लखन चौधरी।
पहिले–पहिले बुडु–बुडीहुक्रे कहै–‘बरे जार बा रे लर्को, माघ लहाई सेकजाई कि नाई, यि.., असौंक माघ किहि–किहि लैजाइठ झाने ।’
थारू समुदायके बरस भरिक भाग्य भविष्यके फैसला करुइया माघीहे व्यक्तिगत जीवनके फैसाला हुइना टिहुवारके रुपमे फेन लेहल पुर्खाहुकनके कहाईसे बुझजाइठ । पुर्खनके कहाईके प्रसंग माघके ठन्ठनैना जार हुई सेकि मने मोर मनके जार कलेक नियतिके बज्र प्रहार बने पुगल । अत्रोहि किल हो, माघीक् रौनक भरल समयमे मोर घर परिवारमे उ नियतिके बज्र प्रहार माघहा कुहिरा बनके पैठल ।
ओफिससे आयोजना हुइल पुस ९ गतेक् चुक्की कार्यक्रमपाछे घर विदामे बैठल मै सक्कु तयारीपाछे १६ गते गुन्टी गुन्टासहित गोसिनिया (सिरु) के उपचारके क्रममे नेपालगञ्ज मेडिकल कलेज कोहलपुरके सम्पर्क पुग्नु । नियमित ३ दिनके स्वास्थ्य परिक्षणके बाट उ अस्पताल मोर सिरुहे भर्ना करल । निजी अस्पताल न कहिजाए, जहाँ फेन कमैना धन्ढा ।
घर अंगनामे पेलपेल्ही आइल माघीके सक्कु ओहोर रौनक छैटी रहे । सक्कु मनै आ–आपन प्रियजनसे माघी मनाइक लाग घर फर्कटी रहै कना छनक बस पार्कके यात्रुनहे हर्लेसे पुगे । ओहोर अस्पतालमे बरा डटसे डेरा जमाके बैठल हम्रहनहे माघी मनाई घर जाई मिलिकी नाई । टैहिकोना, अस्पतालेमे माघी बिटनाजाए, कहिके ढिउर छटपटी होए । बेलाबखत यहे बारेम अस्पतालमे भर्ना हुइल बेराम्ह्या ओ कुरुवाबीच माघीके बिषयमे छलफल फेन होजाए । कैलालीके धनसिंहपुर गाविस सुर्यपुरके सियाराम चौधरी, टीकापुर बजारके सखी कस्मेटिकके सञ्चालक पुरन चौधरी, टीकापुर सुकुम्बासी बस्तीके रामकृष्ण बुढालगायतबीच माघ मनाई जाइ नैमिली टे अस्पतालमे एक पसेरी सिकार लेहे माघ मानब कहिके बातचित चले ।
घरमे दुई ठो छोट–छोट बच्चा छोरके अस्पताल पुगल जोरी न पर्ली हम्रे । बच्चन्के याद बहुट सटाइठ, बिचमे बच्चान्हे फेन बेराम परल फोन गैलपाछे डाई बाबान्हे कत्रा छटपटी हुइठ कना पीडा भुक्तभोगीहुकनहे किल पटा रहठ । एक दिन मोर बरकी छाई साधना (साधु) फोन करके कहल ओजु (ओजस्वी छुट्की छाई) खोब उल्टी करल कहिके । गोसिनिया सिरुक् लग्गे फोनमे बाट करे सेक्ना मोर अवस्था नैरहल ।
बाध्यतावंश, नैसेकके बाहेर निक्रे परल रहे । औरे दिन फोन करके–बाबा कहिया अइबो, मोर लाग खैना चीज नानडेहो ना कहुइया मोर ओजु छाई उ दिन फोनमे बात फेन नैकरल अवस्थाहे सम्झटु टे अभिन फेन आँख रसाजाइठ ।
माघीके अवसरमे बहुट बरस पहिलेहिसे कैलालीके गदरिया–६ बेनौलीमे बहुट भारी माघी मेला करिब एक हप्तासम लग्टी आइल बा । हम्रे बेनौलीके स्थानीय जो पर्ली । विगत बरसके मेलाके रौनक, मुह लाल कराके गालेभर पान खैटी हिरोल्ना झुलल याद बहुट सटैटी रहे । बिच–बिचमे साँघरिनसे करल फोन टे झने बेचैन बनाडेहे । धनगढीसे गाउँ जैटी किल गाउँमे तीन पानीके रस पार्टी होए या सामान्य भेटघाटमे भेला होजिना साँघरिया अरविन, दुर्जन, हर्कलगायतके फोनसे टे झने उ अस्पतालके वातावरणमे मोर भौतिक शरीर किल बा कि जसिन लागे । मने का कर्ना हो, आपन उदेश्यमे अडिग हुई परे । मने–मने आपन चित्त बुझाउ जीउ बाँची टे लाखौं कमा लेब, असिन माघ टे कत्रा मनाई मिलि कत्रा । यहे बाटसे गोसिनियाहे सान्त्वना फेन डेटी रहु ।
दिनप्रति दिन सुधरटी गैल गोसिनियाके अवस्था ओ औषधोपचारके क्रममे संलग्न डाक्टरके डिस्चार्ज नोटिस्से अस्पताल रुपी पिजरामे कैद हुइल पंक्षी उरसेकल रहे । आपन सपना संसार सयर करसेक्ले रहे । ओ पुस २८ गते मजासे माघी लहैना संगे मनाई मिलि कना आशा ओ सपना बोकके घर पुग गैल । करिब १३÷१४ दिनके सिहरल जीउ सन्ठाई नैपैटी २९ गते सुव्वर मर्ना दिन परगैल । सबजहन घर जैना हतार । सक्कु जहन गाउँ जैना बसमे बैठाईलपाछे हम्रे छुट्की छाईसहित बड्डा–बड्डी धनगढी रहल घरसे माघ लहाके विहन्नी ढिरेढिरे गाउँ जैना मनस्थिति बनैटी बेरी खा खुके सुट्ली ।
नियतिके लिला कना हो कि, दैवके खेल । हमार सुट्ले १५ मिनेट हुइल रहे कि नाई । फोन आइल–‘राजकुमार टे घर नैपुग्टी बाइक एक्सिडेन्टमे परगिनै, बहुट खुन बहगिलिन् गाउँमे उपचार नैहुइल आब, धनगढी अइना तयारीमे बाटी’ फोन करुइया पारोसी भटिजुवा संजिप कहलै । मोर टे होस उरगैल, सुटल मनै उठ गैनु, मजासे चिक्कन नैहुइल मोर बड्डीके रोहाढाही सुरु । काठमाडौंसे माघी मनाई धनगढी पुगके गाउँ नेगल मोर भैया घर नैपुग्टी फेरसे धनगढी पुगल ओ सेती अञ्चल अस्पतालमे भर्ना हुइल । दाहिन आँखिक टरे, नाकेक् पाँज्रे डोडर परल रहिस ।
भैयाक् उपचारके लाग दौरधुप करट–करट माघ लहैना भुल गैल कना हो कि, फुर्सद नैमिलल । आघेक् दिन बहुट रौनक छाइल माघी एकाएक फिक्कल होगिल । गाउँ जैना आशा मरगिल । टाटुल–टाटुल ढिक्री संगे सुरिक सिकार खैना, घरेक पस्गाक् आगी टप्टी डफला बजाके ढमार गैला रहर टुट गैल । बेलाबखत गाउँसे भैयाक् हालखबर कसिन बा ? कना बाबाक् सवालसे मुटुमे टेगारी मारल हस किल लागे । बाध्यताबंश जवाफमे ठोरचे छोट लागल बाटिस, काल टे पक्का फेन घर पुगब कहे परे ।
एफएमसे बोजल–हर साल आउँछ माघी, सखियै हो माघीके पिबी गुरीगुरी जार कना गीत ओ कहु–कहु धनगढी बजारमे माघौटा नाच नचुइया टोलीहुकन डेखके किल माघी आइल बा, कना अभास हुइल ।
तीन दिनके अस्पताल भर्नापाछे अस्पतालसे विदा लेहल हम्रे तीन गते साँझ्याके किल गाउँ पुग्ली । उ बेलासम डाई बाबा बेचैन होगिल रहिट ।
विपत्ति पक्का फेन घण्टी बजाके नैआइना हुइलओरसे कब का हुई अनिश्चित बा । नियतिके प्रहारे–प्रहारके दुष्चक्र कब किहिके घेरी पटा नाई हो । मने विपत्तीसे बचेक् लाग हरेक् पाइला फुकके किल टेकहो रे लर्को कना पर्खनके कहाई आज फेन ओत्रहि सान्दर्भिक लागठ ।