रन्जना रौतार- “पचवासे खेले राजा गन्दर्भ बेल रे बृक्ष रे होना,,सखि तो रानी बेदना बेहाल,,काहे राजा पास खेले हो ”अइसन गित धेर जैसान थारु समुदाय के स्थानीय बासी के बुढ पुरनिया से लैकै युवा युवती लोगके मुह से गुन्जते रहल सुन सकल्जाइ।
अब हिन्दु नेपाली लोग महान तिउहार दशहरा औ अमौसा कुलके घर अगंनामे आते करत के अवस्थामे नेपालके कुल जन नेपाली आपन आपन संस्कृतीक ओ रहनसहन के साथ दशहरा मनाएक शुर सार करत बाटन्। औसही बिशेष कैके थारु समुदायके कपिलबस्तुके स्थानीय बासी पृथक ढसे दशहरा मनाएक तारीमे रहल थारु संस्कृतीबिद् शेषराम थारुके कहाब बा।
महान् तिउहार दशहरा थारु समुदाय भि धुम धामके साथ मनाईते आत बा। संस्कृती बिद थारुके अनुसार दशहराके पहिले दिन घटस्थापनाके जेवरा धैना दिन कहिके चिन्हाल जात। उहे दिन घरके दरबारी यानिकी घरमुली नाहाधोके झौवामे माटी नानके देउथान अर्थात डिउहार के कोन्टीके ,प्रकाशमे कम छांह लग्ना छांहीमे मकै छोराके जैवरा राख्लजात।
ओइसे तिसरा दिन कुल थरके थारुलोग पितृके बिधिपुर्वक पुजा कैके दशै मनालन्। चौथा दिन खासे कुछ नाई कैल्जात। पन्चमीके दिन दहित कुल थर भइल थारु समुदाय पितृ पुजा करलान्। जेके सरादके दिन देहलजात्। यि दिनके भि महत्वपुर्ण मानल्जात।
गाउंमे सखिया झुमरा नाचके टोली दहितके आगनामे जाके नाचगान खानपान तथा रमाईलो करलन्। छष्ठी औ सप्तमीके दिन चेलीबिटीयानके नेवता कैना लत्ताकपडा धोएना मछरि मरना,तरकारीके परिकार जुटयमा औ अष्टमीके दिन बिशेष ढिकरी पुजल देखेक पाइल्जात।
उहे दिनभर थारु समुदायके मनई ढिकरी बनाएमे ब्यस्त रहलन्। ओइसे उ दिनके ढिकराहीक दिन भी कहल्जात। संन्झलग तौन खास कैके चरे गैल गोरु बछरु औ छगडी लौटलेके बाद डिउहारमे पितृ कुलदेवी पटनाही भवानी घोडा खडग,औ भिन्नहीके स्थापना कैगैल धुसरा के भेडा बनाके पुजा कैल्जात। उहे क्रममे मनरा के शास्त्रीय धुन भी बजाएना प्रचलन थारु समुदायमे बा।
महुरैनके पाता सातु जैवरा बाबुरीके पुला साथे ढिकरीसे घरेक कोनवामे,दुवार,औ छपरामे घुसारल्जात्। पितृलोग रातीमे खाएना आएना बिश्वाससे उ ठाउंमे खाएना चिज राख्लजात्। स परिवार ढोगभेट कैके बनल तमान परिकारके खाइल्जात्। औ गाउंके बढघरके घरमे झुमरा झररा नाच नाचल्जात ओ उहे रात थारुअगुवालोग नाचगान कैके रातभर जाग्राम बैठालन्।
ओ नवमी के दिन आउर ज्यादा महत्वपुर्ण मानल्जात्। यि दिनके मुर्गहवा दिन भि कहलन् थारु समुदाय। ओ पितृ पुजा करतके मुर्गाके बली देहना होतके यके मुर्गहवा दिन भि कहल्जात। कुल जैसन् मुर्गाके संख्यामे घटबढी होत। भिन्न्ही मुर्गा बैठेकेबाट धुसरा के भेडा बनाके ओके काट्के भिन्न्ही मुर्गाके बली देहल्जात तथा मुर्गा के मासु ,ओईसे मछरी,धुसरा भांजीके साग पितृपुजन करेक अर्निवार्य खाना बनाएक परत कहल्न् कपिलबस्तुके गजेहडा ९ के रामअवतार थारु।
थारुके अनुसार पितृके पुजा कैगैल खाना उ घरेक बेटवालोग खाएन चरल रहलमे आजकाल तौन बिटीया भी खालन।भिन्नहीके खानाकेबाद डिउहारमे रहल पुजा कैगैल समान पतरी पाता औ अन्य फुहर समान सब बहारके किनरहीके नदिया कुलवा वा तलाउमे अश्राएना कैल्जात। यि काम के तौन पित्तर पुहैना कहल्जात्। गाउंभरके महिला बढीया परम्परागत पहिरनमे सजके ढकियामे खानपान दारुसहित पित्तर अश्रालन्। नाचगान कैना टौली भि बढघरके घरेसे सांघरी नाचते जालन्। दशमी के दिन भुईहर ठनहवामे गावंभरके घरके दरबारी एक पाव दारु जैवरा औ बाबुरीके फुल लेक आलन्। बढकीमार गित महाभारत महाबाब्यमे आधारीत लोक महाकाब्य डिउहार के देवताके टिक्का लगाईते घरे लौटलन्। घरघरमे पारिवारिक टिक्का लागइलेकेबाद गावंके बढघरके टिक्का अर्थात राज टिक्का लागाए जालन्।
दिनभर टिक्का लगाएना कार्यक्रम चल्ते रहत। गावं गावंमे नाचगान चल्ते चलत दशहरा भि ओरात्। रा रावण उपर बिजयी हासिल कैगैल दशहराके दशवां दिन दुर्गा महिसासुर के बध्ध कैल तिथीके बिजया दशमी कहल से भी थारु लोग महाभारत महाकाब्यमे आधारित बड्किमार थारु लोक महाकाब्यके गित गाके दशहरा मनालन्। शक्तिपुजाके तिउहारके रुपमे पुजले सेभी दशहरा बिशेषतह पितृपुजाके पावन तिउहारके स्पमे स्थापित बा। थारु समुदायमे। ओईसनते रामबिग्रह गीत ओ कृष्णा चरित्र औ शिव पावृती महात्म्य पनि नाईगाएना नाई हो थारु समाजमे।
सकुनी मामाके सडयन्त्र भीमके पराक्रम बिराट राजाके एस द्रोपदीके चीर हरण के सन्दर्भ बुलसे ज्यादा चर्चित रहल बा। कुंवार शुक्लपक्षमे पर्न दशहराके बर्का दशहरा कहल्जात्। बढका दशहरामे पुजा करेक नाई सकहि ते दशहरामे बिधिवत रुपमे दशहरा मानाएक सकल्जात्। पहिले पहिले गावंके मनाइ एकट्ठे होईके सल्लाह कैके कार्त्तिके दशहरा भी मनाएना चालन रहे। दशहरा थारु समुदायमे माघिके बाद के बढी तिउहार हो। बिबाहके जोडीके लिए दशहरामे बिशेष पहुर लेके ससुरालीमे टिक्का लगाए जाएक पर्न यी समुदायके मान्यता बा।
यिहेबिच थारु उत्थान समाज कपिलबस्तुके आयोजनामे जयनगर गोरुसिगैमे ३ दिने थारु संस्कृतीक मेला सम्पन्न भइल बा। जेहमेमे थारु समुदाय अन्तरगत पर्ननह सांस्कृतीक पहिरन,खानपान थारु संग्रालय भि राख्लगैल रहे जेकर भितर भि तमान मेरके थारु संस्कृतीक झलक प्रस्तुत कैके मनाईलगैल रहे।
पाछेके क्रममे बढघर प्रणलीमे आई ब्यवस्ता अन्य समुदायके प्रभाव ओ समुदायके सचेतनाके अभावके कारणसे दशहरा थोर थोर औपचारीकता औ अनावश्यक तडक भडक होइते जात देखल्जात् बा। उपयोगी संस्कृतीके संरक्षण तथा कुरीति के अन्त्य करेक सचेतना औ सहकार्य होएक पर्न बहुत जरुरी होइगैल बा।औ अब बन्न संबिधानमे थारु संस्कृतीके बिशेष स्थान देहेक पर्न जरुरी बा।