दिल बहादुर चौधरी, पहिलेक पुर्खा कहैं, भैयो कमरा भिजी तब पता पैबो। आज हरेक सचेत थारूनहे लागता सचमुच कमरा भिजेहस् लागता। एक समयके बात रहे, जब थारूनके क्षेत्रमे कोई नाइरहे, सिर्फ थारू ओ थारू रहैं। थारू निष्पि्कक्र रुपमे काम करैंह्, बिचरण करैंह्। उ समयमे थारूनके लाग समस्या कलेक मनै नाई बल्कि मलेरिया, हैजा, बाघ–भालु जैसिन् हिंस्रक जनावर रहैं भूत, प्रेत पिसाच रहैं। तर समयके हेराफेरीसँगे समस्या थप्ती जाइता। हरेक समस्यासे जु‰ना, समस्यापर काबु पैना थारूनके बाध्यता बनगिल बा।
परिबर्तन अनुरुप ब्वारो खेतीसे आज रोपाई खेती अपनागिल बा। राज्यसे बहिष्कृत हुइलेक ओरसे राज्यके निकायमे प्रबेश निषेधके कारणसे थारूहुक्रे सिकर्मी, डकर्मी, रिक्सा चालक, सिलाई–कटाई आदि तमाम काम सिख्ना बाध्य हुइनै। उहे बाध्यता आज एकओरसे थारूनके सफलता बनल देखिगिल बा। ओतरै किल नाहीं, थारूनके ऐतिहासिक ठाउँ यी थरुहट क्षेत्रहे, तराईहे मधेश कहल ओरसे, लिखल ओरसे, थारू लगायत तराईमे बसोबास करुइया सब आदिबासी जनजाति, मुश्लिमहुक्रन मधेशी कहल ओ लिखल ओरसे भारी आन्दोलन हुसेकल बात कहुँ छिपल नाइहो। जस्ते थारूनके पहिचान ओ हकअधिकारहे स्थापित करेक लाग थारू कल्याणकारिणी सभाके जन्म हुइल हो, ओस्ते मधेशीनके पहिचान ओ हक–अधिकारहे स्थापित करेक लाग मधेशी जनअधिकार फोरमके जनम हुइल हो। स्पष्ट बात यिहे हो। मने २०६३ साल माघमे हुइल मधेशीनके आन्दोलन पश्चात बि. स.ं २०६४ सालमे यी बिधिवत एक पार्टीके रुपमे दर्ता हुइल हो। मधेशीनसे कैगिल आन्दोलनहे नेपालमे मधेश आन्दोलनके रुपमे सर्बत्र चिन्हजाइठ, यी सत्य हो। मधेशी जनअधिकार फोरमके ‘पुरा तराईहे मधेश कहना, मधेश प्रदेश बनैना हरकत’ओ प्रचण्ड नेतृत्वके सरकारसे तराईक आदिबासी थारू लगायतके जातजातिनहे मधेशी बनाइल कानुनके बिरुद्धमे थरुहट आन्दोलन हुइल बात फे कहुँ नुकैले से नाइनुकी। यिहे बातहे लैके थारू बिद्वान महेश चौधरी’नेपालको तराई र यसका धर्तीपुत्रहरु’ कहना पोष्टामे ‘नेपालमे मधेशी बातैं, मने मधेश नाइहो’ कहके जब लिख्नै, देशमे एकमेरके तरङ्ग पैदा हुइल फे सकहुन पतै बा। अब्बे मधेशी फोरममे प्रबेश कर्लेसे फे उ समयक थारू नेतनके ‘हमरे मधेशी नाईहुई, तराईके आदिबासी तराईके धर्तीपुत्र थारू हुई’ कहके लेंरी उँचिया उँचिया कैगिल भाषण फे मजासे सुनगिल हो। दुर्भाग्यके बात ‘नेपालमे मधेशी बातैं, मने मधेश नाइहो’ कहके तोंता फार फारके भाषण करुइया उहे नेतालोग आज तराईके भारी भू–भागहे मधेश प्रदेश कहके सहर्ष घोषणा पत्रमे उल्लेख कर सेक्ले बातैं। कतिपय नेतनके अस्तहीं हर्कतसे जनता रनभुल्लमे परल बातैं।
एफ एममे रोजहस निर्वाचन बहस जारी बा। दिनेश एफ एमसे कराजिना बहसमे अन्तमे पुछाजाइता कि ‘सुदूरपच्छिउँक लाग तुहरे का सोच्ले बातो? तुँह अखण्ड सुदूरपच्छिउँक पक्षमे कि थरुहटके पक्षमे? सवाल सुनके उम्मेदवार अकमकाई लग्ठैं। अन्तमे कहही पर्थिन् कि मै यी पक्षधर। नियमित हुइना अइसिन बहससे फे पता चलठ कि चुनावके चहल पहल खूब बा। चहलपहलसे अब्बे गाउँ फे बाँकी नाइहो। नेताहुक्रे संबिधान बनैना, राज्यके पुनर्संरचना कर्ना, जातिय, क्षेत्रीय बिभेदहे कैसिक हटैना, प्रदेश कैठो बनैना ओ का नाउँ देहना से फे धेर बिकासे नारा, डगरघाट, पुलपुलेसा बनैना नारामे जा रहल बातैं। यी अवस्थासे शंका लागठ कि नेताहुक्रे संबिधान बनाई नाई, बल्कि जागिर खाई जाइतैं कि! जौन राज्य पुनर्संरचनाके सवाल, प्रदेश बनैना सवालके कारण संबिधान सभाके हत्या हुइल बा, उहे बिबादित बिषय अभिन ज्यौं का त्यौं बा। यी हिसाबसे संबिधान बनठ कि जागिर किल चलठ अब्बहीं कहले उचित नाइरही। तब पर भी आम मनैन संबिधान बनी कहके बिश्वास भर नाइहो। तर लोकतन्त्रमे चुनावके बिकल्प नाइहो, आज हुए या काल्ह, चुनाव हुइनै बा। चुनावसे तर्कना फे जायज नाइहो। येकर मतलब नेकपा–माओवादीसहितके ३३ दलहुक्रे गल्ती कर्नै, कहे खोजल नाइहो। नेकपा–माओवादीके गोलमेच सम्मेलन कर्ना, बिबादित बिषयहे मिलाके किल निर्बाचनमे जैना निष्कर्ष मोर लाग मन परल निष्कर्ष हो। यी सम्बन्धमे मिहिन का लागठ कलेसे येमने सब दलके गल्ती नाइहो। ४ भारी दलसे चुनावी घोषणा हुइल हो, छोट दल चाहके या नाई चाहके फे चुनावमे भाग लेहल हो। खैबे तो खा, नाइखैबे तो घिंच कहके खाना परोस देहल अवस्थामे, कि खाइपरल, कि घिंचेपरल कनाहस हो।
जा होय, अब हुइना चुनावमे भारी दल हो या छोट दल, सब घिंसियागैल बातैं।
उम्मेदवारबिचमे हारिक हुस्सा मचल बा। थारू बहुल क्षेत्रमे थारू उम्मेदवार फे हारिक हुस्सामे मचल बातैं। कैलालीके अक्के क्षेत्रसे ७ से १७ थारू उम्मेदवार हारिक हुस्सामे बातैं। यी अवस्थामे थारू उम्मेदवार ओ थारू जनतन भारी चुनौती थपल बा। निश्चय फे तराईक आदिबासीनहे मधेशी बनैना प्रपञ्च ओ सब तराईहे मधेश बनैना प्रपञ्चके बिरुद्धमे थरुहट आन्दोलन हुइल हो। बदनियतबश कौनो सरकारी दस्तावेजमे थरुहट आन्दोलनके बात उल्लेख नाइहुइलेसे फे थारू समुदायसे स्थापित कैगिल आन्दोलन कलेक थरुहट आन्दोलन चाहिं हो। पुरा तराईहे एक मधेश प्रदेश बनुइया मधेशी जनअधिकार फोरम (लोकतान्त्रिक) लगायत तमाम मधेशवादी दलहुक्रे यी दोसर संबिधान सभाके चुनावमे पच्छिउँ तराईहे थरुहट प्रदेश बनैना ओ पुरुब तराईहे मधेश प्रदेश बनैना कलेक फे कोई माने या नामाने थरुहट आन्दोलनके देन हो। हालके थरुहट तराई पार्टी (पहिलेक थरुहट स्वायत्त राज्य परिषद) क देन हो, थारू समुदायके देन हो कलेसे फरक नाइपरी। तर जौन भूमिके नाउँ थरुहट हो, जौन भूमिसे थरुहट या थारूवान आन्दोलन हुइल हो, जौन संगठनसे थरुहटके सवाल उठल हो, उ संगठनसे संबिधान सभामे थारू सभासद जैहिं कि नाई?प्रतिनीधित्व करे सेकहीं कि नाई? बुद्धिजीवि थारूनथे फे यी जवाफ नाइहो। भारी चुनौती बनके बैठल बा। समुदायके बिश्लेषण बा ‘थारू उम्मेदवारनके आपसी हारिक हुस्सा ओ बुद्धिजीवि ओ मतदाताहुक्रनके मौनताके कारण अइसिन हुइल हो।’
पत्रपत्रिकामे आइल समाचार ओ प्रचारप्रसारके तौर–तरीका हेर्लेसे सहिमे लागता कि अब्बे पच्छिउँमे थरुहट ओ अखण्ड सुदूरपच्छिउँके नारा, दुनु पक्षधर अन्धार, करियाकुचिल कोन्टीमे धरले बातैं। यथार्थमे यी कलेक दुनु पक्षसे अपनाइल संयमता ओ बुद्धिमता फे हो। चुनाव कलेक शान्तिपूर्ण आन्दोलन हो। शान्तिपूर्ण आन्दोलन हुइलक ओरसे जनता थरुहट ओ अखण्ड सुदूरपच्छिउँके बारेमे चूपचाप बातैं। दोसर बात अब्बे मनैसेक्नासम् कौनो उम्मेदवारके चित्त दुःखाके पठैना पक्षमे नाइहोइँ, सकहुनठे हाँ हजुर, मजा बा, अपनेहे सहयोग जरुर हुई कहके पठादेहतैं। यिहीसे का पता चलठ कलेसे अब्बेक जनता पहिलेसे चलाक फे बातैं। उम्मेदवारके मुहमे बोट देब अथवा नाइदेब कहके मानके मर्दन कर्ना फे ओइने नाइचाहथोइँ। मिहिन लागथ यिहे नै लोकतान्त्रिक संस्कार हो। जनतनके यिहे ब्यबहारसे बिश्लेषक परेशान बातैं। सबहस उम्मेदवार जनता अपनओर बातैं कहके अन्दाज कररहल बातैं।
दोसर बात जनता यी फे धेर बुझ सेक्नै कि ‘लोकतन्त्रमे मताधिकार कलेक जनतनके सबसे भारी हथियार हो, जौन हथियारके प्रयोगसे जनता, खराब पार्टी ओ मनैहे तरे गिराई सेक्ठैं ओ अपनहे साथ देहुइया मजा पार्टी ओ मनैहे उप्पर कराई सेक्थैं।’ यी बात धिरेधिरे बुझलके ओरसे फे अब्बे के कतरा पानीम बा कहके अन्दाज कर्ना कर्रा बिल्गता।बुझल जनता भारी गल्ती करेवाला फे नाइहोइँ। ओइनके बोट सुझबुझके साथे परी कहके सबजे बु‰लेसे फे हुइथ।
ओरौनीमे का कहे सेकजाई कलेसे यी चुनाव हो, चुनावमे जीतम कहके नै हारिक हुस्सा करजाइथ। अपने बलगर रहल दाबी फे हचके करे परथ, स्वाभाविक हो। मने चुनावके फे नीति नियम रहथ, ओकर पालना जरुरी रहथ। अब्बे जस्ते जस्ते बोट दर्ना समय लग्गे आइता, ओस्ते ओस्ते नेता, कार्यकर्तनमे जोश आइता, मात चरहता। दल ओ कार्यकर्ता एक आपसमे बझ्ना अवस्था सिर्जना हुइत देखा परता। तबेमारे सबजे बुझे पर्ना का हो कलेसे चुनाव कलेक नीति नियम बेगरके मनमौजी खेल नाइहो कि जस्ते मन लागल ओस्ते करी। येकर फे अपन नीति नियम बा, आचार संहिता बा, जेकर पालना सकहुनके लाग आवश्यक बा। जेकर पालनासे नै सबके कल्याण बा।
लेखक इन्सेक, धनगढीमे अधिकृत बटाँ