थारुनके लाग ०७१ साल

dil bdr chaudharyदिलबहादुर चौधरी। देश बि.सं. २०७१ सालके बिदाई भर्खरे कर्ले बा। ०७२ सालके स्वागतकर्ती बा। अभिन फे शुभकामनाआदानप्रदानकार्यक्रमजारी बा। दोसर संबिधान सभाके चुनावहुइले अगहनमे एक बरष पुगसेकलबा। उपचुनावहुइलफे चैतमे एक बरष पुगलबा। अर्थात बि.सं २०७० सालअगहन ५ गते संविधान सभाके चुनावहुइले एक बरष ५ महिनाओ चैत २८ गते ४ ठो निर्बाचन क्षेत्रके उपचुनावहुइलहिसाबसे अब्बे १ बरष पुगलबा। यी एक बरष भित्तर जनताका पैनै? सरकार जनतनहे का देहल? कौनो उल्लेख्य कामहुइलकि? बिश्लेषण कर्लेसे लागठ यी बरष उपलब्धिबिहिनबा।कचिंगल, रगडा ओ झगडाके किल बरष बनलबा। 

 

बि.सं ०७१ के अन्तिमओर दाङ्गके अग्रासन साप्ताहिकपत्रिकाके सम्पादक सन्तोष जीओ कैलालीक तमाम मित्र हुक्रे मिहिनसे मोर विचार पुछ्नै कि ०७१ साल थारुनके लाग कैसिन रहल? मै एकठो सामाजिक संस्थामे कामकरुइया मनै, थारु नागरिक समाजके अगुवा मनै सच बोलही परी। मै कहठुँ, मिहिनअब्बे पार्टी राजनीतिसे कोई सम्बन्धनाइहो। सम्बन्धबाकलेसे उत्पीडित जातजाति, समुदायके उत्पीडनसे किल, थारुनके इतिहास, भाषा, संस्कृति, समानुपातिक सहभागितासे किल। अब्बे मोर पार्टी नाइहो, भले मै किहिनो बोट दारुँ। बोट दर्ना मोर ब्यक्तिगत अधिकार हो। हमार भाषा, हमार इतिहास, हमार संस्कृति तब बची, जब हमरन थरुहट वा थारुवान मिली। हमार राज्यके हरेक निकायमे समान सहभागिता तब हुई, जब हमरन थरुहट वा थारुवान प्रदेश मिली। पहाडसे अलग हुके प्रदेश नाइबनतसम यी असम्भव बा। मिहिन अइसिन लागठ। नुकैनावा छपैना बाते नाइहो। मै खुलके कहठुँ ओ जित्ती रहतसम यिहे कहम।
एक वाक्यमे कहबीकलेसे बि.सं २०७१ साल सहमतिसे संविधानबनाई परल कहुइयाओ बहुमतीय प्रक्रियासे संविधान बनीक हुइयनके खिंचातानीओ झगडामे किल बितल बा। दोसर दृष्टिकोणसे हेर्बी कलेसे पहिचानपक्षधरहे जनतानाइरुचैनै, यथास्थितिवादहे रुचैनै कहके कुछ नेपाली बिश्लेषक ओ कुछ संचारकर्मीनसे बिश्लेषण करत करत, लिखत लिखत ओराइलबायी बरष। देशहे धर्म निरपेक्ष नाई सापेक्ष बनाई, हिन्दू धर्महे नेपाल राज्यके धर्म बनाई कहके हल्ला करत करत ओराइलबायी बरष। कंचनपुर, कैलाली, झापा, मोरंग, सुनसरीहे पहाडमे मिलैनाकि थरुहटमे रख्ना खिचातानीमे ओराइलबायी बरष। देश संघीयतामे जाइपरठ, देशमे एक प्रतिशतसे धेउर रहल जातजाति समुदायके ऐतिहासिक पहिचान, भाषा, संस्कृति, भूगोलके आधारमे थरुहट, मगरात, तमुवान, नेवा, तामाङ्गसालिङ्ग, लिम्बुवान, मधेश नाउँसे प्रदेश बनेपरठकहुइयाओ देश संघीयतामे जैना ठिक नाइहो, ऐतिहासिक पहिचान देहनाकलेक नै जातिय राज्य बनैनाहो कहुइयनके झगडामे बितलबायी बरष। राजनीतिप्रति जनतनके अबिश्वास बढोत्तरीके बरष बनलयीबरष। समग्रमे कहबीकलेसे, मूल्यांकन, बिश्लेषण कर्बी कलेसे नेपालीनके लाग निराशाके बरष बनलबा०७१ साल।

एकठो आदिबासी जनजाति, आदिबासी थारुके नातासे हेर्बी कलेसे फे यी बरष सन्तोषजनक नाइरहल अवस्था हो। आदिबासी जनजाति, आदिबासी जनजाति थारुनकेबीच थोरचे मनोमालिन्यके रुपमे रहलयी बरष। अगुवा, थारु सभासद हुक्रनके आपसी संघर्ष ओ ठेठुनमेठुनके बरष बनलयी साल। थरुहटकेविरुद्ध बोलुइयापुरुबके केपी सिटौलाओ केपी ओली, पच्छिउँके शेरबहादुर देउबाओ भीमबहादुर रावल अर्थात पुरुबके दुई बभनाओ पच्छिउँके दुई ठकुरीनके खूब चर्चा हुइल यी बरष। बिशेष करके आदिबासी जनजाति, मधेशीनके पहिचानकेविरुद्ध देहल अभिब्यक्तिके कारण बदनामे सही,खूबचर्चामे रहनै ओइने। थारुहुक्रन मधेशी बनाइल निर्बाचनसम्बन्धी अध्यादेश २०७० केविरुद्ध ठरह्याइल बैजनाथ चौधरी अन्तिम समय (२०७० चैत ११)मे धोखा दैके खुब चर्चामे रहनै कलेसे, थारुहुक्रे पहाडी आदिबासी जनजातिनके दास नाइहोइँ, जतरा पहारमे प्रदेश बनी, ओतरै तराईमे बनाइपरल कहके आदिबासी जनजाति महासंघ ओ थारु कल्याणकारिणी सभाके पूर्वमहामन्त्री राजकुमार लेखी फे बरषभर चर्चामे रहनै, अभिन फे चर्चामे बाटैं। कैलालीके थारु बुद्धिजीवी हुक्रनके बातहे लत्याके पहिचानविरोधी शेरबहादुर देउबाके प्रचारप्रसारमे जुटुइया, थरुहटके बारेम बोलेक डरुइया ब्याकवार्ड सोसाइटी एजुकेशन (बेस) के अध्यक्ष दाङ्गके समानुपातिक सभासद डिल्लीबहादुर चौधरीओ थारुन मधेशी बनुइया अध्यादेशके विरोध कर्लेसे, थरुहट प्रदेशके पक्षमे ठरह्यैलेसे सभासद पद नाचलजायकहके डरुइया नेपाली कांग्रेस कैलालीके समानुपातिक सभासद बुद्धिसागर चौधरी फे थारुनके बिचमे कुछ चर्चामे रहनै। पहिचानविरोधी नेपाली कांग्रेसके सभासद रहरहतीदपहिचानके पक्षमे ठरह्याके तेजुलाल चौधरी मजा चर्चा पैनैं कलेसे थरुहटके बलगर वकालत करके, सिकलसेल रोगविरुद्ध संबिधान सभामे संकल्प प्रस्ताव अनुइया गोपाल दहितफे थारुनकेबीचमे मजाचर्चा पैले बाटैं। पहिचानके पक्षमे हिरगरसे ठरह्याके तमामथारु महिला सभासद हुक्रनके बिचमे गंगाचौधरी ओ रुक्मिणी चौधरी फे अपनहे चिन्हाई सफल हुइनै।

ओस्तेके कंचनपुरके पहाडी बाहुल्य रहल गाविस हे दैके सम्झौता कर सेक्ना अभिब्यक्ति दैके मधेशी जनअधिकार फोरम (लोकतान्त्रिक) के अध्यक्ष विजयकुमार गच्छदार मधेशी मोर्चा ओ खूद ३० दलीय मोर्चामे चर्चित रहनै। उत्पीडित जातजातिनके आशाओ भरोसाके केन्द्र बनल, देशहे प्रगतिपथमे लैजाइक लागकसमखाइल पार्टी, उत्पीडित जाताजातिनहे स्वाशासन देम कहुइया पार्टी, द्वन्द्वकालके मुद्दा उल्टाके सकहुन् जेल नादारैह् कहके डरसे ओतप्रोत हुइना, आन्दोलन फिर्ता लेहनाकाम फे ०७१ सालके अन्तिममे हुइलबा।

तबमारे समग्रमे कहबीकलेसे बि.सं २०७१ साल, देशमे रहल उत्पीडित जातजातिनके लाग सन्तोषजनक बरष नाइरहल अवस्थाहो। देशमे पहिचानसहितके संघीयता हुइपरल कहुइया कमजोर ओ संघीयता देशके लाग ठिक नाइहो, पहिचानक हुइया जातीय नारा लगाइतैं कहुइयाचाहिँ बलगर रुपमे देखा परल अवस्थाहो। देशमे ११ बरष जनयुद्ध लरल, संविधान सभाके चुनावहे सम्भव बनाइल पार्टी माओवादी सिंकुरके रहल अवस्था हो।

सोझे कहबीकलेसे बि.सं २०७१ साल उत्पीडित जातजाति, समुदायके लाग सन्तोषजनक बरष नाइरहलहो। झिनामसिना फाइदा कोई देखाइसेकी, मने उत्पीडित जातजातिनहे अब्बे चाहलकलकपहिचानओ अधिकारसहितके संघीय शासनहो। बभनाओ ठकुरीनके वर्तमान जातीय राज्यसे मुक्तिचाहलहो, तराईमे पहारबादओ पहारके जनजातिनके बिचखसबादके पीडासे उन्मुक्ति चाहलहो, राज्यके हरेक निकायमे जातिय जनसंख्याके अनुपातमे समानुपातिक सहभागिता चाहल हो। मने ०७१ सालयीचाहना, आवश्यकताके विपरित रहल अवस्था जगजाहेर बा।

ओरौनीमेकहे सेकजाइठ कि बि.सं ०७१ साल, उत्पीडित जातजाति, बर्ग, समुदायके लाग निराशाके बरष रहल। उत्पीडित जातजाति, बर्ग, समुदायके लागजौन भूमिका नेताहुक्रे, अगुवाहुक्रे खेलेक पर्ना हो, खेले नाइसेकलअवस्थाहो। कोई भूमिका खेले खोजल, तर खेले नाइसेकल अवस्था फे हो। संघीयताके सबालमे फे थारु कल्याणकारिणी सभाओ थरुहट प्रदेशके वकालत करुइया पहिचान पक्षधरकेबीचमे विचार नाइमिलल अवस्था हो। यदि अबके दिनमे फे यिहे अवस्था रहीकलेसे पहिचानविरोधी दल हुक्रे आउर हिरगरसे ठरहिना अवस्था ओ पहिचान पक्षधर दलहुक्रे लिहुरमुन्टी लगैना अवस्था नाइ आई कहे नाइसेकजाई। अब्बेके अवस्थामे यदि कोई उत्पीडित जाति, वर्ग, समुदायके मुक्ति चाहत हुई कलेसे उहीहे पार्टीगत राजनीतिसे उप्पर उठही परी, पार्टीगत ह्वीपसे उप्पर उठही परी। काहेसे कियी संसद नाइहो, संविधान सभाहो, संविधान सभासे विकास नाई, बल्कि अधिकारसहितके संविधानजारी कर्ना हो। अधिकारसहितके संविधान जारी करक लाग सभासदके भूमिका महत्वपूर्ण रहठ। मने मधेशी सभासदके तुलनामे आदिबासी जनजाति सभासद होस न जोश,जिन्दा लाशहसक देखा परल बाटैं। ओइनहे होशमे ओ जोशमे अन्ना काम जनतनके हो। जनतनके अधिकारहे गौण मानके अपन पार्टी, पद, प्रतिष्ठाहे सर्बोपरी मानके यदिओइने पहिचानसहितके अधिकारकेविरुद्धमे बोलहीं कलेसे खबरदारी कर्ना, दबाब देहना, भरल सभामे प्रतिबादकर्ना काम फे जनतनके हो। यदिजनतनसे अबके दिनमे यी काम हुई कलेसे ०७२ साल उत्पीडित जनतनके लाग सुख ओ सन्तोषके बरष, खुसियालीके बरष बनेसेकी, नाइहुई कलेसे ०७२ साल उत्पीडितहुक्रन कबोनाई निक्रेसेक्ना दुःख सागरमे धकेलेसेकी, हात्ती आयो, हात्ती आयो, फुस्सा हुइसेकी, सत्य बात यिहे हो।

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