श्याम गोंइजिहार– राज्यक प्रति जनतन्के आत्मीयता हुइना चाही। आत्मीयता टब उत्पन्न हुइठ, जब राज्य बिना भेदभाव सक्कु रुपसे स्विकारठ। राज्यक मुल कानुन सक्कु जनतनके धर्म, संस्कृति, भाषाहे समान रुपसे सम्मान करठ। राज्यक सब अंगमे समानुपातिक प्रतिनिधित्व रहठ। राज्यक मुल कानुन सक्कु जनतन समान मानठ। मनो हमार देशके अदुरदर्शी शासकन्के विभेदकारी नीतिक कारण समाज आज जटिल समस्या भोगटा। सन् १९९६ टक टो राज्य आदिवासीन फरक समुदायक रुपमे स्वीकरले नि रहे। खासकैके पञ्चायती कालसे सन् १९९० टक राज्यक बिभेदकारी नीतिक कारण नेपालके आदिबासी भुमिपुत्रन्के धर्म, संस्कृति, भाषा संकटमे पारागिल। आदिबासीन्के विविधता, धर्म, संस्कृति, भाषाके विविधताहे हतोत्साहित करागील ओ विविधतक बात करुइयन बिखण्डनकारीक आरोप लगागिल। राज्यक यीहे विभेदकारी ओ एकाधिकारवादी नीतिक कारण आदिबासी सीमान्तकृत हुगिनै ओ अपन संस्कृतिक अधिकारसे वञ्चित बातैं। अब्बेक परिवर्तित अवस्था मे फे आदिवासीन अधिकार डेना सवालमे शासकन्के सोंचमे खासे परिवर्तन नाइ डेखाइठ।
अब्बेक नविन युगके शुरुवातके अवस्थामे हम्रे आदिवासीन्के अधिकार सुनिश्चित कैसिक कैना हो? यीहे आजके अहम मुद्दा हो। अक्खर बन्ना संविधानमे हमार हक अधिकार पहिचान सुनिश्चित हुइना चाहि। प्रदेशके रेखाङ्कन ओ नाउँ संगसंगे समानुपातिक प्रतिनिधित्व देशके मुल कानुनमे उल्लेख हुइना चाहि। प्रदेशके नाउँसे अपनत्व महशुस हुइना चाही। टबेमारे प्रदेशके नाउ ढरेबेर ऐतिहासिकता, भाषा, संस्कृति हे प्राथमिकता डेना मुनासिब बिल्गाइठ।
दा¨देउखुरी उपत्यकामे थारू प्रागऐतिहासिक समयसे बैठटी आइटैं। दा¨ उपत्यकाके भौगोलिक ओ पूरापाषण वातावरणीय अध्ययन कैके जर्र्मन पुरातत्वविद गुदरुन कोरभिनस उल्लेख करले बाटिन की, दा¨ उपत्यकाके भित्री तराईमे थारू पुरापाषण ओ नवपाषण यूग अर्थात् दश लाख इशापुर्र्ब से बैठटी आइल बाटै। अस्टेके जनकलाल शर्मा ओ एनआर बनेर्जीक अनुसार थारू दा¨ उपत्यका मे दुइ सय हजार वर्षसे बैठटी आइटैं। थारू जातिन्मे मलेरिया रोगप्रति रहल प्रतिरोधात्मक क्षमता फे प्रमाणित करठ की थारू तराईक् घना जंगलमे आदिम कालसे बैठटी आइटैं।
नेपालके पुरुबसे पछिउ तराइमे बैठल थारू जातिनमे भाषागत, मुखाकृति, रहनसहन, थोरबहुट संस्कार ओ संस्कृतिमे विविधता डेखाइठ । के.डब्लु.मेयरके अनुसार थारू कोइ एक जात किल नाई हुके कइ जातीय समुह मिलके बनल समुदाय हो। राना, कठरीया, डंगौरा, कोचिला आदि यकर उदहारण होर्इं। संसारमे अइसीन कै उदाहारण बा, जहाँ तमान आदिबासी समूह फरक–फरक ठाउँसे फरक–फरक समयमे एक ठाउँमे आके बैैठ्ठैं, समान वातावरण ओ समान परिस्थितीक कारण कलान्तरमे ओइनमे समान मानवीय व्यवहार ओ संस्कृति विकास हुजाइठ, ओइने एक समुदाय बनजिठैं। थारू समुदाय यकर अपबाद नाइ हो। थारू शब्दके उत्पति ठहरे शब्दसे हुइल मानाजाइठ, जेकर अर्थ रुकल हुइठ, अर्थात् आदिम जंगली मनै तराईक घना जंगलमे रुकगिनै ओ ओहैं रहे लग्नै, कालान्तरमे ओइनही थारू कहलैनै।
सामान्य बोलचालके भाषामे थारू शब्दसे पुरुष जनाजाइठ। अतः कहे सेकजाइठ थारू संस्कृति हो, थारू भाषा हो, थारू जातीय समूह हो, थारू वहुपहिचान हो। थारून्के बैठल ठाउँ थरुहट/थरुवान हो। यी शब्द एकल पहिचान जनाइठ कना भ्रामक ओ संकिर्ण बुझाइ हो।
नेपालके प्रागऐतिहासिक सम्मानके लाग, पुरातन संस्कृति–सभ्यतक रक्षक लाग, थरुहट/थरुवान नमाकरण करना जायज डेखपरठ। रहल बात सीमाङ्कनके टो समान भौगोलिकता, संस्कृति, भाषा, रहनसहन भेषभुषा रहल भौगोलिक क्षेत्रहे मिलाके रेखाङ्कन करलेसे राज्य बलगर रहि ओ देश विकास तीब्र गति लेना सम्भावना बिल्गाइठ। भौगोलिकताहे किल प्राथामिकता डैकै रेखाङ्कन करल रहि टो वर्तमान अवस्थाहस अपायक एवम् पुर्वाग्रही रहि जिहीसे असमानता उत्पन्न हुइ। सामर्थ्य तो मनैन्मे रहठ। प्रत्येक भौगोलिकतक अपन–अपन विषेश महत्व, बलगर पक्ष बा। सबके समन्वयसे देश बल्गर रही ओ समानुपातिक विकास हुइ।
संविधानसभा–२ मे हमार हक अधिकारके लाग बलगर ढंगसे अवाज उठैना आजके आवश्यकता हो । हमार ऐतिहासिकता, संस्कृति, भाषा, समानुपातिक प्रतिनिधित्व ओ अस्तित्वक लाग एकजुट हुइना बा। यकर लाग सब पार्टीक थारू सभासद हुक्रे एकमत हुइना जरुरी बा। संगसंगे गैर थारून् फे यी बात बुझाके अपन पक्ष बल्गर बनैना आजके आवश्यकता हो। यी समभव फे बा, का करे की सब पार्टी हुक्रे थारूलगायत सक्कु आदिबासीन विशेष अधिकार डेना वाचा करले बाटैं। यदि सब थारू सभासद जोरडार रुपमे यी मांग उठैही टो हमार संस्कृति, भाषा ओ समानुपातिक प्रतिनिधित्व सहित थरुहट/थरुवान प्रदेश बन्ना ढेर सम्भावना बा।
फरक–फरक राजनीतिक एवम् वैचारिक पृष्ठभूमिसे प्रतिनिधित्व करल सभासदन् एकटे अन्ना सहजे तो नाइ हो। मनो समयके माग ओ आवश्यकता यीहे हो। अगर थारून्के छाता संगठन थारू कल्याणकारिणी सभा यी पहल करी टो सहज रहि ओ स्वभाविक एवम् सान्दर्भिक डेखाइ।
साभारः २१ माघ, गोरखापत्र