सुशील चौधरी– भाषा मानव सभ्यताके एकठो असिन् पहुरा हो, ज्याकर मार मनै और चराचर जगत्से आपन ह अब्वल डेखाइ सेक्लबाट । भाषा पहुर्ना डरंगा हो साहित्य । भाषा बिना साहित्यके अस्तित्व नै हो कलसे साहित्य बिना भाषा फे जिना ओत्रा सहज नै हो । उह भाषा ओ साहित्यम संस्कृति फुन्गरक फुलल रहठ । साहित्यम कविता सबसे पुरान विधा हो । हुइना ट कविताहन सबसे ढेउरनक लिखजैना सबसे कम पह्रजैना विधाके रूपमे फे हेर्जाइठ । मुले कविता बिना लिख्ल कौनो फे साहित्यकार हुक्र रह निसेक्ल हुइट । जुग सुहैना कविता लिख्लसे जुग परिवर्तन कराइसेक्ना सामर्थ रहठ कविताम । थारू समुदायमा रलक लोकमहाकाव्यके टेकनी टेक्क हमार पुर्खाआें थारू पहिचानहन एक्काइसौँ शताव्दीसम् लान सेक्लक हुइट । गुर्वाबक जल्मौटी, बर्किमार, फूलवार, रामबिहग्रा, बनगिट्वा, नचनच्वा, बरमासा, सखिया, अस्टिम्की जसिन महाकाब्य जौन सब पद्य कविताके डसीप्रमान हुइट थारू भाषा ओ साहित्यके ।
२०६९ माघ से लग्ढार कीर्तिपुरम चल्टिरलक थारू साहित्यिक श्रृंखला आब्बक बेलाम महा चोट्गरसे भाषा आन्दोलनमा ढिकल बा । और शब्दम कहवेर थारू भाषा साहित्यके लडियम भेंउरा छट्कल बा । उह भाषिक प्रवाह भेंउराके रूपम परगा कविता संग्रहम आइल बा । यी कविता संग्रहम खासकैक त्रिभुवन विश्वविद्याल, कीर्तिपुरम देशभरसे उच्च शिक्षा हासिल कर आइल थारू युवा बिद्यार्थीहुकन्हक सिर्जनशील प्रयाससे सिर्जल कविता, गीत, गजल ओ मुक्तक समेट्गिल बा । ढेउर से रचनाम थारू पहिचानके मुद्धाहन बिट्र्खोगिल बा कलसे सामाजिक विसंगति, मैया, आशक्ति जसिन श्रृंगारिक भाव झल्कना रचनाफे गुँठगिल बा । प्रवृत्तिगत रुपम श्रृंगारिक, प्रगतिशील, यथार्थवादी संरचनाके उपस्थिति रहल बा । ढेउरसे रचना बर्तमान संक्रमणकालीन समयम रलक सामाजिक उकुस मुकुस, युवा मनके कुल्बुलाहट ओ चुल्बुलाहटयुक्त अनुभूतिमूलक भाव निखोर्गिल बा शब्दके माध्यमसे ।
थारू भाषा सहित्यके बहिंगा कृष्णराज सर्वहारीक चारठो कविता यी कुठ्लीम ढैगिल बा । अस्टिम्कीक् चित्र कविताम कवि सर्वहारी अस्टिम्की चिक्रहुकन्हक मनोभाव शब्दम उटर्ल बाट । आब कहिया सम् ? कविताम कवि गैयाकेल राष्ट्रिय जनवार हुइना रातदिन जोटुइया वर्डा का कर हुइ निसेक्ना, गुराँसके ठाउँम डउना–बेबरी राष्ट्रिय फुला का कर हुइ निसेक्ना कैक आपन विशिष्ट पहिचानके सम्मान हुइपर्ना जिकिर कर्लबाट । अस्टक और कविता गुरहीक सोंटा कविताम आपन पहिचानके लाग विरोधी व्यवस्था हन् सोंटा बर्साए आह्वान कर्लबाट ।
ईह कविता कुठ्लीम कवि सुशील चौधरीक् दुईठो कविता रम्ट रम्टम ओ भोङ्गला बिहान कविता सिमोट्गिल बा । रम्ट रम्टम कविताम कवि समाजम रलक स्वाझ थारून् रम्टम भुलुइयाहुकहन् चिन्हकलाग अनुरोध कर्लबाट । आव रम्ट रम्टम आपन श्रीसम्पत् लुटैना काम नाकरी कैक सचेत बनैल बाट । अस्टक भोङ्गला बिहान कविताम समयके महत्वहन फछर््यइल बाट । कवि अमित दहित ओ सभासद् जी शीर्षकम हाल सभासद्हुकहन् विकासके लाग सचेत ह्वाएकलाग अंग्री उठैल बाट । एन्जेल कुश्मीक ऊ लैहर गइल बेला कविता झन् रसदार बाटिन् । जन्नी लैहेर जाइबेर ठर्वक का हाल हुइठ समझ समझक मनक् भाव लिख्ल बाट ।
कैलाली, जोशीपुरीक गीता दहितके धमार गीत “डखि डरिउना घने चम्फा फुल, अमृत फुले अनार सुहे हो, हो कौने फूला फुले, लाल फूला फुले, कौने फूला फुले छेट्नार रे, कौने फूला फुले सुवास नडेवैं, कौने लेहे फूलबास हो ।” फे यी कविता संग्रहके झिमलियाके काम कर्ल बा । बुलन्द कवियत्री गीत दृष्टि कहाँ बा लौव नेपाल ? शीर्षकम लौव नेपालके खाका खोज्ना प्रयास कर्लबाटी । और कवि प्रसादु थारू चिपा रो छोट्का शीर्षकके चोटगर कविताके माध्यमसे सर्वसाधरणहुकहन् राजनीतिक सिंकजा लगुइयाहुक्र कसिक ठुमठुमैठ कना बाट महा फर्छावारक अंग्रइल बाट । थारू जनकवि बमबहादुर थारू जागो थारू कविता फे यी संग्रहके गहना बनल बा ।
यी परगा कविता संग्रहम हरेक रचना बेजोड बा । महेश कुचिला, रमेश दहित, जयराम चौधरी, निशा चौधरी, प्रकृति पूजा, भोलाराम चौधरीलगायत समेट्गिल बाट । अस्टक नन्दु सर्वहित, मोहनदास चौधरी, योगेश चौधरी ‘राज’, रामकुमार थारू, राम बहादुर बन्डाले थारू, लक्की चौधरी, सम्पतलाल चौधरी, सिताराम चौधरी, सियाराम चौधरी ओ सेवक सोन्चुट्रीक कविता, गजल, मुक्तक यहाँ सिमोट्गिल बा ।
दुई चार बरस पहिल आपन रचना सुनाइक लाग श्रोता भेटैना कर्रा परल बेला आजकाल आपन रचना सुनाए मनभर भावनक पोक्या पार्क पहिला कविता, गजल, मुक्तक सुनैना सिख्लारा कवि श्रष्टाहुक्र कीर्तिपुरम जम्जमाक जुट्ला । शब्दके काव्यिक झंकारके संग झुमना महफिल बन्ना कम खुशीक बाट नैहो । यी कविता संग्रहम ढेउर जसिन श्रष्टाहुक्र पहिला रचनाकार बाट । साँच्चु ना ठागक कहबेला कीतिपुरके बाहुपासम मदहोश होक थारू भाषासे समागम कैक सिर्जल सुन्दर रचना यी संग्रहम माला गुठगील बा । थारू भाषाके लाग कीर्तिपुर साहित्यिक श्रृंखला ठुम्रार भाषा आन्दोलनको उठान हो । एक बरसम दर्जन ढेउर श्रष्टा जर्माए सेक्लक यी श्रृंखला पक्का फे समग्र थारू भाषा ओ साहित्य आन्दोलनके अगुवाई करी कना विश्वास बा ।
साभारः साउन १ गोरखापत्र
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