चारठो मुक्तक

निरंकुश राजतन्त्रहे बगाके आइल लोकतन्त्र
शोषण ओ दमनहे भगाके आइल लोकतन्त्र
अरे देश खउइया नेतौ आब खेल्वारे नसम्झो,
नारा लगाके जनतन् जगाके आइल लोकतन्त्र।

. कुर्सीक् लग किल लरके देश नै बनी
विदेशीन् के भरमे परके देश नै बनी
सुनी नेता जी, आई हाँठमे हाँठ मिलाई,
अपन लग किल मरके देश नै बनी।

आजकाल्ह भोजम् डोला डोली हेरागिल
डिस्को भाँगरामे पुर्खन्के बोली हेरागिल
कहाँ गिल हमार संस्कृति ओ पहिचान?
दिदी बाबुन्के लेहँगा चोली हेरागिल।


अपन जिन्गीहे खिडोरके हेर्नु
चिर्राइल रहे बिडोरके हेर्नु
सुखके टे नावै नै, दुःखे–दुःख बिल्गल
रह्वास नैहुइल डिडोरके हेर्नु।

सत्यनारायण दहित
हसुलिया–८, मनाउँ, कैलाली
गजल

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