रन्जना रौतार- कपिलबस्तु /डेहरी अर्थात् कुठली ढुन्की शब्द सुन्टेकी थारू संस्कृत झल्कनहा मेरके बिशेष मेरके माटीसे निर्माण कइल बस्तुके रुपमे सम्झेक सकल्जाई। आदीवासी जनजातिके रुपमे परिचित थारू समुदायके संस्कृति झल्कनहा बस्तुके रुपमे परिचित डेहेरी आजकाल लोप होएना अवस्थामहेँ बा।
परापूर्व कालसे थारू समुदायके मनइ धान, गोहंु, लाही जैसन चीज जतन कइके रख्ना कइल इतिहास यी डेहरी संघरीजोडल डेखल्जाट। डेहरी बनवामेके पियर माटी नानके उ पियरका माटीक सानके अपने बनाएक खोजल आकारमे बनाएक शुरुवात कइलजात। और उहे आकार अनुसार डेहरी बनाएक समय लागट। कपिलबस्तु गजेहडा–९ के ठगनी रौतारके अनुसार डेहरी बनाटके धान, गोहुं अन्न सुरक्षित होएना, डेहरीमे भन्डारण कइल समान ढेर समय टक टिक्ना औ सुरक्षित होएना रहठ। पहिले पहिले थारू समुदायके चेली बिटीयनके डेहरी चुल्हा लगायत बस्तु बनाएक सिखेक परे। टे अव आके यी संस्कार कम होट जाट रहलवा। कहेकी आजकलके बिटीया अपन ढेर समय शिक्षाओर डेहट बाटन। पहिलेके जैसन प्रबृत्ति
नाईबा। उहेक नाते सायद डेहेरी बनाएना संस्कार कम होट जाट रहल नेपाल प्राबि मोर्मी कपिलबस्तुके शिक्षिका सोनाली चौधरीके कहाइ बा।
विकासके क्रममे बजारमे बह्रटे रुपमे अन्न भिट्रीयाइक खरटिन टीनके ड्रम, बोरा प्रयोगमे आइलेकबाद ठोर ठोर करट डेहरी लोप होएना अवस्थामे पुगल बा। थारू समुदायके अबके पिढी समेत डेहरी बनाएक भुलाट बाटन्। अइसन महत्वपूर्ण संस्कृति लोप होट जाएनामे थारू कला औ संस्कृति संकटमे परट बा टे डुसर ओर पैसा से घर घरमे भिट्रीयाएना समान सुरक्षित रहि कहना मान्याता थारू समुदायके दिल और दिमाकमे पैठट जाट बा। ओहेसे एकर संरक्षण और जगेर्नाके खरटिन सम्बन्धित पक्षके ध्यान जाएक पर्ना नाइ हो टे?
साभारः गोरखापत्र कार्तिक २१
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