शुसिल चौधरी मानवअधिकारकर्मी, सामाजिक अभियन्ता हुइट। उहाँ खासकैके गीत लिखक् रुचैठाँ। केरनी, उल्झल मन, लखारगीन, ढौरागीन थारू भाषक् गीति क्यासेटमे उहाँक रचना बटिन। उहाँक् नेपाली भाषम् रचना करल कुछ गीत फेन चर्चामे बटिन। ओस्टक गीति संग्रह लौव चलन भाग १/२ मे उहाँक् ढेर गीत प्रकाशित बटिन।
नेपालगञ्ज कर्म क्षेत्र छोरके राजधानी कर्म क्षेत्र बनाइ आइलमे उहाँहे बिहान पत्रिकाके प्रकाशन संस्था थारू युवा परिवार, सर्वहित समाज नेपाल ओ बर्दियाली विकास मञ्च संयुक्त रुपमे माघ ६ गते स्वागत कर्लिन। उहाँ गीत सुनैटी आपन अनुभव फेन बटैलाँ। टब्बे बिशेष थारू साहित्यिक गोष्ठीके फेनसे शुरुवात कैगैल रहे। प्रस्तुत बा, उहे सिलसिलामे उहाँसे थारू भाषा साहित्यमे केन्द्रित होके गोरखापत्र थारू भाषा पृष्ठके लाग कृष्णराज सर्वहारीक् करल उक्वार भेट।
अपने आपन परिचय कसिक डेहक रुचैठी?
सामाजिक परिवर्तनके लाग काम कर्ना अभियन्ता, साहित्यके पारखी ओ पीडम फे हँस्ना प्रयास कर्ना प्रेमले भरल जीवनके अनुरागीक् रुपम चिन्हडेलसे मजा कनाअसक लागठ।
नेपाली साहित्यके सन्दर्भमे थारू भाषा साहित्यहे कौन स्थानमे डेख्ठी?
पैल्ह एक अमुक भाषाहन नेपाली भाषा मान्जाए। नेपालके अन्तरिम संविधान २०६३ अन्सार आजकाल नेपालम बोल्ना सक्कुभाषा हन राष्ट्रभाषाके दर्जा मिलल बा। नेपालम बोल्जैना स्थानीय भाषाम स्थानीय तहसम सरकारी कामकाजके भाषा बनाइ सेक्जीना कैगिल बा, लकिन उ काम ह्वाए निस्याकठो। जहाँसम् थारूभाषीन्के अपान जाँगर ओ वर्कटके बाट बा। थारू भ्ााषा आब लेखोन्मुख भाषाकेल ना होक लेख्य भाषाके स्थानम आइल अवस्था बा। का कर की गोरखापत्र समावेशी पत्रम हर पाखम थारू भ्ााषाके पत्र लग्ढार प्रकाशन हुइटीबा। धनगढीसे हमार पहुरा दैनिक, दांगसे लौव अग्रासन साप्ताहिक, बार्षिक रुपम हुइलसेफे थारू संस्कृति ओ बिहान पत्रिका निक्रटी बा। अट्रकेल ना होक नेपालके दुई दर्जनसे ढेउरनक एफएम ओ रेडियो नेपाल से मेरमेरिक रेडियो कार्यक्रम ओ समाचार प्रसारण हुइटी बा। यी तथ्य स्पष्ट करठ की थारू भाषा ओ साहित्य नेपाली आकाश मण्डलम गुन्जायमान् बा।
थारू भाषा साहित्यहे उचाइमे पुगाइक लाग का का कर्ना जरुरी बा? थारू भाषा साहित्यहे उचाइमे पुगुइया पुरान ओ लौवा पुस्ताके नाउँ लेहेबेर केकर केकर नाउँ लेहक रुचैठी?
भाषा साहित्यके विकासके लाग आपन भाषाम बोल्ना, नियमित लिख्ना काम जो कर्ना हो। याकरलाग उचित वातावरण हुइना फे जरुरी बा। उहमार पहिल ट थारूभाषीहुक्र आपन मातृभाषाम बोल्नाम गौरब कर परल। आपन लर्कापर्कन फे आपन भाषा सिखाइकलाग प्रयास कर परल। लिखुइया लिख परल, पाठकहुक्र पत्रपत्रिका किनक पह्रडिह परल। लगानीकर्ता ओ प्रकाशकहुक्र थारू भाषाके पोष्टा निकर्नाम लगानी कर परल। सरकारी, गैरसरकारी ओ निजी क्षेत्रहन प्रृकाशानके लाग आकर्षित करपरल। पहिचानके मुद्धाम सहमत होक आपन पहिचानके आधार भाषा, साहित्य ओ संस्कृति जोगाइकलाग ओ पहुराइकलाग चिन्तन मनन कर परल ओ जंग्रार श्रष्टाहुकहन् हौसला डिह परल।
थारू भाषा ओ साहित्यके फुलरियाहन झकामक बनाइकलाग लागल साहित्यकारम पुरानम महेश चौधरी, सगुनलाल चौधरी, अशोक थारू, शान्ति चौधरी, हृदयनारायण चौधरी, जोखन रत्गैयाँ मंगल थारू, लिह सेक्जाइठ कलसे लौव ठुम्रार साहित्यकारम कृष्णराज सर्वहारी सबसे उच्वा मठ्वाम बाट। अस्टक रेशम चौधरी, लक्की चौधरी, छविलाल कोपिला, शत्रुघन चौधरी, देवराज चौधरी, सोम डेमन्डौरा, भुवन भाई, मनिराम थारू, सागर कुस्मी, मानबहादुर पन्ना, ठाकुर अकेला, शर्मिला सृष्टि, सविता थारू हुकहन्के नाउँ लिह सेक्जाइठ।
का अपने हाली कौनो पोष्टा प्रकाशनके सोंचमे बटी?
हाँ मै निवन्ध संग्रह, नाटक संग्रह ओ गीति संग्रह भाग–३, के तयारी म बाटुँ। थारू गीति क्यासेट फे हाली अउइया बा।
अन्तमे गोरखापत्र थारू पृष्ठमार्फत् आउर कुछ कना बाँकी बा कि?
मही विचार ढर डेलकम धन्यवाद वा। फागुन महिना लाग सेकल, भ्वाज फे लस्क्याइल बा। भ्वाजम ढेउनक खर्चपर्च निकर्लसे मजा कना सुझाव बा सबजहन्। और बाट, थारू पृष्ठहन् खोजमूलक बनाइसेक्लसे बहि्रया हुइ। ओ, आपन पहिचान, ज्ञान बह्राइकलाग आपन घरक झोंरी मन्टारी, कुल संस्कारओर एक चो झाँक्क हेर्ना बान बैठाइकलाग युवा वर्गन्से मैगर अर्जी बा।