छविलाल कोपिला
संस्कृति हरेक समुदायके आपन मौलिक पहिचान हो। उहेसे संस्कृति संरक्षण ओ सम्बर्द्धनके लग सक्कुहस् समुदायक मनै कौनो नकौनो रुपमे जुटल् रठाँ। थारू समुदायमे फेन अइसिन धेर संस्कृति बा, धेर ट्यूहार बा। सावन महिना ट्यूहारके शुरु हुइना दिन, उहेसे सावन लग्टीकिल ट्यूहार अइना शुरु हुजाइठ्। सवनियाँ ओराइल् कुछ दिन पर्से गुर्ही ट्यूहार आइठ् । असार ओराइ ते सवनियाँ आइठ्। थारू जात खेती किसानी कैना जात हुइलक ओरसे यदि असारमे खेती ओरागैल कलेसे सवनियाँमे हर्डहवा फेन हुइसेकठ्। यदि नै हुइल कलेसे गुर्हीमे धेरहस् गाउँमे हर्दहवा बनठ्। हर्दहवा धेरहस् गुर्हीक दिन मन्लाँ द्यौखरमे मुले दाङमेभर अकाशे खेती हुइना हुइलक ओरसे हुई हर्डहवा ठनिक पाछे मान्ठाँ। जा हुइलेसे फेन हम्रे थारू समुदायमे गुर्हीक बारेमे कुछ जानकारी कराइ जाइटुँ।
गुर्ही सावन महिनक् अँधरियामे पञ्चमिक दिन परठ्। यी ट्यूहार काकरे मन्ठी टे हम्रे थारू? धेर जनहुनहे पटा नै हुई सेकठ्। यी ट्यूहार विशेष कैके थारू जात प्रकृति पुजक जात, प्रकृति प्रतिविश्वास कैना जात। उहेसे आउर चाजके पूजा करेहस् थारू गुर्हीमे किरा काटिनके पूजा कैठाँ। गुर्ही कना एक मेरके उर्नहाँ किरा हुइट्। ऊ किरा खास कैके मास–मच्छरहे काटके खैटठाँ। असिकके खैलेसे रोग नै लागे पाइठ् ओ हम्रे खेती–पाती कैना जात हुइलक् ओरसे असार महिनामे खेतवम् काम करेबेर हिला किचा जरुर लागठ्। हमार शरीरमे हिला लग्लेसे बहुट् मेरिक खटरा, खुँज्ली, लगाके मेर–मेरिक रोग फेन लागठ्। यिहे रोग विरोगहे गौर्हीपर लैजाके अस्रैले बरस दिन मनैनमे रोग कम लागठ् कना जनविश्वास बा। उहेसे यी दिन आपन घरसे रोग –विरोग निकारके गौर्हीपर अश्राइ जैना चलन बा।
यी ट्यूहार कैसिक मन्ठी टे? आब आई यकर बारेम् कुछ जानकारी लि। अँधरियक चौठिक् साझ चौकीदरवा गाउँमे हाँक पारठ्। …घुघरी भिजाउ रे घुघरी भिजाऊ’ कैह्के। गाउँमे साँही जुन चानक घुघरी (कोहरी, चानक एक विशेष प्रकारके परिकार) भिजैठाँ। दोसर दिन पञ्चमिक दिन साँझके ऊ घुघुरी खोब मिठके निँध्ठाँ।
जब दिन बुरे–बुरे करे लागि टब्बे फेन चकिदरवा फेन हाँक पारठ। …गुरही अस्राई चालो रे, गुरही खस्राई।’ यहोँर गाउँक सक्कुहस घरक छोट–छोट लवन्डिन चिर्कुटिक् गुर्ही बनैले रठाँ ओ लवन्डन जुन सोँटा। सोँटा रारक कौनो एक्के टे कौनो दुई फुल्रक बनैले रठाँ। जब अस्राई जैना हुइहिन टे लवन्डिन लावा–लावा लुगरा पहिरके टठियामे चानक कोंह्री (घुघरी) चाना नै रह्लेसे केराउ या कौनो दाल बालीसे बनल् कोंह्री ओ गुर्ही लेके गाउँक गौर्हीपर जैठाँ।
चकिडरवक् हाँकसंगे जब घर–घरसे टठियम् गुरही ओ घुघरी लेके निकरठाँ। यहाँेर जस्टक गुर्ही अस्रुइयन निकर्हीं ओस्टक गाउँक जन्नी बिशेषतः भन्सहरिन टठिया या सुप्पा ठठैटी (बजैटी) …खाँज खुजली, रोग बिरोग सक्कु लैजा कह्टी भित्तरसे चरुवापर (डगरसम्म) छोरके चल्अइठाँ। ओत्रकिल नै गुर्हीमे गैन गीत …दाङ बोले टिम्की महदेवा बोले ढोल, आमलिक रुखवातिर.. गुरही। फेन बरा मेह्रावनके गैठाँ। अस्रुइयन निकरल् करठाँ।
जब गौर्हीपर सक्कु जाने जुट्ठाँ। तब गाउँक पन्हेरवन सोँटा लेके गैलक् लवन्डनहे पत्निक पटानके लाइन लगाके ठर्हुवैठाँ। तब लवन्डिनहे गुर्ही बगाई कैह्के उहीहे ठठाई कठाँ। सोँटा लेके ठर्हियाल् लर्का बगाइल् गुर्ही ठठैठाँ। …दे घुघरी, दे घुघरी’ कह्टी। एक घचिक ठठैठाँ ओ सोँटा बगाके टठियामे लैगैल कोह्री मग्ठाँ।
लवन्डिन आपन सेकट सक्हुनहे बँटठाँ ओ बँचल् घुघरी गाउँ रजावर मर्वापर लैजाके छिट्ठाँ ओ घरक् छँपरापर लैजाके फेन छिट्ठाँ। घरेक डेहरीमे धैल अनाजमे धैलेसे अनाज बर्हठ्। बारीमे लगाइल् टिना टावनमे छिट्ठाँ। टिना टावनमे छिट्ले टिना फरठ्, नै लज्र्यालइठ्, छुट नै मानठ कना विश्वास बा। ओत्राकिल नै अइसिक कैलेसे बरस भरिक रोग बिरोग, घरेमे भूत–प्रेत नै अइना ओस्क खाँज खुजलीसे बँच्जाइठ् कना विश्वास कैठाँ।
ओस्टक नन्हंे जौन लवन्डन ठठैलक सोँटा नुक्वाके घरे नान्के बारीमे लगाइल् टिना टावनमे धैलेसे टिना टावन जोरसे फरठ् ओ उहीहे धुपाके या घोटके लगैलेसे धेरहस् खतरा, पेट बत्ठी, जुरीमे फेन लागठ् कना विश्वास फेन अभिन थारू समुदायम बा। असिके यी ट्यूहार रोग–विरोग भगैना ट्यूहारके रुपमे मान्जाइठ्।
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