थरुहटमे बदल रहल परिवेश (थारु भाषा)

विश्वनाथ थारू– समय परिवर्तनशील बावे। मानव सभ्यताके क्रमसंघे यथास्थिति परिवर्तन होते–होते जाइतावे। ऐतिहासिक धरोहर साक्षी बावे। संसारके संरचना जुगजुगसे बदल रहल बावे। बहुट देशके संरचना भित्तर केतना ऐतिहासिक धरातल जीर्ण अवस्थम बावे ओ लोप होइ जाइटा, तेकर कारन केतना मनोविज्ञानविद लोग कुछ ना कुछ अवशेष हिष्ट्रिकल कोड भित्तर सुरक्षित रख्लेबटाँ। प्राकृतिक सम्पदा, भौगोलिक वातावरण, वनवा, लदिया, समुन्दर लगायत आउर तत्व खनिज पदार्थके संरक्षणमे बदल रहल परिवेश उ परिवेशके श्रृंखलामे नेपालके तराई अउर तराईके थारू जाति यहाँके रैथाने जाति भित्तर भौगोलिक संरचना बदल रहल अवस्थामे थारू जातिके अस्तित्व अउर पहिचान हेरात जाइत बावे।
पूरुव मेचीसे पच्छिम महाकाली तक तराई तथा भितरी मधेसके भुभाग थारू जातिनके आदिम थलो हो। आदिम कालसे यहाँके भौतिक स्थलके भित्तर बदल रहल परिवेश चिन्ताजनक बावे। यहाँके दुसर जातीय समुदायके तुलनामे थारू जातिके अवस्था फरक होइत जाइत बावे। इहे क्रममे मैं रुपन्देहीक् बुटवल बजारसे पच्छिम २१ कि.मि. सालझण्डी बजार तक थोरे दुरके अवस्था स्थितिके बारेम यहाँ उजागर करत बाटुँ।
राजमार्गके दहिने ओ बाँवे रहल थारू गाँव उ सिवानके भित्तरमे हाल बिभिन्न जिल्लासे बसाई सराई, छाडा कइके अएना क्रम बिगत चार दशकसे होइत आइत बावे। अबके अवस्थामे थारू जाति अल्पमतमे होइगइल बाटाँ। एकर कारन बनवा बिनाश, अबैधानिक बसोबासके विकासके मुख्य कारन होवे। बजारीकरण, सहर बजार बन्ते–बन्ते सुबिधायुक्त परिवेश विकसित होइलेक कारन हो। यहाँके जगहा जमिनके भाव मूल्यमे चरम बृद्धि भइलेक बिशेषता हो। थारू जाति इमान्दारीके तक्मा पाइल जाति, अब आर्थिक अवस्थामे पाछे परत–पारत विपन्नताके अवस्थासे लडेक परत बावे। रैथाने थारू जातिके जगहा जमिन धिरे–धिरे आउर अन्य जातीय समुदायके अधिकार भित्तर जाइत बावे। उदाहरणमे कुछ थारू गाँवके थारू ओनहनके हकमे सिर्फ १० प्रतिशतसे २० प्रतिशत सीमित जगहा जमिन बचल बावे। बुटवल बजारके किनारे–किनारेक गाँव रानीगञ्ज, मोतीपुर, भुडकुइयाँ, रानीबारी, मनहरापुर, कृष्णागञ्ज, पथरगञ्ज, बेलभरिया, रुजिलापुर, नयाँगाँव, भैरहवा, आउर पच्छिम बनकटवा, चेथरी, सोहरौलिया, उँचडिहवा, झरबैरा, खोखरपुरवा, पर्सावल, पोखरभिँडवा, सेर्हिवा, बालापुर, गर्हावा, दुधराँक्ष, बैरकट्टी, गोरावल, दर्खसवा, भँडछा, भँडछी, शंकरपुर, कुम्हरग•ी, लवसा, बेलभरिया, ताल्ही, बरवलिया, भचना, भच्कहिया, झिमझिमियाँ, पानबारी, फच्कापुर, कुल  ऐतिहासिक थारू गाँव होलाँ। पर्सावलके बनवा, मुर्गिहवा डँडवा अब सहर बनगइल बावे। मुर्गिहवा कहत–कहत मुर्गिया रामनगरमे परिवर्तन होइगइल बावे। पोखरभिँडवा गाँव बुद्धनगरमे परिवर्तन होइगइल बावे। दर्खसवा गाँव रामापुरमे परिवर्तन होइगइल बावे ओ हाल भचना गाँवमे अक्को घर थारू नाइ रह गइलाँँ। आउर ऐसहीँ केतना गाँवमेहे केवल दुइ चार घरमे सीमित थारूनके बाटाँ। राजमार्गके दहिने बाँवे लग्गे–लग्गेक गाँवमे विकासके क्रममे बडा–बडा महल घर बनत जाइतावे। उद्योग व्यापार फस्टाइल बाटाँ। शिक्षण संस्थान हस्पिटल बजार व्यवस्थापन होइरहल बावे। बकिन थारूके बसाई उहासे आउर भित्तर जाइतावे।

बजारीकरणमे सालझण्डी, बाँसगढी, रामापुर कलोनी, रानीबगिया, तामनगर, नयाँगाँव, यी सब बजार व्यवस्थापनके अन्तरगत थारू जातिनके व्यवसायीकरण नाइ बावे। कहँु–कहँु एक दुइजनके सामान्य पसल बावे। लवा–लवा परिवेशमे थारू जाति अउर जातीय अस्तित्व ओ पहिचान हेराइत जाइत बावे। आजके अवस्थामे पुरान संरचना बदल रहल बावे। प्राचीन थारू जातिनके देवता डिउ–डिउहार, थान, कोटके पुजन छुटगइल बावे ओ छोरत जाइतन। आउर समुदायके बीचमे थारू समुदायके परम्परा लोप होइतावे। पुरान गाँव बस्तीके नाँव, ठाँवके नाँव, बनवाके नाँव, लदियक नाँव परिवर्तन होइतावे। थारू जातिनके पहिचान लोप होइत जाइत बावे। ऐतिहासिक शिवमन्दिर नरैनापुरके मेलासे विगत तीन दशकसे प्रतिस्पर्धामे पर्रोहा परमेश्वर बोलबमं धाम ओ नवनिर्मित दुर्गा भवानी मन्दिर मुर्गिया ओ मुक्तिनाथ धाम नयाँगाँउ लवा–लवा स्थापना भइल बावे। थारू देवता मलमल चउरा हाल मलमलादेवीमे परिवर्तन भइल बावे। थारू जातीय समुदायके ऐतिहासिक सम्पदा गाँव बस्तीके नाव परिवर्तन करेवाला विद्वान व्यक्तित्व सबके नैतिकताके विपरीत होइरहल जैसे मोही लागत। ऐसहीँ बुटवल भैरहवा खण्डभित्तर क्रमशः यिहे परिवेश भितराइल बावे।

थारू जाति समुदायके आर्थिक अवस्था पाछे परलके कारन उद्यम व्यापार नाइ रहल, आर्थिक अभाव, बेरोजगारके कारन देश छोडके विदेश पलायनके बध्यतामे परल थारूनके लवा पिढी योग्यता बिए. बिएड. डिग्रीके प्रमाण सर्टिफिकेट कौनो काम नाइ लागत बावे। कारन सम्बन्धित ठाँवमे आपन पहुँच नाइ पुगलके कारन शिक्षित पिढी गँवार बनके निकम्मा घुमत बाटाँ। आर्थिक अभावके कारन होनहर भाइ बहिन ओ पुरनियाँ दाईबाबन्के रोजगार भइल बावे लदिया। लदियाके पाथर ओ गिट्टी बालु उत्खनन् कइके रोडसे लइके बडा–बडा महलके छतमे जडान कएना काम आजके रोजगार भइल बावे। भवन निर्माणके लेबर ओ मिस्त्री, काठमिस्त्री, ग्रील मिस्त्री, ट्रेक्टर चालक, टिप्पर चालक, त्रे्कसर चालक बिभिन्न पारिश्रमिक लेवर काम थारू जाति कइरहल बाटाँ। पारिश्रमिक ज्याला निर्धारित नाइ बावे तब्बोपर घर व्यवहार चलाएक परत बावे।
थारू जाति सम्पन्न पूँजीपति वर्गके घर–घारी खेतके काम ओ घर भित्तरके जुठ्ठा भँडिया मजना धोयना, निपना पोतना, ओर्गइनी ओ कमलहरी, हरवाह, कमैयाँ, चरवाहके काम करत बाटाँ। ओ जहाँतक थारूवे चाहीँ कहिके सब जातिनके सोच बावे। सोझवा इमान्दार आचरणके थारूसे, गैरथारू फायदा लुटत बाटाँ ओ केतना कमलहरीनके इज्जतसे खेलवार करत बाटाँ। यौन शोषण, यातना, हिंसा, दमन होइरहल, धेर उदाहरण बावे। आर्थिक पक्ष कमजोर रहलके कारन दासके जीवन जीविकासे छुटकारा पाए सेक्ना स्थिति नाइ बावे। ऐसहीँ विभिन्न कारनसे थारू समुदाय ग्रसित बनते जाइतावे।
दुुसर परिवेश ओ फिन दुसर संस्कार थारू समुदायके भित्तर भितराइतावे। धर्म परिवर्तन ओ अन्तरजातीय विवाह, भोज होइतावे। अपन परम्पराके परित्याग कैना ठीक नाइ होवे। अन्तरजातीय संस्कार थारू समुदाय भित्तर बिखण्डन आ समानताके उपज होवे। थारू जातीय पहिचान लोप कएना परिवेश हो। आपन पहिचान ओ अस्तित्व बचाएक तन आपन संस्कृतिके संरक्षण करेक तन सक्कु थारू शिक्षित विद्वान, विवेकशील व्यक्तित्व सबके भावनात्मक एकता ओ पद्धतिके पाँतीमे एकिकृत होइके आपन अस्तित्व संरक्षणके ठौरामे संगठित होएना आजके समयके माँग बावे।
गजेडी–७, रुपन्देही
साभारः मंसिर १, गोरखापत्र दैनिक

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