घटल आकर्षण ‘थाकस’मे (थारु भाषा)

logo tharuसीएन थारु- वि.सं. २००५ सालमें स्थापना करल गेल थारु कल्याणकारिणी सभा येहा आश्विन २९, ३० आ ३१ गते एकाइशौं महाधिवेशन झापामे सम्पन्न करले छै। ६६ वरिष के यी संस्था गैर सरकारी संस्था ऐन २०३४ बमोजिम काठमाण्डौ जिल्ला प्रशासन कार्यालयमें दर्ता के वाद संस्थागत तवरले अपन गतिविधि सञ्चालन करे लाग्लै । यैसे पैहने कार्यसमिति केन्द्रमे बन्याके जिल्ला जिल्लामा भेला आयोजना करैत समाज सुधार सम्बन्धि प्रवचन दैत सम्पन्न हैछेलै। भाषा आ संस्कृति सम्बन्धि पत्रिका २०३३ साल से रामानन्द प्रसाद सिंह थारुके सम्पादन में प्रकाशित हेबे लाग्लै। येहेन चेतना मुलक गतिविधि तखुनका स्थितिमें परिवर्तनकारी कदम मानल जाइछेलै।

वि.सं. २०४७ सालके वाद थारु कल्याणकारी सभा और जातीय संस्था सब मिल्के जनजाति महासंघ गठन करल्कै आ आपन गतिविधि अधिकारमुखि आन्दोलन ओर केन्द्रित करे लाग्लै। यै अवस्थामें लोकतन्त्र आ मानव अधिकार सम्बन्धि अधिकारसब वहसके विषय बनल स्थिती में परिवर्तनकारी कदम येहा ठहर भेलै। जब २०५६ साल में भाषिक अधिकार प्रयोग कैरके काठमाण्डौ महानगरपालिका नेवारी भाषाके प्रयोग आ धनुषा जिल्ला विकास समिति मैथली भाषाके प्रयोग करैले शुरु कैल्कै। तकरा जेठ १८ गते सर्वोच्च अदालत के निर्णय बमोजिम नेवारी आ मैथली भाषा प्रयोगमें प्रतिबन्ध लग्यादेल्कै। तकरवाद नेपाल द्वन्द्वके चक्रव्युह में फँसैत गेलै। माओवादी सशस्त्र युद्धसँगे आदिवासी जनजाति, मधेसी, दलित, मुसलमान, महिला के सवाल जोडतोडसे उठे लाग्लै। राजा वीरेन्द्रके वंश नाश आ ज्ञानेन्द्र गदी आरोहन सँगे द्वन्द्व और जटील बनैत गेलै।

२०६२/६३ सालके जनआन्दोलन के वलमें संसद पुनःस्थापना कैरके विस्तृत शान्ति सम्झौता में माओवादी आ सरकार हस्ताक्षर करैत नेपाल के राजनीतिक परिवर्तन ओर नयाँ कदम चालल गेलै। तकर अभ्यास करैके सन्दर्भमें संविधान सभाके निर्वाचन करल गेलै। संविधान बने नैसक्लै त फेनो दोसर बैर संविधान सभा गठन भेलै। नयाँ संविधान में थारुके मुद्दा सम्बन्धि बहस पुराने ढाँचा से शुरु भेल्छै। थारु कल्याण्कारिणी सभा यहै समय में आपन एकाइशौं महाधिवेशन के तयारी कैर रहल छै। यथार्थ से वाहार ज्याके बहौत थारुसब मनोगत ढङ्गसे बहौत प्रस्ताव लजाबैके तयारी कैर रहल हेतै। नवसंसोधनवादी धार पकैरके संविधान में आपन अधिकार लिखावैले लालयित हैत तकरा परिवर्तनकारी कदम के संज्ञा दैत हेतै। मगर यथार्थ फरक छै कि अखुन हमसब सशस्त्र युद्ध पश्चात के समयमें चियै। अखुन अधिकारके सवाल संविधान से मात्रे सम्बन्धित नै भ्याके गोटे शान्ति प्रक्रिया से सम्बन्धित छै। लगभग चार हजार थारु बलिदानी दयाल आ सैयौं वेपता भेल अवस्थामें थाकस आपन महाधिवेशन मार्फत कोनो लवका प्रस्ताव अगा बरहेतै से विश्वास नै भ्यारहल छै। कथिले त यी में राष्ट्रिय राजनीतिक परिस्थितिके विश्लेषण कैहियो ने हैछै। सही विश्लेषणके अभाव में सही संश्लेषण नै भ्यासकैय। निकट महाधिवेशन में कम्ति में कार्यदिशा के किटान, नीति, नेतृत्व आ संगठनके विषयमें स्वतन्त्र छलफल चलैके चाहि। कार्यदिशा के किटानी आत्मगत आ वस्तुगत परिस्थिति के सही विश्लेषण कैरके मात्रे हैछै। यी विषय सबमें थाकस कथि करबाके चाहि संक्षेप में चर्चा करल जाइछै-

कार्यदिशा के किटानी के सम्बन्धमें
थाकस स्वयम् में गैरसरकारी संस्था ऐन २०३४ बमोजिम गठन भेल्छै। गैर राजनीतिक, गैर नाफामुखि आ परोपकारी संस्थाके रुपमें स्थापना करल गेल यी संस्था अखुन उपभोक्तावादी संस्कार सहितके समाज में क्रियाशिल भेनेसे स्वयम्सेवी भावसे गतिविधि में आबैवला स्थिति नै देखल जाइछै। दोसर थाकस हाँकैबलासब कि अवकास प्राप्त व्यक्तिसब जकरा जीवन के फाल्तु समय वितावैले एकटा पदके आवश्यकता रहैछै अथवा करियरिष्ट प्रवृतिके समुह जे वेसी कैरके एमाले काँग्रेसके स्थानिय तह के नेतासब समावेश रहैछै। येहेन स्थितिमें आब समाजके परिवर्तन करैबला कार्यदिशा के किटानी कठिन काम चियै। तखुन कार्यदिशाा संघर्ष केन्द्रित हेतै कि नै? संघर्ष के स्वरुप केहेन अथवा अधिकार सुनिश्चित कराबैके बाट केहेन? क्रमिक विकास के स्वीकार करैत आइ तलिक यी संस्था सामाजिक कामके प्राथमिता दैत प्रस्ताव ओहै अनुसार पारित करैत येलै। संविधान सभाके पहौनका निर्वाचन पश्चात थाकस सडक संघर्ष के ओर कदम बरहेल्कै। यहै बखत थाकसके असली रुप देखा पर्लै कि यी संस्था के हैसियत इथनिक आउट विडिङ्ग मोडेल के स्वरुप में देखल जाइबला सम्झौता परस्त से कम नै छै। आबो यकरे निरन्तरता देखल ज्यासकैये अथवा संघर्ष के लाइन सम्झौताहिन तरिका से अगा बरहाबैके एकटा उपाय चियै ठोस कार्यदिशा के किटानी मगर तकर सम्भावना कम छै। एमाले–काँग्रेसके प्रभाव से मुक्त भ्याके मात्रे तकर क्रमभंग करल ज्यासकैये। यी ज्ञान मिमांशा के वलमें सम्भव बन्याल ज्यासकैये। तर्क करैले निश्चित फोकस किटान कैरके तै फोकस के आधारमें सहि विश्लेषण करैत अगा बरहला से सम्भव छै। यी चुनौती पूर्ण सोहो छै अर्थात् जोखिमपूर्ण अवस्था के आँकलन चियै।

नीति निर्माण सम्बन्धमें
कार्यदिशा ठोस करैत मातर दोसर महत्वपूर्ण पक्ष नीति निर्माण के चियै। यते नीति निर्माण अर्थ अधिकार प्राप्त करैके क्रम में विरोधी पक्ष आ सहयोगी पक्ष किटान हेनाई छै। स्वभाविक रुपमें अधिकार राज्य पक्ष से संघर्ष कैरके छिनैके रहैछै। राज्य पक्ष हरेक मामला में व्यवस्थित साम, दाम, दण्ड आ भेद करैले सक्षम निकाय सोहो मानल गेल अवस्था में तकर से संघर्ष करनाई कठीन काम चियै। तखुन आपन संघर्षके वैधता प्रमाणित करैले नीति निर्माण चाहि। यी विचारधारा से सम्बन्धि रहैछै आ कार्यदिशा ठोस नीति बनावैले आधार प्रदान करैछै। आब के रणनीति आ कार्यनीति तय करैके महत्वपूर्ण काम जाबे तलिक नै हेतै त अलमल में यी संस्था कैहयो स्वस्फुर्त रुप में आन्दोलन करतै त कैहयो शिथिल। मोर्चाबन्दी के नीति सोहो ककर से कोन उद्देश्य पुरा करैले निर्माण करल जेतै तकर किटानी हेवाक चाहि। सहि व्यवस्थापन के खातिर सोहो नीति प्रष्ट हेवाके चाहि।

नेतृत्व के सम्बन्धमें
जकर नीति तकर नेतृत्व हेवाके चाहि। नीति बनाइबला के मात्रे थाहा लागैछै कार्यक्रम केहेन हेबाक चाहि। नेतृत्व यै से अगा यी संस्थामें करियरिष्ट सबके हालीमुहाली छेलै। संविधान सभा में अध्यक्ष लगायतके पदाधिकारी सबके उम्मेदवारी करियरिष्ट नेतृत्व के प्रमाण चियै। येहेन नेतृत्व से आन्दोलन में धोखा भ्यासकैये। खास कैरके नेतृत्व के निर्वाचन अखुन सार्वाधिक चर्चा के विषय बनल छै मगर कार्यदिशा आ नीतिविहिन संस्था में नेतृत्वके छनौट अवसरवादी सबके झुण्ड बनाबैले मात्रे हैछै। थाकस में नेतृत्व मात्रे व्यक्ति से सम्बन्धित रैह के करल जाइछै जे सर्वथा अपूर्ण काम चियै। नेतृत्व के काम, उत्तरदायीपूर्ण व्यवहार आ जोखिम के सवाल आपने में जटील विषय देखल जाइछै। आब के नेतृत्व छनौट से पैहने कार्यदिशा आ नीतिमें टुङ्गो लागैके चाहि। यदि नेतृत्व के विषय मात्रे प्रधान विषय देखल जाइछै त थाकस पुराने चिज के निरन्तरता में देखल जेतै।

संगठन सम्बन्धमें
उपरोक्त कार्यदिशा आ नीति के आधार में संगठन केहन हेवाके चाहि यी निर्णय लेनाई जरुरी छ। संगठन लक्ष्य प्राप्तिके एकटा संयन्त्र चियै। चुस्त संगठन मात्रे व्यवस्थापन में अवल देखल जाइछै। संगठन भदा बने कैहके करियरिष्ट नेतृत्व जुर्मुराबैछै। पद से प्रतिष्ठा जोरल रहैछै आ प्रतिष्ठा के चाहना में अनेकन पदसब के निर्माण करल जाइछै। भदा संगठन में व्यवस्थापकीय क्षमता कमजोर रहैछै आ कमजोर व्यवस्थापकीय स्वरुप के संगठन से लक्ष्य प्राप्ति नै भ्यासकैये। आपन धरातल विसैर के अखुन थारु जन्य संगठनसब भदा साँगठनिक संरचना तयार कैर के लथालिङ्ग बनल छै। विधान अनुरुप गतिविधिसब कमजोर बनल छै आ अराजकता बलगर। जिल्ला कार्यसमिति के अधिवेशन देश भइर लथालिङ्ग आ तकर असर प्रत्यक्ष रुपसे महाधिवेशन में देखल जाइछै। लविङ्ग शुरु भ्यासकलै यते ककरा ककरा अध्यक्ष आ और पधाधिकारी बन्याल जाय मगर कार्यदिशा आ नीति कथि हेवाके चाहि कतौ ने सुनाइ दैछै। येहेन स्थिति में संगठनके पुराने धार चलैत जेतै आ लक्ष्य प्राप्तिके महत्वपूर्ण कामसब अलमल में परतै। तकर वाद नेतृत्व के हिनताई शुरु हेतै। नेतृत्व के कमजोरी के यतहेक धृणायुक्त बन्यादेतै कि ऊ व्यक्तिसब नैतिक रुपमें कमजोर बैन जेतै। लाखौं रुपैयाँ खर्च कैरके महाधिवेशन करलाहा उपलब्धि नेतृत्व के करियर निर्माण मे लगानी हेतै ता कि ऊ कोनो दल के असल भरिया भ्यासके भविष्यमें। अन्तिम चाहना पदाधिकारी सब के व्याहा रहैछै कि चुनाव में तै सम्बन्धित दल के भोट माङ्गैत कोनो ने कोनो रुप में लाभ के हकदार बनैले चाहैत रहैछै। तैदुवारे संगठन साझा लक्ष्य प्राप्तिके खातिर कामयावी बनाबैले यकरा चुस्त आ व्यवस्थित बनाबैके बात महत्वपूर्ण देखल जाइछै।

निष्कर्ष
संसार में सैयौं विकल्प रहैछै मानव समाज के। थाकस एकटा विकल्प के रुपमें कोनो समय में आनल गेलै परोपकारी संस्थाके रुपमें। अखुन उपभोक्तावादी संस्कार से प्रभावित सबकुछो देखल गेलै त यी अवस्थामें परोपकारी भावना से नै कि स्वार्थ के समायोजन सहित व्यवस्थापन जरुरी बनल छै। अधिकार पावैवला सवाल स्वार्थ के सामायोजन चियै। थाकस लक्ष्य प्राप्तिके दिशा में कमजोर देखल गेला से आब कि त आपन कमजोरी हटावे पर्लै कि त मौजा, प्रगन्ना आ चौरासी (गादी) के अधिराज्यात्मकता स्वीकार करैले पर्लै। अखुन आदिवासी थारुसब के प्रतिनिधित्व संस्था थाकस नहाईत गैर सरकारी संस्था नै भ्याके बरघर प्रणाली देखल गेलै जे आधारभूत तहमें आधुनिक राज्य के विरुद्ध आपन स्वराज स्थापना करैत येल्छै। अविश्वास के एकटा माहौल बनल छै कि थाकस मात्र कुछेक करियरिष्ट कार्यकर्ताके स्वार्थ पुरा करै बाला सिढी बनल छै। आपन आपन लक्ष्य पुरा करैले ऊ सिढी के प्रयोग करैत येल्छै। आब के विकल्प सत्ता आ संगठन एकसाथ प्रयोग करैके देखल गेल्छै। अविश्वास के विच से यी सम्भव नै देखल गेलै। फेनो विश्वास प्राप्त करैले सोहो थाकस कार्यदिशा, नीति , नेतृत्व आ संगठन के समग्र पक्ष में एकसाथ विचार करनाई अनिवार्य देखल गेल्छै। तकर लेल युगियाद्वारा प्रकाशित द इण्डिजिनियस २००८ (पृ ३५६–५७) में लिखल्छै कि दुःख के साथ नेपाली इतिहासके यी महत्वपूर्ण घडिमें माओवादी आ एमाले के राजनीतिक अभ्याससब से आदिवासी आन्दोलन कमजोर भेल देखल गेल्छै। तैदुवारे यते कठोर निर्णय के आवश्यकता छै कि आब के थारु समाज केहेन हेवाक चाहि से उपरोक्त चाईर पक्षके आधार में प्रष्ट करे सकैबला स्थिति छै। बाँकी सब नाटकवाजी मात्रे रहैछै।

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