रन्जना रौतार– पुस पकाई माघ खाई कहना कहावतके दिन आ गैल बा। अर्थात् माघी तिउहार बिषेश थारू समुदायके घर अंगनामे आगैल बा। ओसने टो पुस मसान्तसे जो माघीके शुरुवात भईल बा। दुबिया–८, कपिलबस्तु निवासी दिपक थारूके अनुसार उ जिल्लाके पश्चिमी भेगके थारू समुदाय पुस मसान्तके दिन सुवर काटके खाके टब नहालन् टे जिल्लाके पुर्वी भेगके बासिन्दा माघ १ गतेके दिन नहाधोके पूजापाठ कैके चाउर छुके माघीके खिचडी खाके मनाएना चलन बा । बकिन माघ १ गते सब थारू समुदाय भिन्सरही उठके किनरहीके नदियामे जाके नहालन्। यके माघी लहान कहल्जात।
माघीके समयमे बिशेष कईके “सखियै हो माघीक पिली गुरी जाँर” कहना गीत कुलके मुहेमे झुलल रहट्। पुस मसान्तमे घर–घरमे सुवरके मास ढिकरी, मछरी लगायतके परिकार बनाके जाँर डारुके साथ खानपीन कईके रातभर नाचगानके साथ खुशियाली साटासाट करलन्। यी समयमे नचना विषेश मघौटा नाच आगेपाछे भी लोकप्रिय बा। नहईलेके बाद घरेम आके दाल चाउर नोन छुके आपनसे बढी के ढोक लागके आशीर्वाद लेहल्जात। माघके दुस्रा दिन खिचडी बनाके खाउना चलन रहल बा। यि दिनके खिचरीहवा कहल्जात।
थारू अगुवा महादेव चौधरीके अनुसार माघीमे आपन चेलीबिटीयाके उपहार देहना चलन बा। येके थारू भाषामे निसराउ कहल्जात। माघीके दिन नहाके आईलेकेबाद छुवल चाउर, दाल, पैसा औ यहमेमे कुछ थप कईके निसराउस्वरुप चेलीबिटीयन्के उपहार देहलजात। माघीमे मनाएक नैहर आईल चेलीबिटियालोग घर लौटना समयमे निसराउ लेहल्जात। माघीके दिन स्नान कैके तिलके आगी तापके वर्ष भरके पाप धोईल्जात कहना मान्यता थारू समुदायमे बा। कपिलबस्तुके लक्षमणघाट धार्मिक स्थलमे थारू समुदायके परम्परागत रुपमे उहांके नदीयामे नहालन्। उहां स्नान करहि टे मनोकामना पूरा होएना धार्मिक विश्वास भी रहल बा।
बिशेष कैके माघीके एक सम्बन्ध प्रगाढ कैना दिन भि कहल्जात। माघीके यी प्रक्रिया घरेसे शुरु होईके गाउँभर जाके सेवा सलाम लेहना तथा देहना औ खानपीन कैना चलन बा। येकेसे थारू समुदायमे एकता, मित्रता आपसी सहयोग सद्भाव आदान प्रदान कैना कार्यमे सहयोगी भूमिका खेलत्। केहुके साथे रिसवी होई ते माघीमे नहाके एक आपसमे मेलमिलाप कैल्जात। उहेक नाते माघीके सम्बन्ध प्रगाढ कैना दिनके रुपमे भी लेहल्जात। माघी तिउहारके नयाँ बर्षके रुपमे हेरल्जात। थारू कल्याणकारिणी सभा कपिलबस्तु जिल्लाके पूर्व सभापति नागेन्द्र प्रसाद रौतारके अनुसार पुष मसान्तमे आ आपन लेनदेन, हरहिसाब चुक्ता करेक औ माघ १ गतेसे नयाँ हिसाब किताब शुरु करेक प्रचलन बा।
माघीमे घरपरिवार भित्रे हो या गाउँ समुदायमे, आगामी बर्षके लिए खेतीपातीलगायत यावत् अन्य ब्यवहारके नवीकरण कैल्जात। माघीमे थारू समुदायके मनई आपन घर सल्लाह करेक प्रचलन रहल बा। माघीमे भाई भाई एक ठाउंमे बैठके खानपीन करते घर सल्लाह कएना कैल्जात। घर सल्लाहमे के का जिम्मेवारी लेहना, घरके मुखिया के बनी? जैसन बातके छलफल होत। घरपरिवार भित्रे जिम्मेवारी पाइल सदस्य माघीमे स्वतन्त्र होईके हेरफेर करेक सकत। जैसे गरढुरै कैना बहरिया (घर बाहरेके कामके जिम्मेवारी) हो सेकट, यिहेकुल कामके जिम्मेवारी परिवर्तन माघीमे करलन्। यिहे समयमे घरमे मिलके रहेक वा अल्गीयाएना बातके समेत सल्लाह होत। भाईभाईमे मन नामिली ते माघीमे अंशबण्डा कैना चलन रहे।
यिहर तौन गाउँके बिकास कईसे करेब कहना सवालमे माघके पहिले हप्ताभित्रे बैठक बैठके सामूहिक रुपमे गैल बर्षके काम कारवाही बारेमहें छलफल कैलजात। बर्षके एकबेर बैठना गाउँके यी भेलाके भुरा खेल (ख्याला) कहल्जात। बिषेश कैके यी समयमे तमान मेरके लेनदेनसे सम्बन्धित बात चित होत। विगतमे माघी थारूके खरतिन अभिशाप साबित होत रहे। जमिन्दारके घरमे कमैया कम्लहरी राख्ना प्रचलन माघीसे शुरु कैगै रहे। एक ठुर कमैयाके छारा कैना औ दुसरके पशु किन जैसे ओन्हन्के खरिद कैके दास जिन्गी जिएक बाध्य पारल्जता रहे। २०५७ साल साउन २ गते तत्कालीन सरकार कमैयाके मुक्त घोषण कैलेकबाद कमैया प्रथाके अन्त्य होतके भी कम्लहरी प्रथा तौन अभिन्नो कायमे रहे। २०७० असार १३ गते कम्लहरी मुक्तिके भि घोषणा हो सेकल बा। मने देखावामे मुक्ति और ब्यावहारमे ओइनके पुनर्स्थापनके सवालमे सरकार तदारुकता नाइ देखाइसेकल बा।
अइसही विगत एक दशकसे माघीके अवसरमे विभिन्न जिल्लाके थारू समुदायमे माघी महोत्सवके रौनकता भी छाईल बा। माघी थारू समुदायके एक महान् संस्कृतिक तिउहार हो। अन्तमे माघीमे जेटना भी बिकृति बा, ओके हटाके ढेर तडक भडक ना कैके शान्तिपूर्ण तरिका से मनाए पर्ना आजके आवश्यकता बा।
लेखिका थारू पत्रकार संघ कपिलबस्तुके कोषाध्यक्ष हुइ