थरुहट आन्दोलन के सैद्धान्तिक सवाल

सिएन थारू-  थरुहट संयुक्त संघर्ष समिति के आह्वान मे २०६५ साल फागुन १८ गते से २०६५ साल चैत्र १ गते ६ बुँदे सहमति है तलिक १३ दिन आदिवासी थारू विद्रोह के रुपमे राष्ट्रिय राजनीतिक चक्कर डेलकै। फागुन २२ गते टाँडी, चितवन मे सशस्त्र के गोली से कमल चौधरी आ विपिन खडका क्षेत्री वीरगति प्राप्त करेल्कै ट फागुन ३० गते सिसहनिया, दाङ्गमे फेन प्रकाश सत्गौवा थारू आ राम प्रसाद चौधरी वीरगति प्राप्त करल्कै। टकर पाछे ६ बँुदे सहमति राष्ट्रिय राजनीति के केन्द्र भाग से दुर परिधि मे वेवारिश डेखल ज्यारहल छै ट ६ बुँदे सहमति मे हस्ताक्षर करैवला नेतृत्व राजनीतिक परिधि मे चक्कर काइट ज्यारहल छै। यी यथार्थ सँगे अखुन्वो थरुहट आन्दोलन के कहानी स्मरण करैत नेतृत्व मे इतिहास निर्माण करलक दिवालियापन छै।
ठीक पाँचौ वरिष के सुरुवात मे थरुहट आन्दोलन के आह्वानकर्ता संघर्ष समिति सन्दर्भविहीन बनल्छै। नेतृत्व पंक्ति मे रहलाहा ककरो कोनो कार्यक्रम डैके हैसियत नै छै। कि आफ्ने मे अन्तरसंघर्ष ठीक ढङ्ग से चलावे नै सकला के कारण आन्तरिक समस्या मे फसले छै अथवा पलायन भ्याके अवसरवाद के घेरा भित्तर कैद छै। थरुहट आन्दोलन मे शहिद भे बिमल, विपिन, प्रकाश आ राम प्रसाद चौधरी के सपना पूरा करैले फेन डोसर संघर्ष अनिवार्य छै आ टकर राष्ट्रिय परिस्थिति अनुकुल डेखल गेल्छै। अखुन ककरो गद्दार आ ककरो क्रान्तिकारी के विल्ला भिरावैवला समय नै छै, मात्रै संघर्ष के कार्य दिशा सही पकरैके छै। टकरो ठीक विशलेषण करैले थरुहट आन्दोलन के सैद्धान्तिक सवाल स्पष्ट करनाई चुनौतीपूर्ण छै। यी चुनौतीपूर्ण घडी मे आवके आवश्यकता विचार, नेतृत्व आ योजना किटानी मे आधारित आन्दोलन मे निरन्तरता, संघर्ष मे जोड आ विद्रोह के तैयारी सहित के कार्य दिशा चियै। यकरा सतही पारा से बुझला से काम विगरल ओर्से आब विल्ुकल नयाँ स्कूल के चिर विकास दैले सक्षम हेटै। टखुन सहीद के सपना साकार बनावैवला शक्ति प्राप्त हेटै।
सर्वप्रथम आई थरुहट आन्दोलन के सैद्धान्तिक सवाल मे डेखल गेल असपष्टता, फरक बुझाई आ टकर चल्टे उत्पन्न व्यवहारिक कठिनाई दूर करैले सहयोगी बने कैहके यी शिर्षक उठान करल गेल्छै। थरुहट आन्दोलन के १३ दिने आदिवासी थारू विद्रोह अवस्यमभावी छेलै। टकरा चमत्कार के रुपमे नै बुइझ के सैयौं बरिष के उत्पीडन आ माओवादी धार मे भेल गडबडी चियै। हजारौं वरिष से यी जाति राजतन्त्र के चक्की मे पिसाबैट जब शाह–राणा शासन काल मे मासिने मतवाली के बैनके सामन्तवाद के चरमशोषण रहलै तेकर दर्द माओवादी जनयुद्ध से कम भेलछेलै। जब माआवादी थारू जाति के अलग पहिचान उपर राजनैतिक निर्णय लैले नै सकल्कै ट २०६५ फागुन १९ गते आदिवासी थारू विद्रोह राजनितिक आन्दोलन के रुपमे विकास भेलै। यी आन्दोलन पहिचान परक आन्दोलन के सिद्धान्त निर्माण करैले सहायक बैनगेलै। संसार मे ८० के दशक से पहिचान के सवाल उठैत येलै। जते जते माओवादी जनयुद्ध विश्राम लेल्कै पहिचान परक आन्दोलन के धरात तयार भेलै। ल्याटिन अमेरिकी मुलुक आ दक्षिण–पूर्वी एसिया के मुलुक मात्रे नै विकसित युरोप मे सोहो टकर जोरदार असर डेखल गेलै। टकर नेतृत्व कोनो उदारवादी पूँजीवाद आ मार्क्सवाद नै भ्याके आदिवासीवाद के विश्व दृष्टिकोण मे विकास भेल बहुलराष्ट्रियवाद, संघीयता आ समाजवाद केलकै। यै कारण से बहुलराष्ट्रियबाद के व्यवहारिक प्रयोग करल गेलै, मगर बुझाई कमजोर रहल नेतृत्वसब टकरा मधेशी विरोधी आन्दोलन के रुपमे डैले लाग्लै। स्वभाविक छै कि राज्य सोहो यकर चल्टे अलमल मे पैर गेलै। बहुलराष्ट्रियवाद आन्दोलन मार्फत संस्थागत करै ने सकला के कारण नेपाल के बहुलराष्ट्रिय राज्य घोषणा नै करे सकलै आ संघीयता मे अल्झावैत संविधान सभा संविधान नै बनावैत ओरेलै। यी पहिचान परक आन्दोलनकारी सवके हार चियै। मानौं आदीवासी सब सैवदिन हारैले जन्मल छै। जब टलिक बहुलराष्ट्रियवाद व्यवहारिक रुपमे बुझहैले कमजोर रहटै, आदिवासी हारैट जेटै। यथास्थिति मे कोनो बदलाउ नै डेखल जेटै।
बहुलराष्ट्रियवाद जकर विश्वदृष्टिकोण आदिवासीवाद चियै, टकरा जब टलिक निश्चित आदिवासी के विचार के रुपमे बुझहेटै रहटै सही समाधान ने पावटै। यी एक विशुद्ध फरक विचार के श्रोत चियै। यकरो फरक राजनीति, दर्शन, इतिहास आ अर्थ शास्त्र छै। जिवन आ जगत के विश्लेषण आदिवासीवाद फरक ढङ्गसे कर्ने छै। बहुलराष्ट्रिय लोकतन्त्र टकरा व्यवस्थापन करैवला विज्ञान चियै। राजनैतिक इकाई के रुपमे विशुद्ध व्यक्ति मात्रै नै फरक पहिचान मे रहलाहा सोहो चियै टकरा बहुलराष्ट्रिय लोकत्ान्त्र व्यवस्थित कैर सकैये। टैडुवारे नवउदारवादी लेाकतन्त्र अथवा समावेशी लोकतन्त्र आ जनवादी गणतन्त्र डुनु पहिचान के व्यक्तिगत मामला बुझहैट येल्छै ट बहुलराष्ट्रिय लोकतन्त्र व्यक्तिगत आ समुहगत डुनु मामला के समेटने छै। यकरा वर्तमान राज्य संरचना  मे विस्थापन करलगेल्छै। विकसित–अविकसित सभ्य–असभ्य, धनी–गरिब, आदि अवधारणा मात्रे चियै टकर कोनो सही तर्क नै छै। जकरा काम नैलाग्ौवला सोचकलै उदारवादी पूँजीवादी समाज मे डेखल गेल विसंगति फेन व्याहा विधि से समाधान करैले अध्ययन आ अभ्यास भ्यारहल छै। जेनङ समूह से व्यक्ति के महत्व ड्याके जब टलिक अगा बरहलै बरहलै, आब विकास मे सहभागिता मुलक सिद्धान्त अपनावैले लागल छै। परिवार मे आ समाज के महत्व छै कैरके स्वीकार करैछै। ट पहिचान स्वीकार करैले कोनो कसर बाँकी नै रहटै।
अन्त मे, आदिवासी के विश्वदृष्टिकोण से सिर्जित बहुलराष्ट्रियवाद थरुहट आन्दोलन के आधार चियै। जैहिया नेपाल बहुलराष्ट्रिय राज्य बैन जेतै यथार्थ मे थरुहट के राजनीतिक ईकाइ स्थापित हेतै आ थरुहट सोहो बहुराष्ट्रिय राज्य हेतै, थरुहट मे जाति के आत्मनिर्णय के अधिकार तावे सुरक्षित मानल जेटै। यै से अलगाववादी के विल्ला लेल सहयोगी बन्टै। विशेष कैरके धार्मिक सत्ता आ भाग्यवाद मे अलमल भेल राजनीति के यटे सही निकास निकल्टै। यी दक्षिण एसिया के विसंगतिपूर्ण राजनीति के सही निकास डेटै। टकर लेल थरुहट आन्दोलन मे बलिदानी ड्याल गेल्छै। नेतृत्व करैवलासब यी बात के गहिराई मे ज्याके कैहियो चिन्तन नै करल्कै। आपन कमजोरी छोपैट बरु पलायन हैले तैयार भ्यागेलै। खुशी के बात छदमभेषीसब अखुन फेनो मौका टाइक रहल छै, जकरा कार्यनीतिक चाल मिल्याल जाय ट सहज से नयाँ नेतृत्व के डगर खुल्ला करल ज्या सकैये। चेतना, वस्तु आ सत्ता के अन्तर सम्बन्ध के बुझाइ वेगर कार्यनीतिक चाल ठीक ढङ्गसे मिलावेलै कठीन छै आ थरुहट आन्दोलन मे डेखल गेल कमजोरी, त्रुटी आ विसंगतिसब फेनो दोहरा हरानी अन्तै। समय मे चिन्तन के जरुरी छै, कठिले ट पुनः संविधान सभा मे समानुपातिक प्रतिनिधित्व नै रहटै आ संविधान सभा मे आदिवासी जनजाति के विषयगत समिति सोही बनैके कोनो सम्भावना नै छै। यी सव कारण से थरुहट आन्दोलन के निरन्तरता डैट आदिवासी विद्रोह के जवरदस्त माहोल तैयार करनाई तात्कालिन कार्यभार चियै। यी कार्यभार पूरा करैले क्रान्तिकारी राजनैतिक दल आदिवासी के नेतृत्व मे चाही। आदिवासीवाद के मार्गनिर्देशक सिद्धान्त बमोजिम निर्देशित भ्याके नयाँ राज्य संरचना बनावैले टाब सफल बन्टै।
साभारः २०६९ चैत १, गोरखापत्र

Leave a Reply

Your email address will not be published.