दिलबहादुर चौधरी– गुर्सुरावन
माघ थारून्के सबसे भारी त्यौहार हो। देवोका देव महादेव कहेहस थारून्के त्यौहारमे सबसे भारी त्यौहार हो यी। लिखेबेर हमरे ढेरहस त्यौहारहे भारी कहठी, मने माघहे भारी किल नाई, महा भारी कहठी। यी महा भारी त्यौहार का करे? प्रश्न उब्जे सेकठ। यकर सहजे उत्तर का हो कलेसे माघ हमार बिचमे एक रुपमे नाई बहुरुपमे आइठ। बहुकारणसे हमरे यिहीहे भारी मन्ठी। जस्टे माघ हमार आर्थिक बर्ष फे हो। आर्र्थिक बर्षके कारण हमरे माघसे लावा कामके शुरुवात कर्ठी। अतरै किल नाहीं, माघ थारून्के स्वतन्त्रताके त्यौहार फे हो। स्वतन्त्रताके त्यौहार रहलेक ओरसे थारू यम्ने खोजनी–बोजनी कर्ठैं। मनमे लागल दिलके बात खोल्ठैं, खुलके बोल्ठैं, आपसी रिस द्वेष, मनमुटावहे त्यगठै।
माघ थारून्के लाग सबसे भारी धार्मिक महत्वके त्यौहार फे हो, सबसे भारी लहान फे। टबमारे थारू समुदायके लर्का बच्चासे बुह्राइल मनैसम यी दिन अनिवार्य लहैठैं, लहैनासे पहिले जल देवताहे फूला, चाउर ओ रुपिया पैसा चहै्रठैं। अपनसे भारी मनैन्से आशिर्वाद लेहठैं। यी दिन लहैलेसे बरसभर अन्जानमे कैगिल सब अपराधहे भगवान क्षमा कर्ठैं, पापनाश हुइठ ओ पुण्य मिलठ कहना आम मान्यता बा। कहजाइठ कि यी दिन दुःख बिमार परल, अतिबृद्ध ओ अशक्त मनैबाहेक बाँकी मनै नाइ लहैलेसे नरकके भागीदार हुइठैं।
जलदेवताहे रुपिया पैसा चह्राके पानी खेलाजिना यी ऐतिहासिक दिन फे हो। पुष अन्तिम दिन कलेक थारू क्यालेण्डर अनुसार, बरसके अन्तिम दिन फे हो। टबमारे थारू समुदाय अन्तिम दिनके बिदाई ओ लावा सालके स्वागतके लाग जिता मर्ठैं। माघ १ गते लावा साल ओ लहान हुइलक ओरसे समुदाय पुष अन्तिम दिन सेक्नासम रतजग्गा कर्ठैं ओ १ गते लडीया, ताल, तलैया, नल्कामे लहैठैं, सूर्यदेव ओ देवोका देव महादेवके पूजा आराधना कर्ठैं। ३ से लैके ७ उँजरा चाउर ओ सेक्नासम हर्दी, तेल, नोन, मिर्चा आदि निसराउक रुपमे निकर्ठैं ओ परघर गइल चेलीबेटीन् दान कर्ठैं, अइसिन कर्लेसे पुण्य मिलठ कहना कहाई बा।
लावा सालके सूचक
हमहन सकहुन पता बा कि माघ थारून्के लावा साल हो। मने लावा सालके सूचक का हो? यकर बारेम किहिनो–किहिनो, कबोजबो भ्रम हुइठ, कबोजबो अष्पष्टता ओ बेवास्ता फे। उहे अष्पष्टता ओ बेवास्ताके कारण कतिपय मनै शुभकामना लेना डेना ओ सेवा–सलाम लग्ना भुलाजिठैं। मिहिन लागठ, शुभकामना लेना डेना, मीठ मीठ खैनापिना, सखिया, सहेलिया, गोही, गोचा, गोचाली, सँघरीयन्से राहरंगी कर्ना, नाचगान कर्ना, लावा कामके शुरुवात कर्ना लावा सालके सूचक हो। तिथीमिति, बार, चालचलन आदि समेटल क्यालेण्डर प्रस्तुतकर्ना फे लावा सालके सूचक हो। यिहे सूचक अनुसार नेपालमे बैशाखसे बजारमे क्यालेण्डर प्रस्तुत हुइठ कलेसे भारत लगायतके तमाम देशमे अँग्रेजी महिना जनवरीसे लावा क्यालेण्डर प्रस्तुत हुइठ।
यी सक्कु बातहे ध्यान डेटी थारू कल्याणकारिणी सभा कैलाली देशमे पहिलचो अपन लावा साल माघके पूर्वसन्ध्यामे अर्थात् २०७० पुष २८ गतेक दिन पत्रकार सम्मेलन कर्टी माघीके लाग ३ दिन बिदा मागल प्रेस बिज्ञप्ति बितरण करल ओ थारून्के चालचलन ओ बिदा समेटगिल ‘थरुहट क्यालेण्डर’ सार्बजनिक करल। थारू कल्याणकारिणी सभा कैलालीसे देशमे निकारगिल यी पहिलक्यालेण्डर थारून्के ईतिहासमे एक ऐतिहासिक दस्तावेज हो कलेसे फरक नाइ परी। थारून्के इतिहासमे यकर अपन महत्व पाछेतक रही, यमने दुबिधाकर्ना ठाउँ नाइ हो। जस्टे आज देशमे परिचय बनासेकल थारू साहित्यकार कृष्णराज सर्बहारी ‘थारू भाषाको साहित्यमा कैलालीको योगदान’ नामक लेखमे कैलालीके देनहे समेटले बाटैं, थारू कल्याणकारिणी सभा कैलालीके यी देनहे फे कोई जरुर समेटही कलेसे शायद ज्यादा नाइ हुई। ‘थरुहट क्यालेण्डर’ प्रस्तुत हुइल, मने थारू सम्बत का करे नाई कहना बात फे आइसेकठ। मने थारू सम्बतबारे अभिन अष्पष्टता हुइलेक ओरसे सभा यिहके प्रचलनमे नाई नाने सेकल हो। बरु स्पष्टताके लाग एकचो बृहत छलफल कर्ना फे निर्णय कर्ले बा।
सभाके यी प्रशंसनीय कामहे कोई मामूली माने सेकठ। मने यी कोई मामूली बात नाइहो। ‘थरुहट क्यालेण्डर प्रस्तुती एक आन्दोलन हो, निरन्तर चल्ना एक अभियान हो।’ थारून्के चालचलन, संस्कृतिहे बेवास्ता करुइया सरकार ओ राज्यके बिरुद्ध थारू कल्याणकारिणी सभासे चलागिल एक शिष्ट ओ शालीन आन्दोलन हो। थरुहटसे निर्बाचित ओ छनौट हुके उप्पर गैल सभासद, माननीय मन्त्रीहुक्रनके थारू संस्कृतिहे हेल्हा कर्ना, हेप्ना प्रबृत्ति बिरुद्ध उठल एक दमदार झापड हो। थारून्के चालचलन, संस्कृतिमे एकरुपता नन्ना, ओकर संरक्षण ओ सम्बर्द्धन कर्ना एक महान अभियान हो। एक ऐतिहासिक ओ सराहनीय काम हो, जेकर प्रशंसा जरुरी बा। मै यी कदमके मुहभर प्रशंसा करटुँ। अइसिन कदम आउर चाले कहके कामना करटुँ।
थारू कल्याणकारिणी सभासे यी क्यालेण्डरके नाउँ ‘थरुहट क्यालेण्डर’ का करे ढरगिल? यी बारेम फे कतिपय मनैन्के मनेम सवाल उब्जे सेकठ। थारूहुक्रे आदिअनादिकालसे बसोबास करल वजहसे थारून्के नाउँसे यी धर्तीके नाउँ थरुहट हुइल तमाम ऐतिहासिक प्रमाण बा। प्रमाणके बिरोध कोई इतिहासकार करेसेकल अवस्था नाइ हो। थारू कल्याणकारिणी सभाके महाधिवेशनसे तयार करल दस्तावेजमे फे ‘थरुहट’ शब्द हिरगर स्थान पैले बा। बुझेक पर्ना बात का हो कलेसे थरुहट थारून्के आदि ठाँटठलो हो, ओइनके ऐतिहासिक पहिचान हो, शान हो। टबेमारे सभा क्यालेण्डरके नाउँ ‘थरुहट क्यालेण्डर’ ढरल हो। थरुहट क्यालेण्डर नाउँ ढरके थारू कल्याणकारिणी सभा कैलाली थारून्प्रति कौनो अन्याय नाई, बल्कि सही निसाफ डेहले बा।
ओ, ओरौनीमे
ओरौनीमे अट्रै कहुँ कि थारू कल्याणकारिणी सभा आवश्यकतानुसार नागरिक तथा राजनैतिक अधिकारके लाग आन्दोदन चलासेक्ले बा। थरुहट क्यालेण्डर प्रकाशन ओ बितरण कलेक थारून्के संस्कृतिहे हेल्हा कर्ना सरकार ओ राज्यके हेपाहा प्रबृत्ति बिरुद्धके शान्तिपूर्ण सांस्कृतिक आन्दोलन हो। थारून्के संस्कृतिमे एकरुपता आए, संरक्षण ओ सम्बर्द्धन होए कना एक सामाजिक ओ सांस्कृतिक अभियान हो। यिहेमारे क्यालेण्डरमे पच्छिउँसे पूरुबसमके थारून्के मुख्य–मुख्य चालचलनहे समेट्ना प्रयास कैगिलबा। मने यिहे नै पूर्ण क्यालेण्डर हो कहिके सभा दाबी नाइ कर्ले हो। कुछ कमीकमजोरी हुई सेकठ, फोन ओ ईमेलमार्फत् सकारात्मक सुझाव डैके सहयोग कर्बी। थारू कल्याणकारिणी सभा अइना दिनमे अपनेनके सरसल्लाह, सुझावहे आत्मसात कर्ती आगे बह्री। यी आन्दोलनहे सफल बनाइकलाग सभा “एक घर, एक थरुहट क्यालण्डर”के अभियान चलैले बा। अभियानहे सफल बनैना जिम्मा अपने हमार सक्हुनके हो। टबमारे सब्जे आई, हाँठमे हाँठ, कन्धामे कन्धा मिलाई, थारू कल्याणकारिणी सभाके सांस्कृतिक आन्दोलनहे आघे बह्राई। “एक घर, एक थरुहट क्यालेण्डर” के नाराहे सार्थक बनाई।
साभारः २१ माघ, गोरखापत्र
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