कृष्णराज सर्वहारी- शायद २०६१ सालमे गायक रेशम चौधरी परशुनारायण चौधरीहे नेपालभरिक थारू समुदायक ‘बरघर’ चुनल घोषणा कर्ले रहिँट। माघीक अवसरमे भृकुटीमण्डपमे हुइल माघी महोत्सवमे उहाँहे बरघरीयक मुरैठा पारके सम्मान कैगैल रहे। वास्तवमे परशुनारायण सम्पूर्ण थारू समृदायक बरघर (अगुवा) के हकदार टे रबे करिट, नेपाली राजनीतिमे अभिनसम सबसे टिपुन्नीम पुगल राजनेता रहिँट। हुँकार बराबर आव सायदे कोनो थारू राजनीतिम बरेरी चुमे सेकी।
२०३६ सालमे जनमत सँग्रहमे देउखरके सिंगियामे काँग्रेसके आमसभामे परशुनारायण के भाषणके सर्वत्र चर्चा रहे। टब्बे मै ८ वर्सक जानजुकुर हो राख्ले रहुँ। वीपी कोइरालाके बोली प्रस्ट नै आइल (घाँटीक अप्रेसनके बजहसे) ओर्से कार्यक्रममे परशुबाबु जो नायक रहिँट। २०३९ सालमे जब हुखिन राजा वीरेन्द्र राष्ट्रिय पञ्चायतके सदस्य मनोनित कर्लिन्, ढेर जाने कहलाँ कि परशुनारायण सुविधाभोगी राजनीतिमे फँसगैला। हुइना फेन पञ्चायत नै ढलटसम उहाँ वाणिज्य तथा आपूर्ति, उद्योग, शिक्षा आदि मन्त्रालय लगातार सम्हरलाँ। पञ्चायतमे नै छिर्टा कलेसे पैल्हा थारू प्रधानमंत्री बन्ना मौका सायद उहाँ जरुर पैने रहिट। थारू कल्याण कारिणी सभाहे जन्म डेना ओ शयान बनैना हुँकार बरा योगदान रहिँन।
छयालीसके आन्दोलनके वाद परशुनारायण आपन मूल घर काँगे्रसमे प्रवेश कर्लाँ। मने २०४८ सालके चुनावमे उहाँ काँग्रेसे टिकट नै पैलक वाद स्वतन्त्र उमेदवार उठ्लाँ। उहाँ स्वतन्त्र उमेदवारके आमसभा देउखर लमहीमे हुइल। जौन कार्यक्रम मै सञ्चालन कर्लै रहुँ। टब्बे मै नेपाल विद्यार्थी संघके जिल्ला सहसचिव रहुँ। मै अपन क्यरियर दाउँमे लगाके हुँकार कार्यक्रमके उद्घोषक वन्ना चुनौती मोल्ले रहँु, मने उ चुनौती गइल भैँस पानीमे। स्वतन्त्र उमेदवारके पर्चा छपके अइलो पर उ नै बँटल, उ अपन उमेदवारी फिर्ता लेहल कैहके अनखोहर समाचार सुने मिलल, टब्बेसे उहाँक डुह्री डब्नास मही मन नै लागल।
२०५१ सालके चुनावमे उहाँ राप्रपासे चुनाव लड्लाँ। एकदिन हमारो घर कल्वा बनल रहे। २०४८ सालेम उम्मेदवारी फिर्ता लेलक मोर रिस मरल नै रहे। चुनावी टोली कलुवा खाइबेर मै चुल्हीम सुख्वाइल मर्चा डार डेलुँ, ले सबके खोखाँही, गरिवा पाइल भन्सरीया डाई। मने रिस रही कहाँसम? उहाँक छाईक दुर्घटनामे देहान्त हुइलक बाद मही २/३ बेर अपनेहे फेन कैके बलैँला कि भैया छाई बितल टे मही बहुट शुन लागठ। कबु काल्ह खेले आयो, बेन कलवा मै यहोेरे बन्वइम। बानेश्वर, पैल्हक मेलम्ची खानेपानी आयोजनक अफिसके पाछे उहाँक डेरा रहीन्। मै कैयौबेर उहाँ कलवा चाय पिले बटुँ, खैले बटुँ।
राजा ज्ञानेन्द्रके प्रत्यक्ष शासनकालमे जब उ राजसभा स्थायी समितिके सभापति बन्लाँ, बहुट जाने बहुट फाइदा उठैँला। दुर्गा बुढाथोकी पीए रहे, उ महिला सुसारे खत्रीहे ढिरे ढिरे उहाँक जन्नी बना डेहल। मै एकबेर भेट करे गैल रहुँ, गाउँक भाइ असई गीताप्रसाद चौधरीक् बढुवक लाग, मने कोनो सुनुवाइ नै हुइल। पछिल्का पटक २०६५ बैशाख ६ गते बाँके फत्तेपुरके भाइ सन्तोष चौधरीक् भोजेक पार्टी सीडब्लु रेष्टुरेन्ट कमलादीमे उहाँसे भेट हुइल रहे। उहाँ हे बुह्रैलो पर शिकार चवाइट ओ सटासट डारु पियट डेख्के लागल बुह्रवा अभिन बहुट जिही। ८६ वरस अठ्ठे नै हो, उहँ अपन उमेरभर जिलाँ फेन।
मने सन्तान सुख उहाँहे नशिव नै हुइलिन। छोट छोट नानीन् टुवर कैके छाईक देहान्त हुइना, जन्नी विट्जैना, अमेरिका, चेकोस्लोभाकियामे रहल छावन् डाई बाबक् अन्तिम अवस्था रहलमे फेन हेरचाह करे नै अइना यी सबसे उहाँ बहुट दुःखी रहिँट। मनै अपन छावन डाक्टरी इसलिए पह्रैठाँ, डाई बाबाहे हल्का खोँखी काजे नै लागिस, तुरुन्ते डक्टरवा छावा हेरे सेके। मने उहाँक् डक्टरवा छावा उहाँहे हेर्ना टे दुर, यी देशके वेरम्यन फेन सेवा नै पैला, विदेश पलायन हो गैला। डाई बाबक् अन्तिम चितामे आगी डेहे डुनु छावन् उपस्थित नै हुइलाँ। शायद इहे हो एक्काइसौँँ शताब्दीके युग। परशु नारायण ओ उहाँक् गोसिन्या डुन्हुनहे भतिजा जगदीश नारायण दागबत्ती डेलाँ।
उहाँक जर्टी चितामे अन्तिम विदाइ कर्टी गायक रेशम चौधरी मोर ठेन कहले रहिँट– सँघारी बहुट जनहनके मुँहे आज फेन सुन्जाइटा कि एक्ठो सुसारे पर्वटिन्या सम्पत्तिक लोभमे आँस चुहाइटा। मने मही लागठ, अन्तिम घडीमे परशुनारायण के गु मुट सेहरुइया उहे सुसारे जो उहाँक सम्पत्तिक हकदार हो। डाई बाबक् चितामे आगी डेहे आइ सँपार नै हुइना छावन् ऊ सम्पत्ति मे आँखी गर्ना बेकार बा। महीँ उहाँक् बातेम दम लागल।
ओ अन्तमेः ११ औँ पुण्यतिथिके यी अवसरमे मही अक्के बात कैहके बिदा लेनस मन लागटा। उहाँक नाउँमे कोनो ट्रष्ट, सम्झना कोष खडा कैके प्रत्येक वरस मंसिर २१ गते सम्झना दिन स्वरुप कोनो पुरस्कार स्थापना करे सेक्जाइ कलेसे उहाँकप्रति सच्चा श्रद्धान्जली ठहरी। अस्टाइल थरूहटके ढुरखम्बा परशुनारायण, अलविदा। अलविदा।।
साभारः १ पुस, २०६९, गोरखापत्र
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