श्याम सि टी- हमरे समाजमे जन्मेली, समाजमे सब कुछ करेली। समाजमे काम करटे करटे हमरे यी अमूल्य जीवन गवाँडेली। हम्मन यटना पटा फिर नाइ रहट कि हमरे समाजमे जनम लैके समाजके लिए का करेक परी, हमरे का करे जनम लेहले बाटी, एकर उत्तर सायद हमरे नाइ डैसेकी। लेकिन जब हमरे पैदा होइल बाटी टे हम्मन जीवनमे का करेक चाहीं? यी प्रश्न पर हमरे सोंच सेकलजाई। जब हमरे यी समाजके सदस्य होली टे हम्मन आपन सदस्यताके चन्दा डेहेक चाही। जौन हम्मनके यी अनिवार्य कर्तव्य हो। जौन चन्दा केवल धन के रुपमे नाइ डै सेकलजाइ। यी चन्दाके रुपमे टे हम्मन आपन प्रतिभा, परिश्रम और त्यागके बल पर समाजके अइसन चीज डेहेक चाहीं जेकेसे पूरा समाजके जीवन भविष्यमे सुखमय और उन्नतिशील बन सेके।
अपने सब जीवनके कार्यकलापके सिंहावलोकन कइके अगर ओही यी अनुभव होइ कि ओकर जीवनसे समाजके कौनो हानी नाइ होइ लाभ भइलबा टेे ओकर जीवन सार्थक होइ।
हमरे डेखलजाइ टे समाजकमे अइसन बहुत उदाहरण मिली कि का करे मृत्यु पर लोग सन्तोषके सास लेहेक बजाय एक ठन्डी आह भरके कहन कि एक भलाद्मी चल गइलन । टे समझेक चाही कि आपन कर्तव्य पूरा कइके गैलाँ। समाजके कुछ डइके गैलां। लेकिन केउ केउ समाजमे अइसन काम कैले रहेलन कि मरिगइलेक बाद मनै कौनो अफसोच नाई करेलन। मरि गइल ठीक होगइल कहेलन। के केटना कइसेकी? यी साधन सेवा कैके अपने भी आपन समाजके रिन चुका सेकलजाईटा कि अन्त समयमे आप यी सन्तोष प्राप्त कई सेकी, हम समाजमे आपन कर्तव्य पूरा कइले बाटी।
कपिलवस्तु
साभारः गोरखापत्र कार्तिक २१
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