आब मै देउखुरीक मनै उदयपुरीक थारू भाषम् बोले जन्ना टे बाटे नै हुईल। बादमे कार्यक्रमके समीक्षा हुइबेर कलबल हुइल कटि। कार्यक्रम हेरे अउईया ढेरसे रानपरोसके मनै रठाँ, उहे जिल्लक मनैन् उद्घोषण करक डेहक पर्ना रहे। यी कहाई जायज फेन हो। प्रधानमंत्रीक हैसियतसे टब्बे गिरिजा प्रसाद कोईराला बरका पहुना रहिट। उहाँहे फेन थारू मेर जो सम्बोधन कैके मन्तब्य डेहक बलैले रहुँ। आउर बात टे कहाँ बुझल हुइही, मने आपन नाउँ सुनके भाषण डेहक ठहर्‍या गईल हुइही। उ टे कहे लग्लाँ– ‘मै सुनसरी/मोरङके मनै, थारून्से खेल्टी मोर जिन्गी बिटल। मै फेन आधा थारू हस हुँ।’ ढुर सस्सुर नेतन बातक सिपार रठाँ कलक इहे हो काहुँन्।

पत्रिका/किताब बेच्ना मौका

थाकसके साधारण सभा, महाधिबेशनमें थारू पत्रपत्रिका ओ आपन लिखल ब्यक्तिगत किताब बेच्ना मौका  मिलठ। यी एकठो फाईदेक बात मानेक परी। थारू युवा परिवार काठमाण्डौं प्रत्येक डश्यम विहान पत्रिका निकारठ। २०५४ सालसे मै यकर सम्पादक बाटु। आझघरिक देउखरके थाकसके प्रत्येक बरष हुईना साधारण सभामे पत्रिका बेचाहीं हुइल बा।

२०५५ सालेम हुइल थाकसके स्वर्ण महोत्सवमे बेचक टन जो मोर पहिला किताब फुटल करम उपन्यास निकार गैल रहे। थारू भाषक पहिला उपन्यासके रेकर्ड बनैले बा  फुटल करम। किताब प्रकाशनके १६ बरसके अवधिमे  यी जिउक २० ठो किताब प्रकाशन हो राखल। जेकर एक मुख्य बजार थाकसके साधारण सभा, अबिधेशन फेन हो कना बाटेम दुई मत नै हो। मने, माघी महोत्सवहस मनोरञ्जनात्मक कार्यक्रममे पत्रिका किताब ओत्रा नैबिकठ कना मोर अनुभव बा। थारूनके चाहे जौन कार्यक्रममे पत्रिका, किताब लेके पहुँचल यी जिउहे बहुट जाने कहठाँ कटि– ‘सर्बहारीक् आगे नै पर्ना चाहीं। एक ना एक किताब भिराके छोरठ।’ थारून्के कौनो फेन कार्यक्रममे आपन समुदायक बारेम छपल लावा लावा पोष्टा, प्रत्रिका  संकलन कर्ना सुनहरा मौका हो। लर्कापर्कन छोटेम आपन भाषक किताब पहै्रना बान बैठैबो टे ओईनके सिर्जनात्मक क्षमता आउर बह्रठिन् कना बात हमार अभिभावकलोग काजे नै सोच्ठा? मै छक्क पर्ठु।

कामके जिम्मेवारी

थाकसमे मुख्य पदमें यी जिउ अभिनटक कौनो जिम्मेवारी लेले नै हो। दाङ देउखर जिल्लासे एकसलवा केन्द्रिय पार्षद बनल रहुँ। केन्द्रिय सदस्य बन्ना मन फेन रहे, मने चानस नै परल। आब भर ओकर कौनो पदमे बैठ्ना लालसा नै जागठ। काठमाण्डौसे जिल्ला समितिसे एकबेर केन्द्रिय पार्षद बनल रहुँ। सायद २०६० सालमें पर्सा जिल्लामें हुईल रहे महाधिवेशन। स्वास्थ्य साथ नैडेलक कारण मै बिच्चेम अधिबेशन छोरके चल अइनु। नै टे केन्द्रिय सदस्यमें मोर नाउँ उठल  रहे कटि। कार्यक्रम छोरके भग्ना मनैन् जिम्मेवारी काजे डेहे कना फेन आईल, जौन कि सोह्रे आना ठिक रहे।

२०६८ सालमें थाकसके सहमहामन्त्री फूलमति चौधरी आदिवासी जनजाति उत्थान राष्ट्रिय प्रतिष्ठानके प्रकाशनके किताब ‘थारू जातिको चिनारी’ सम्पादन कैना मौका डेली। तीन महिना लगाके बहुत कट्कर्री फट्कनु,  बहुट लावा सामाग्री नन्लुँ। पुरबहिया थारूनके बारेम कम सामाग्री आईल कना गुनासोक बाद मोरङके फनि श्याम थारू बहुत मेहनत कैके सुझाब सामग्री उपलब्ध करैलाँ। किताबके रुपमे तयार पारके प्रतिष्ठानहे बुझाइबेर पारिश्रमिक फेन सुनागैल रहे। मने पारिश्रमिक टे कहाँ उल्टे सेटिङ, प्रिन्टिङमे १० हजार ब्यक्तिगत खर्च हुइल। प्रतिष्ठान यकर मूल लेखक टिकाराम चौधरी (बर्दिया) मही ओ फनि श्याम थारू तीनहुनहे लेखक ढैना निर्णय प्रस्ताव करल। बादमें टिकाराम मै अकेली लेखक हुईना चाही कना थाकसमे  चिठी बनाई लगैला कटि। ओठेसे यी किताब नैछप्के गोदाममे परल बा। प्रत्येक बरस काठमाण्डौ में हुईना माघी  महोत्सवके मै प्रचार प्रसार संयोजक रठुँ, २०६८ में ओहो जिम्मेवारी लेहक मन नै लागल। पहिले थाकसमे दाङदेउखरके सचिव टिकाराम दुःख डेलाँ, बादमे बर्दियक टिकाराम।

थाकस ‘थारू संस्कृति’ बार्षिक पत्रिका २०३३ सालेम शुरु करल। बादमें राजकुमार लेखीक् पालम कुछ समय मासिकसम हुईल। आज यी बन्द हुइल डेख्के मन जरठ। मने उहाँक कौनो पदाधिकारीन् पत्रिका फेन थारून् जोरना एकठो कडी हो, जनचेतना जगैना बरवार अभियान हो कना नै बुझल डेख्के दुःख लागठ। २०६८ में फेन डोस्रे हृदयनारायण चौधरीक् अगुवाइमे ‘थारू संस्कृति’ पत्रिकाके सम्पादक मण्डल बनल बा, जेम्ने मोर नाउँ फेन प्रस्तावित हुइल। मै पूरा जिम्मेवारी लेके अकेली यकर सम्पादन संयोजन कर्लु ओ २०६९ माघमे निक्रल। थाकसवाले मही पारिश्रमिक टे दूर धन्यवाद टक नै डेलाँ। उल्टे यम्ने एकठो लेख भ्रमपूर्ण हुइल कैहके इहो बिक्री वितरण नैकैके गोदाममे ढैडेलाँ। यी हिसाबसे टे आब थाकस कौनो किताब, पत्रिका निकारी कना नै लागठ। मै पत्रकारितामे लागल मनै, जव थाकसहे थारु पत्रिका, किताब निकरनामे ध्यान नै हुइस कलेसे मै फे इही काजे ध्यान डिउँ?

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