सीएन थारू- एक समय मे मुक्ति योद्धा आ शक्तिशाली पार्टी नेपाली काँग्रेस के महामन्त्री छेलै, निरङ्कुश राणा शासनके अन्त्य करैले परशु नारायण चौधरी तन, मन, धन तीनु लग्या डेल्कै। खास कैर के जनमुक्ति सेना के व्यवस्थापन के खातिर कपिलवस्तु आ दाङ इलाका मे विशेष योगदान डेल्कै।
यी सब कारणसे दाङ पूर्वी क्षेत्र से २०१५ साल के संसदीय निर्वाचन भेलै आ वीपी कोइराला प्रधानमन्त्री रहल मन्त्रीमण्डल मे शिक्षा मन्त्री के जिम्मेवारी पूरा करैट समय नेपाल सरकार के प्रतिनिधित्व करे पेरिस मे सम्पन्न भेल युनेस्को के बैठक मे सहभागिता बनल छेलै वि.सं २०१७ साल पौष १ गते। जब महेन्द्र वीपी कोइराला के सरकार अपदस्त करैले नेतृत्वके नजरबन्द मे राखे लाग्लै त परशु नारायण संघर्ष के मैदान मे रहै। बहुदलीय संसदीय व्यवस्था पुनर्वहाली करैले विदेशमे रैहके काम करे लाग्लै। सब कारणसे परशुनारायण नेपाली काँग्रेस मे प्रभावशाली व्यक्तित्व आ कुशल व्यवस्थापक सावित भेल रहै। जमिनदार पिताके वेटा हैतो परशु नारायण परिवर्तन के लेल संघर्ष रोजल्कै, कष्ट सहल्कै।
परशु नारायण चौधरी वि.सं २०३८ मे पञ्चायत व्यवस्था स्वीकार कैर के आपन जीवन मे महा भूल कैल्कै कि सही? से विचारणीय पक्ष चियै। वीपी कोइराला के उत्तराधिकारी मानल गेल उहाँ तात्कालीन राजनीतिक सन्दर्भ मे कोन कारण से पञ्चायत रोजल्कै, विश्लेषण आवश्यक छै। वनङ त २०४३ साल के पञ्चायत के निर्वाचन मे जनपक्षीय उम्मेदवार कैहके बहौतो काँग्रेस आ कम्युनिष्ट सोहो सहभागी बन्लै। तै मे पद्म रत्न तुलाधार, गजेन्द्र नारायण सिंह लगायत रहै। दाङसे परशुनारायण सोहो अत्याधिक मत ल्याके विजयी भेल रहै। काँग्रेस के दुर्दिन मे साथ डैवला यी व्यक्तित्व एकाएक आपन उद्धेश्य केनङ बदलल्कै त? २०३७ साल के जनमत सँग्रह से आव पञ्चायत के भविष्य नै छै से सुनिश्चित भेल अवस्था मे साँचोके मन्त्री पद के खातिर पञ्चायत स्वीकार कैल्कै त? स्वाभाविक चियै जब परशु नारायण २०४६ साल के जनआन्दोलन के प्रतिकार समिति के संयोजक बन्लै त पञ्चायत सँगे सत्ती जाइके बाट रोजल्कै, टखुन परशु नारायण जनता के नजरमे दुश्मन बन्लै। मर्कल पञ्चायती व्यवस्था एक धक्का मे गीरगेलै।
करिष्माटिक नेतृत्व मे तुलल परशुनारायण बहुदलीय व्यवस्था पुनःस्थापना पश्चात २०४७ साल मे थारू कल्याणकारिणी सभा के अध्यक्ष भेलै। गैर राजनीतिक मार्ग से आपन अस्तित्व बरकरार राखेकै कोशिस करल्कै। तैहै समय मे नेपाली काँग्रेस मे पुनः प्रवेश करैट आपन घर लौट के व्याल बात स्वीकार कैल्कै। यैबेर के बसाइ मेजवान नहाइट मागे भेलै। टकरवाद लवका घर राष्ट्रिय प्रजातन्त्र पार्टी रोजल्कै। लवका घर रोजाइ सँगे परशु नारायण राजनीतिक न्युक्लियस से बाहर डेखल गेलै। थारू कल्याणकारिणी सभाके २०५३ साल तालिक अध्यक्ष रैह करलाहा व्यक्तित्व राजा ज्ञानेन्द्र के शाही काल मे एक बेर फेनो से शक्ति मे आवेकै कोशिस कैल्कै राजपरिषद स्थायी समिति मार्फत्। यी अन्तिम कोशिस रहलै आ तकरवाद उइठके पाइनटा नै पिए सकल्कै। जिन्दगी के मोड मे परशु नारायण डोसर के लेल प्रेरणादायी त बेन सक्लै कि नै, मगर मोरन गुमनाम भ्याके रहलै। नेपाली काँग्रेस के राजनीतिक इमानदारिता शायद यी बेसी नै रहलै।
परशु नारायण के खतरा से खेलैवला आदत एक समयमे परिवर्तन के पक्षधर बनेल्कै त अन्तिम समय मे प्रतिगमन के मतियार। वीपी कोइरालाको किचेन क्याविनेट मे रैह के सोहो आपन प्रभाव गुमावेलै विवश बन्लै। २०३७ साल के जनमत संग्रह पश्चात नेपाल मे जातीय सवाल प्रवेश भ्याचुक्लै। गोपाल गुरुङ के अध्यक्षता मे मंगोल राष्ट्रिय मोर्चा, एमएस थापा मगर के अगुवाइ मे जनमुक्ति मोर्चा, सिताराम तामाङ के अध्यक्षतामे सर्वजातीय अधिकार मञ्च, गजेन्द्र नारायण सिंह के अध्यक्षता मे सदभावना मञ्च, विर नेम्वाङ के अध्यक्षता मे लिम्बुवान मुक्ति मोर्चा निर्माण करल गेलै। परशु नारायण उदारवादी लोकतन्त्र के पक्षधर भेने से कोनो क्षेत्रीय संगठन नै खोलल्के, मगर पञ्चायत नहाइर अनुदारवादी खेमा मे सहभागी बनलै। यकर कारण अनुमान लग्याल ज्यासकैये कि नेपाली काँग्रेस के भित्तर षड्यन्त्र बहौत जोडसे भेलै। षड्यन्त्र के शिकार प्रभावशाली नेता परशु नारायण चौधरी बन्लै। शिक्षित आ सुझबुझ भेल्हा नेतृत्व से भेल कमजोरी आपन मे असहज हेछै। राजनीतिक धार जखुन लोकतन्त्र के पक्ष मे छेलै परशु नारायण तकरा नजर अन्दाज करल्कै। जातीय सवाल भ्रुण ग्रहण करल अवस्था मे टकरा सोहो अस्वीकार करल्कै। निरन्तर परिवर्तन के विज्ञान के नियम बुझतौ अनुदारवादी खेमा के बलगर बनाबेलै सहयोग करल्कै। यी सब क्रियाकलाप राजनीतिक खेल के दाह छेलै। सबटा राजनीतिक खेलाडी आपन ठाम से खेल खेलैछे, मगर खेल भित्तर फेनो खेल चलैत रहैछे, से ताल नै मिलेना से बहौतो खेलाडीसब उद्धेश्य मे असफल बनैछे। स्याह चिज परशु नारायण के जीवन मे डेखल गेलै।
अन्त मे परशुनारायण चौधरी के २०६९ मंसिर २१ गते देहावसान भेलै। ओकर जीवन के भोगाइ आ राजनीतिक उतारचढाव मिलैत जुलैत छै। ओकर राजनीतिक जीवन के इतिहास मे जे असल पक्ष डेखल गेलै, टकरा परिवर्तन के पक्षधर सब सराहना करैट शिक्षा ग्रहण करे सकैछै। तैहनङे कमजोरी पक्ष जे डेखल गेलै, टकर कारण खोजी करैके सोहो अहं जिम्मेवारी थपल गेल्छै। यी सब परिवर्तन के पक्षधर सबके लेल लाभ पुगेतै। नेपाली काँग्रेस अखुन परशु नारायण के रोजलाहा अनुदारवादी खेमा पकरैले लागल छै। जखुन नेपाल मे जातीय ऐतिहासिक पृष्ठभुमि के आधार मे संघीय शासन के तोडमरोड करैले चाहेछै। धर्म निरपेक्षताके गलत प्रचारबाजी करैट जातीय बिषम परिस्थिति निर्माण करैले सहयोग पुग्यारहल सबकोइयो जानेछै। २०४७ सालके संविधान ठीक प्रचारबाजी करैके करै छै आ टकर लेल कांगे्रस मौन बैठल छै। परशु नारायण के दुर दुर छि छि करैवला सब कांगे्रसके आवरण भित्तर येहेन खेल सुरक्षित भ्याके खेलैछै, जे परिवर्तनके पक्षधर सबके लेल सोहावेवला बात नै चियै। परशु नारायण अनुदारवादी खेमा मे जे खेल खेलल्कै, परिवर्तन के पक्षधर सबके लेल गलत छेलै। परशु नारायण अवसरबादी चरित्र डेखलकै, सोहो गलत छेलै। टकरा हुबहु अपनावैवला कांगे्रसीजन कोन आधारमे अखुन ठीक? परशु नारायण ब्यावहारिक राजनीतिक सिपाही छेलै। टहौसे कमजोरी जे जटेक करल्कै, टकर प्रतिफल स्वयम् भोगल्कै। गुमनाम भ्याके जिन्गीक् अन्तिम क्षण ओरेलै। सांगठनिक रुपमे थारू कल्याण कारिणी सभा नयाँ चीज अगा बह्रावैके पक्षमे नै छै, परशु नारायण के सम्झना मे । टहौसे ओकर जीवनमे घटलाहा घटनासबके समीक्षा करैट परिवर्तनके पक्षमे क्रियाशील आ संगठित भेनेसेे आदरणीय परशु नारायणप्रति के सच्चा श्रद्धान्जली अर्पण भेल ठहर हेटै। उहाँके दिवंगत आत्माके चीर शान्तिके कामना।
साभारः १ पुस, २०६९, गोरखापत्र
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